For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सबकुछ जाने सबकुछ समझे  

पागल ये फिर भी धुन है

औचक टूट गए सपनों की

उचटी आँखों की धुन है |

 

इस धुन की ना जीभ सलामत

ना इस धुन के होठ सलामत   

लँगड़े, बहरे, अंधे मन की  

व्याकुल ये कैसी धुन है |  

 

खेल-खिलौने टूटे-फूटे   

भरे पोटली चिथड़े-पुथड़े

अत्तल-पत्तल बाँह दबाए

खोले-बाँधे की धुन है |

 

क्या खोया-पाना, ना पाना  

अता-पता न कोई ठिकाना

भरे शहर की अटरी-पटरी  

पर गिरती-पड़ती धुन है |

 

फूटा लोटा, टूटी डोरी  

भठे कुएँ पर खड़ा बटोही

बेसुध कंकड़-पत्थर भरती   

ये कैसी प्यासी धुन है |

 

किए-धरे का लेखा-जोखा

झाड़ों ने कब तौला-देखा  

काँटों में घायल पंखों की  

ज्यों फड़फड़ करती धुन है |

 

ऐसा होता, वैसा होता   

तो आज समय कैसा होता   

बीती बातों को धुनने की

बेमतलब गुनती धुन है |

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

-- संतलाल करुण       

Views: 980

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 4, 2014 at 4:43am

कथ्य के भाव चिर सत्य को समेटे हुए निर्गुनिया शैली में मुखर हैं आदरणीय. इन इंगितों में जो सनातन आश्वस्ति है उसके अनुसार अनुभूति का ही महत्व हुआ करता है, तार्किकता का कोई स्थान नहीं है. इसी भावभूमि के संबल पर शताब्दियों से भूमिपूत्र दुर्धर्ष परिस्थितियों में भी ठहाके लगाते जी जाया करते थे. नैराश्य को नकारते हुए जीने की ताकत हुआ करती थी यह भावभूमि. आज प्रासंगिक हो गये कई तथाकथित विन्दुओं के कारण नैराश्य हावी हो चला है. इस परिप्रेक्ष्य में आपका यह गीत ठंढी हवा के झोंके की तरह आया है. हार्दिक बधाई..

शिल्प के स्तर पर आदरणीय  तनिकऔर ध्यान दिया जाना बनता था. इस पहलू पर आप अवश्य संवेदनशील होंगे, विश्वास है.

’भाव प्रस्तुतीकरण आवश्यक है, न कि क्लिष्ट प्रतीत होता काव्य-शिल्प’  आदि जैसी अति उत्साही उद्घषणाओं की निर्मूलता को आपका विवेकी मन अवश्य समझता होगा, आदरणीय.

शुभ-शुभ

.

Comment by mrs manjari pandey on September 2, 2014 at 10:57pm
आदरणीय सर धुन की बहुत सुन्दर व्याख्या आपने की. धुन को बस धुनते जाने गुनते जाने का जी होता है. बहुत ही सुन्दर रचना मई भी काफी समय बाद ओबीओ खोल सकी हूँ।
Comment by Shyam Narain Verma on September 2, 2014 at 11:11am
" सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ .................. "
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2014 at 10:06am

धुन शायद होती ही ऐसी है, कहीं कोई परवाह नही. बहुत सुंदर, बधाई आपको आदरणीय संतलाल जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 2, 2014 at 9:56am

बहुत सुन्दर मनमुग्ध करता गीत ...बहुत बहुत बधाई आपको आ० संतलाल करुण जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 1, 2014 at 9:14pm

आदरणीय श्री संतलाल जी, आपकी कविता के साथ श्री गोपाल नारायण की छोटी कविता भी सुन्दर लगी!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 1, 2014 at 6:45pm

करुण जी

धुन ही होती है  धुन जैसी

धुन में बेसुध  तन मन है I

धुन की धुन मे सब मतवाले   

धुन ही कवि का जीवन है II

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service