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बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
2122/ 2122/ 212


जाँ तेरी ऐसे बचा ली जाएगी;
हर तमन्ना मार डाली जाएगी; ।।1।।


बंदरों के हाथ में है उस्तरा,
अब विरासत यूँ सँभाली जाएगी;।।2।।


इक नज़ूमी कह रहा है शर्तियः,
दिन मनव्वर रात काली जाएगी;।।3।।


जब सियासत ठान ली तो जान लो,
हर जगह इज़्ज़त उछाली जाएगी;।।4।।


कर के वादा तू मुकरता है तो सुन,
आज तेरी बात टाली जाएगी;।।5।।


मैं नहीं आता अगर होती ख़बर,
दास्ताँ कोई फिर बना ली जाएगी;।।6।।


हश्र देखा इश्क़ का जो, हमसे अब,
प्यार की हसरत न पाली जाएगी;।।7।।


मुख़्लिसी-ज़िंदादिली क़ाइम रहे,
यार दौलत फिर कमा ली जाएगी;।।8।।


ज़िंदगी आएगी कब तू घर मेरे,
जल्द तुझसे इंतिक़ा ली जाएगी;।।9।।


गर न हारो हौसला तो तैशुदा,
हर मुसीबत पार पा ली जाएगी;।।10।।


चुप रहा 'वाहिद अगर महफ़िल में कल,
नज़्म उसकी गुनगुना ली जाएगी;।।11।।

.

वाहिद काशीवासी {11012014}

************************************
नज़ूमी=ज्योतिषी; मनव्वर=उजला; मुख़्लिसी=निश्छलता; इंतिक़ा=स्वीकृति

************************************

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 6:10pm

बहुत खूब। ……हर्दिक बधाई आपको 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 15, 2014 at 5:38pm

आदरणीय संदीप जी बेमिसाल ग़ज़ल है हरेक शेर बढ़िया हैl खुसूसन इन अशआर पे खास दाद कुबूल फरमायें
जाँ तेरी ऐसे बचा ली जाएगी;
हर तमन्ना मार डाली जाएगी;
जब सियासत ठान ली तो जान लो,
हर जगह इज़्ज़त उछाली जाएगी;

Comment by विजय मिश्र on January 15, 2014 at 4:51pm
उम्दा गजल .बधाई संदीपजी
Comment by Avinash Suryavanshi on January 15, 2014 at 9:14am

मोहतरम यदि आप की आगया हो तो आप की यह ग़ज़ल हम अपने साप्ताहिक समाचार पत्र में प्रकाशित करें ! बहुत उम्दः ग़ज़ल है


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 1:37am

संदीप वाहिदभाई, आपकी ग़ाल सामने है और लग रहा है अरसे बाद इससे मिल रहा हूँ. बहुत दिल से आपने कही है.

इन् अश’आर पर तो बार-बार दाद है -
बंदरों के हाथ में है उस्तरा,
अब विरासत यूँ सँभाली जाएगी;

इक नज़ूमी कह रहा है शर्तियः,
दिन मनव्वर रात काली जाएगी;

ज़िंदगी आएगी कब तू घर मेरे,
जल्द तुझसे इंतिक़ा ली जाएगी

 
इस मिसरे को एक दफ़ा फिर देख लें -
दास्ताँ कोई फिर बना ली जाएगी.......... फिर गलती से मिसरे में रह गया है.

Comment by MAHIMA SHREE on January 14, 2014 at 9:42pm

जब सियासत ठान ली तो जान लो,
हर जगह इज़्ज़त उछाली जाएगी;

 

हश्र देखा इश्क़ का जो, हमसे अब,
प्यार की हसरत न पाली जाएगी;।।7।।

 

मुख़्लिसी-ज़िंदादिली क़ाइम रहे,
यार दौलत फिर कमा ली जाएगी;।।8।।

 

गर न हारो हौसला तो तैशुदा,
हर मुसीबत पार पा ली जाएगी...... शानदार ... जिंदाबाद हर अश'आर आदरणीय संदीप जी .. बहुत अंतराल् बाद  हार्दिक बधाईयाँ सादर

 

 

Comment by Meena Pathak on January 14, 2014 at 2:48pm

बहुत सुन्दर गज़ल .. बधाई 

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 14, 2014 at 12:56pm

वाह वाह सर जी बेहतरीन ग़ज़ल है।

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2014 at 11:51am
इस भाव पूर्ण गजल के लिए बधाई आपको । 
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 14, 2014 at 11:11am

चुप रहा 'वाहिद अगर महफ़िल में कल,
नज़्म उसकी गुनगुना ली जाएगी;।--------बेशक गुनगुनाई जायेगी | सभी अश'आर उम्दा | हार्दिक बधाई 

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