For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बोलने से कौन करता है मना - (ग़ज़ल) - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

2122    2122    212

**********************

जन्म  से  ही   यार  जो  बेशर्म  है
पाप क्या उसके लिए, क्या धर्म है
**
छेड़ मत तू बात किस्मत की यहाँ
साथ  मेरे  शेष  अब  तो  कर्म  है
**
बोलने  से  कौन  करता है मना
सोच पर ये शब्द का क्या मर्म है
**
चाँद  आये  तो  बिछाऊँ  मैं उसे
 एक  चादर  आँसुओं  की नर्म है
**
शीत का मौसम सुना है आ गया
पर चमन की  ये हवा क्यों गर्म है
**
( रचना - 30 जुलाई 2014 )

मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 654

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 18, 2014 at 12:15pm

आदरणीय मेरे कहे को मान देने के लिए सादर धन्यवाद.

चाँद आये तो बिछाऊँ उसके हित
एक  चादर  आँसुओं  की नर्म है
हम्म .....

या ऐसे देखें -
चाँद पहलू में कभी आ जाय तो 
एक चादर आँसुओं की नर्म है

यों, ऐसे शेर, आदरणीय, मनोदशाओं पर निर्भर करते हैं. अतः ऑप्शन कई हो सकते हैं.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2014 at 11:27am


आदरणीय भाई आशीष जी, गजल पर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार । आपने सही फरमाया कि आदरणीय सौरभ भाई की बात पर खूबसूरत मंजर पेश किया जा सकता है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2014 at 11:26am


आदरणीय भाई सौरभ जी , सादर अभिवादन । गजल पर विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद । संदर्भतः जिस पंक्ति के विषय में आपने लिखा है मेरा मन्तव्य भी आसुओ की नर्म चादर को चाँद के लिए बिछाना ही था । आपकी टिप्पणी के बाद मैंने इस पक्ति को पुनः गौर किया तो मुझे भी लगा कि यहाँ पर अर्थ कुछ उलझ सा गया है ।  अब इसमें संशोधन कर रहा हूं जिससे अर्थ जादा स्पष्ट हो सके ।
 ‘ चाँद आये तो बिछाऊँ उसके हित‘ क्या ऐसा करने से मंतव्य पूरा हो रहा है ? मार्गदर्शन करे आभारी रहूंगा ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2014 at 11:25am


आदरणीया मीना बहन , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2014 at 11:24am


आदरणीय भाई विजय निकोर जी गजल पर आपकी उपस्थिति से इसका मान बढ़ गया । उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 18, 2014 at 11:24am

आदरणीय भाई रामसिरोमणिजी, गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार l

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 14, 2014 at 11:12pm

काफियों के लिए खास दाद आदरणीय लक्ष्मण जी !

आदरणीय सौरभ जी की कही बात से एक खूबसूरत मंजर पेश किया जा सकता है |

बढ़िया ग़ज़ल पर बधाई और स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 14, 2014 at 11:43am

आदरणीय लक्ष्मण धामीजी, बधाई स्वीकारिेये इस बढिया ग़ज़ल पर.  ग़ज़ल के शेर संयत और सक्षम हैं. काफ़िया को आपने बेहतर निभाया है. 

अलबत्ता, आँसुओं की नर्म चादर पास होने के बावज़ूद चाँद को बिछाने की बात सोचना मुझे स्पष्ट नहीं हुआ. उस बिछी चादर पर चाँद को सुलाना या बिठाना तो समझ में आता है. आपके स्पष्टीकरण की चाहना है, आदरणीय.

इस ग़ज़ल के लिए पुनः बधाई.

सादर

Comment by Meena Pathak on August 13, 2014 at 2:35pm

बहुत खूब ..बधाई आप को 

Comment by vijay nikore on August 13, 2014 at 11:12am

अच्छी रचना के लिए बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service