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मुझको तन्हाई अक्सर बुलाती रही- ग़ज़ल

212/ 212/ 212/ 212

मुझको तन्हाई अक्सर बुलाती रही

बारहा पास आकर सताती रही

 

क्या कहूँ आँसुओं का सबब मैं तुझे

तल्खी तेरी ज़बाँ की रुलाती रही

 

रात भर मैं हवा के मुकाबिल खड़ा

लौ जलाता रहा वो बुझाती रही            

 

आइना अक्स मेरा बदलता रहा

ज़िन्दगी खुद से मुझको छुपाती रही

 

मैं न समझा कभी सच यही था मगर

ये ख़िज़ाँ राह मेरी बनाती रही   

 

बादबाँ खुल गये चल पड़ी नाव भी

मेरी किस्मत मुझे यूँ चलाती रही

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 14, 2014 at 9:47pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on August 14, 2014 at 9:46pm

आदरणीय रवि सर आपने रचना के मर्म को समझा रचना को समय दिया आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 5:37pm

रात भर मैं हवा के मुकाबिल खड़ा

लौ जलाता रहा वो बुझाती रही     

बादबाँ खुल गये चल पड़ी नाव भी

मेरी किस्मत मुझे यूँ चलाती रही   ------- आदरणीय शिज्जु भाई , गज़ल के लिये और इन दो अश आर के लिये बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by vijay nikore on August 4, 2014 at 6:04pm

इस बहुत ही खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय शिज्जू जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 5:58pm

रात भर मैं हवा के मुकाबिल खड़ा

लौ जलाता रहा वो बुझाती रही            

इस शेर के सापेक्ष आपकी एक अच्छी ग़ज़ल से गुजरता गया.. दाद कुबूल कीजिये, शिज्जू भाई.

Comment by विजय मिश्र on August 4, 2014 at 11:07am
बहोत खूबसूरत और प्यारी गज़ल , बधाई शिज्जू भाई |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 4, 2014 at 10:50am

रात भर मैं हवा के मुकाबिल खड़ा

लौ जलाता रहा वो बुझाती रही   ---बहुत सुन्दर शेर वाह्ह्ह          

 

आइना अक्स मेरा बदलता रहा

ज़िन्दगी खुद से मुझको छुपाती रही---क्या कहने 

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है दिली दाद कबूलिये शिज्जू भैया 

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 3, 2014 at 9:27pm

वाह! क्या बात है,बहुत ही बेहतरीन गजल.दिली बधाइयाँ आपको

Comment by ram shiromani pathak on August 3, 2014 at 8:16pm

रात भर मैं हवा के मुकाबिल खड़ा

लौ जलाता रहा वो बुझाती रही            

 

आइना अक्स मेरा बदलता रहा

ज़िन्दगी खुद से मुझको छुपाती रही////बहुत ही सुन्दर अशआर

 सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय।हार्दिक बधाई आपको। ।   सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 3, 2014 at 7:44pm

आदरणीय शिज्जू जी ..आपके शानदार ग़ज़ल गुलदस्ते एक और खूबसूरत ग़ज़ल पुष्प ..

बादबाँ खुल गये चल पड़ी नाव भी

मेरी किस्मत मुझे यूँ चलाती रही..किस्मत हो तो ऐसी ..बहुत बढ़िया 

हाँ आदरणीय अपनी जानकारी के लिए लिख रहा हूँ तुम्हारे कि तरह 

तन्हाई ..भी क्या १२२ नही होगा ..अन्यथा मत लीजियेगा ..इस बेहतरीन ग़ज़ल की धुन बहुत रास आयी जी भर कर गुनगुनाया ....ढेर सारी बधाई के साथ .सादर 

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