For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये मिट्टी भी हमारी ही महक देती खलाओं तक - ग़ज़ल ( लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ )

1222    1222    1222     1222
*********************************
जहन  की  हर  उदासी  से  उबरते तो सही पहले
जरा तुम नेह के पथ से गुजरते  तो सहीे पहले
**
हमारी  चाहतों  की  माप  लेते  खुद ही गहराई
जिगर  की  खोह में थोड़ा उतरते तो सही पहले
**
ये मिट्टी भी हमारी ही महक देती खलाओं तक
हमारे  नाम  पर  थोड़ा  सॅवरते तो सही पहले
**
तुम्हें भी धूप सूरज की बहुत मिलती दुआओं सी
घरों  से  आँगनों  में  तुम  उतरते तो सही पहले
**
गलत फहमी तुम्हारी भी ‘गॅवारों’ की उतर जाती
हमारे  गाँव  में   दो  पल  ठहरते  तो सही पहले
**
खुशी खुद ही फुदकती मेंमनों सी हर गली आँगन
गमों  के  बाज  के पर तुम कतरते तो सही पहले

**
( रचना - 8 अगस्त 2014 )


मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:04am

आदरणीय सौरभ भाई जी, सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:04am

आदरणीया राजेश बहन आपको गजल पसंद आयी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:02am


आदरणीय विजय मिश्र जी प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार । स्नेह बनाए रखें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:02am



आदरणीय भाई राकेश जी ,गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:01am


आदरणीया कल्पना बहन आपने सही कहा , जिस रोज हमें यह हुनर आ जाऐगा उस रोज हमद ुख का रोना बंद कर देगे । गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:01am


आदरणीय भाई जवाहर लाल जी गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:01am


आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी , आपका आशीष पाकर गजल का मान और बढ़ गया । इस प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:01am


आदरणीय भाई गिरिराज जी गजल पर उपस्थिति देकर उसका मान बढ़ाने के लिए आभार । स्नेह बनाए रखें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 23, 2014 at 11:00am

आदरणीय भाई विजय शंकर जी गजल का अनुमोदन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद । आप सहित सभी प्रबु़द्ध जनों से क्षमा याचना चाहता हूं कि आपकी प्रतिक्रियाओं पर समय से धन्यवाद ज्ञापित नहीं कर सका । स्नेह बनाए रखें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 12:10am

आदरणीय लक्ष्मण जी,

एक अच्छे प्रयास से आने खुश कर दिया. कहन में अब इंगितों से कह रहे हैं. अच्छा है.

दाद कुबूल करें.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service