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ये मिट्टी भी हमारी ही महक देती खलाओं तक - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

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जहन  की  हर  उदासी  से  उबरते तो सही पहले
जरा तुम नेह के पथ से गुजरते  तो सहीे पहले
**
हमारी  चाहतों  की  माप  लेते  खुद ही गहराई
जिगर  की  खोह में थोड़ा उतरते तो सही पहले
**
ये मिट्टी भी हमारी ही महक देती खलाओं तक
हमारे  नाम  पर  थोड़ा  सॅवरते तो सही पहले
**
तुम्हें भी धूप सूरज की बहुत मिलती दुआओं सी
घरों  से  आँगनों  में  तुम  उतरते तो सही पहले
**
गलत फहमी तुम्हारी भी ‘गॅवारों’ की उतर जाती
हमारे  गाँव  में   दो  पल  ठहरते  तो सही पहले
**
खुशी खुद ही फुदकती मेंमनों सी हर गली आँगन
गमों  के  बाज  के पर तुम कतरते तो सही पहले

**
( रचना - 8 अगस्त 2014 )


मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 644

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 19, 2014 at 9:26pm

गलत फहमी तुम्हारी भी ‘गॅवारों’ की उतर जाती 
हमारे  गाँव  में   दो  पल  ठहरते  तो सही पहले
**वैसे तो सभी अशआर शानदार हैं किन्तु इस शेर की मासूमियत मुझे बहुत भायी 

सुन्दर ग़ज़ल हार्दिक बधाई आपको 

Comment by विजय मिश्र on August 19, 2014 at 3:42pm
बहुत सुंदर , बधाई
Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 18, 2014 at 9:23pm
हमारी चाहतों की माप लेते खुद ही गहराई
जिगर की खोह में थोड़ा उतरते तो सही पहले
**
तुम्हें भी धूप सूरज की बहुत मिलती दुआओं सी
घरों से आँगनों में तुम उतरते तो सही पहले

आदरणीय लक्ष्मण जी,
इस शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई
Comment by kalpna mishra bajpai on August 18, 2014 at 8:47pm

खुशी खुद ही फुदकती मेंमनों सी हर गली आँगन
गमों  के  बाज  के पर तुम कतरते तो सही पहले,,,,,,,,,,,,यही हुनर तो सीखना है तभी जी पाएंगे । बहुत बधाई आप को 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 8:29pm

वाह वाह! सुन्दर गजल!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 17, 2014 at 9:20pm

धामी जी
सर्वांग सुन्दर गजल i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 17, 2014 at 12:40pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत बढिया गज़ल हुई है , सभी आश'आर के लिए बधाईयाँ |

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 17, 2014 at 12:24pm
बहुत खूब . सुन्दर .
खुशी खुद ही फुदकती मेंमनों सी हर गली आँगन
गमों के बाज के पर तुम कतरते तो सही पहले ।
बधाई .

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