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ग़ज़ल .......... सुलभ अग्निहोत्री

हद से अपनी गुजर गया कोई ।
चुपके दिल में उतर गया कोई ।।

आँख में आसमान लाया था
मेरी अंजुरी में भर गया कोई ।।

छोटी बच्ची सा झूल बाहों में
मन की हर पीर हर गया कोई

टूटी छत से उतर के कमरे में
चाँदनी सा पसर गया कोई ।।

डाल पे फूल खिल गया जैसे
स्वप्न जैसे सँवर गया कोई ।।

रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई ।।

सामने वालमीकि के फिर से
क्रौंच पर वार कर गया कोई

बह के आँसू के संग आँखों से
मार के हमको मर गया कोई ।।

.............. सुलभ

मौलिक तथा अप्रकाशित

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Comment by Sulabh Agnihotri on September 21, 2014 at 2:48pm

बहुत-बहुत आभार आदरणीय   डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on September 21, 2014 at 2:46pm

बहुत-बहुत आभार   जितेन्द्र 'गीत' जी !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 20, 2014 at 1:33pm

सुलभ जी

क्या बात है i एक से बढ़कर एक मोती i स्वच्छ , धवल ,आबदार i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 20, 2014 at 8:52am

रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई.....बहुत खूब. बधाई आपको आदरणीय सुलभ जी

Comment by Sulabh Agnihotri on September 18, 2014 at 3:31pm

बहुत-बहुत आभार  Dr. Vijai Shanker जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on September 18, 2014 at 3:30pm

बहुत-बहुत आभार  सूबे सिंह सुजान जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on September 18, 2014 at 3:30pm

बहुत-बहुत आभार  khursheed khairadi जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on September 18, 2014 at 3:29pm

बहुत-बहुत आभार  गिरिराज भंडारी जी !

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 18, 2014 at 10:38am
बहुत सुन्दर , आदरणीय सुलभ अग्निहोत्री जी , बधाई ।
कुछ जोड़ दू ,
हद से अपनी गुजर गया कोई ।
चुपके दिल में उतर गया कोई ।।
इतना ऊपर चढ़ गया कोई ।
दिल में गहरा उत्तर गया कोई ॥
Comment by सूबे सिंह सुजान on September 18, 2014 at 9:49am
सुलभ जी, भई वाह वाह बढिया ग़ज़ल कही ....

रोशनी को सहेजने में ही
कतरा-कतरा बिखर गया कोई ।।


सामने वालमीकि के फिर से
क्रौंच पर वार कर गया कोई


बह के आँसू के संग आँखों से
मार के हमको मर गया कोई

सुन्दर

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