For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222    1222     1222     1222

****
सिखाते  क्यों  हमें  हो  तुम वही इतिहास की बातें
दिलों में  घोलकर  नफरत  नये  विश्वास  की बातें

*
बताओ  घर   बनेगा  क्या  हमारा   आसमानों  में
जमीनें  छीन   के   करते  सदा  आवास  की  बातें

*
कहाँ  से  हो  कठौती  में   हमारे   गंग  की  धारा
बिठाई  ना  मनों  में जब  कभी रविदास  की बातें

*
बहाकर  अश्क  भी  यारो  कहाँ  दुख  दूर  होते हैं
गमों  से  पार  पाने  को  करो   परिहास  की बातें

*
हमारे  देवता  जो  हैं  करम  तक  आ  न  पाये हैं
दिया पतझड़  हमेशा ही,  कही  मधुमास की बाते

*
हुआ  होगा  कभी  मजनू  जिसे  था प्यार रूहों से
मगर इस युग चली आयी  सदा सहवास की बातें

*
मुझे लगती नहीं अच्छी  'मुसाफिर’ फितरतें तेरी
अगर बरसात  भी हो तो  करोगे  प्यास की बातें

मैलिक व अप्रकासित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’

Views: 747

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 13, 2014 at 10:18am

आदरणीय भाई सौरभ जी आपके मसवरेनुसार कमियों को इस प्रकार ठीक किया है क्या ठीक है

१- तकाबुले रदीफ़ -  बनेगा आसमानों  में बताओ  क्या  हमारा  घर 

२- ना का दोष - बिठाई  ना  मनों  में जब = बिठा पाये  न  मन  में जब 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2014 at 2:08pm

आसमानों में   सही वाक्यांश है. आसमानों पर  भी सही माना जा सकता है. लेकिन जिस तरीके से उक्त शेर का उला हुआ है उसके अनुसार आसमानों में  सही प्रतीत हो रहा है. अब तकाबुले रदीफ़ से निजात पाना आपको है, जो कि आखिरी  एं की मात्रा यानि में  के कारण संभव हो गया है. प्रयासरत रहें, आदरणीय... :-))

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2014 at 12:12pm

भाई चंद्रशेखर जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2014 at 12:11pm

आदरणीय भाई जीतेन्द्र जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए दिली आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2014 at 12:09pm

आदरणीय भाई सौरभ जी , अनमोल सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद . मतले के सन्दर्भ में आपने जी संशोधन सुझाया है वह बेहतरीन है . तकाबुले रदीफ़ की दिक्कत क्या  में के बजाय आसमानो पर किया जा सकता है क्या ? ग़ज़ल परंपरा कि जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 8, 2014 at 12:43am

बताओ  घर   बनेगा  क्या  हमारा   आसमानों  में
जमीनें  छीन   के   करते  सदा  आवास  की  बातें............वाह ! क्या कमाल का शेर

लाजवाब गजल पर , हार्दिक बधाई आपको आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 8, 2014 at 12:26am
वाह्ह्ह्ह

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2014 at 12:18am

एक सार्थक मतले के लिए दिल से दाद कुबूल कीजिये, साहब.

वैसे मुझे समय देना होता तो मतले पर मैंने कुछ और समय दिया होता. शायद ऐसे हो तो देखिये -
बताते क्यों हमें हो तुम उसी इतिहास की बातें
दिलों में घोलती नफरत निरी बकवास की बातें.. ..

सिखाने और बताने में एक अर्थवान अंतर है. अच्छी बातें सिखायी जानी चाहिये, जबकि गलत बातें बतायी जाती हैं, घोंट कर पिलायी जाती हैं.

मतले के बाद पहले शेर में तकाबुले रदीफ़ की दिक्कत बन रही है. इसे देखलें. वैसे शेर की कहन दाद ले रही है.
ग़ज़ल में कई शेर बार-बार वाह ले रहे हैं. बधाइयाँ ..

एक बात और, ग़ज़ल की परम्परा में ना का प्रयोग नहीं होता. न ही प्रयोग किया करें. इस हिसाब से इस मिसरे को पुनः देख लें - बिठाई ना मनों में जब कभी रविदास की बातें.

एक अच्छी ग़ज़ल के लिए पुनः बधाइयाँ.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2014 at 12:51pm

आदरणीय भाई गिरिराज जी , ग़ज़ल कि प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 1, 2014 at 10:47am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है , हर शे र लाजवाब हैं , आपको दिली बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service