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ग़ज़ल- कि दरिया पार होकर भी किनारे छूट जाते हैं

१२२२       १२२२          १२२२         १२२२

ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं

कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं

ये दिल का मामला प्यारे नहीं दरकार पत्थर की

ज़रा सी बेरुखी से ही ये शीशे फूट जाते हैं

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं

ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना

बहुत जल्दी ही  ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं

खुदी में दम नहीं है गर तो हासिल कुछ नहीं होता

कि दरिया पार होकर भी किनारे छूट जाते हैं

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 7, 2014 at 6:09pm

बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है ..दिली दाद क़ुबूल करें 

Comment by Ravi Prabhakar on July 7, 2014 at 6:06pm

आदरणीय महोदया,

बहुत अच्‍छी गजल कही आपने, एक-एक शेअर काबिले दाद हैा

/ ज़रा सी बात पर अनबन, भरोसे टूट जाते हैं

कि साथी सात जन्मों के पलों में छूट जाते हैं /

बहुत खूब । आज के सामाजिक परिवेश पर बिल्‍कुल स्‍टीक बैठता शेयर

बधाई स्‍वीकार करें

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 7, 2014 at 5:12pm

आदरणीय संजु जी बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 3:24pm

आदरणीया संजू जी , खूब सूरत गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 7, 2014 at 2:51pm

आदरणीया अआप्की आज की रचना कीतारीफ़ की जाए कम है ..बेहतरीन ..बेहतरीन ..सादर बधाई के साथ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 7, 2014 at 12:10pm

आदरणीया

बहुत सुन्दर गजल हुयी है i  हर शेर उम्दा है i आपको बधाई i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 7, 2014 at 9:02am

बहुत बेहतरीन गजल आदरणीया संजू जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें

ये माना बेखुदी में हो मगर कुछ होश भी रखना

बहुत जल्दी ही  ख्वाबों के घरौंदे टूट जाते हैं................बहुत खूब

Comment by atul kushwah on July 6, 2014 at 11:38pm

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं....वाह! उम्दा गजल... बधाई.

Comment by Santlal Karun on July 6, 2014 at 11:35pm

आदरणीया संजू जी, आप ने कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से एक अच्छी-सी ग़ज़ल प्रस्तुत की  है; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !

Comment by कल्पना रामानी on July 6, 2014 at 10:20pm

ये ऐसा दौर है साहिब कि आँखें खोल हम सोये

मगर हद है लुटेरे सामने ही लूट जाते हैं....वाह!

उम्दा गजल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई प्रिय संजु जी

कृपया ध्यान दे...

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