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ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है

२१२२/२१२२/२१२ 
.
जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है,
फिर भी वो कहता हमें मगरूर है.
.

दोष है फ़ितरत का, ज़ख्मों का नहीं,
ज़ख्म जो प्यारा है वो नासूर है.   
.

ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,
वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है.
.

नब्ज़ मेरी थम गयी तो क्या हुआ,
जान मुझ में आज भी भरपूर है.
.

जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,
पास है, लेकिन अभी हम दूर है.
.

बात अब उनसे मुहब्बत की न कर,
लोग समझेंगे, नशे में चूर है.
.

बर्फ़ से रिश्ते हुए इस दौर में,
दिल सुलगता सा कोई तंदूर है.    
.   

दिल से पढ़, ये आँख के बस की नहीं,
“नूर” की ये भी ग़ज़ल पुरनूर है.
...............................................
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Views: 999

Comment

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Comment by ajay sharma on December 20, 2013 at 10:00pm

जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है,
फिर भी वो कहता हमें मगरूर है.    wah wah mat -ala 
.

दोष है फ़ितरत का, ज़ख्मों का नहीं,
ज़ख्म जो प्यारा है वो नासूर है.      khas hua hai ye sher 
.

ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,
वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है.     behad khoob ....wah wah wah "kya ana hai apki" 
.

नब्ज़ मेरी थम गयी तो क्या हुआ,
जान मुझ में आज भी भरपूर है.      ye baat gazal me hi ho sakti  thi 
.

जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,
पास है, लेकिन अभी हम दूर है.      behad komal ,,,,bhav purna 
.

बात अब उनसे मुहब्बत की न कर,
लोग समझेंगे, नशे में चूर है.           is zamane me yahi hota hai  
.

दिल से पढ़, ये आँख के बस की नहीं,

“नूर” की ये भी ग़ज़ल पुरनूर है.    is  gazal ko padne ke baad to ...is sher aur bhi bebak aur sachha ho gaya janab .........................


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 20, 2013 at 9:44pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है, मतला खासा पसंद आया, पूरी ग़ज़ल में एक शेर जो मुझे सबसे प्यार लगा उसे कोट करना चाहूंगा .....

बर्फ़ से रिश्ते हुए इस दौर में,
दिल सुलगता सा कोई तंदूर है.

वाह वाह, बहुत खूब, बधाई स्वीकार करें |

Comment by नादिर ख़ान on December 20, 2013 at 7:55pm

दिल से पढ़, ये आँख के बस की नहीं,
“नूर” की ये भी ग़ज़ल पुरनूर है.

वाह आदरणीय नीलेश जी, बहुत उम्दा वाकई पुरनूर  गज़ल है ।

Comment by umesh katara on December 20, 2013 at 7:53pm

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् क्या बात है वाहहहह पूरी गज़ल पसन्द आयी 

Comment by Tapan Dubey on December 20, 2013 at 7:49pm
पूरी गजल पसंद आई खास तोर पर ये शेर

ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,
वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है

:) क्या बात निलेश भाई

नब्ज़ मेरी थम गयी तो क्या हुआ,
जान मुझ में आज भी भरपूर है.



बात अब उनसे मुहब्बत की न कर,
लोग समझेंगे, नशे में चूर है

वाह वाह

इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2013 at 7:26pm

नूर भाई ------दिल से पढ़ यह आँख के बस की नहीं ---=-=-बस कायल हो गया हूँ  i

Comment by AVINASH S BAGDE on December 20, 2013 at 6:45pm

ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,
वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है...behatareen..

बर्फ़ से रिश्ते हुए इस दौर में, 
दिल सुलगता सा कोई तंदूर है.    ...umda

“नूर” की ये भी ग़ज़ल पुरनूर है....beshak..

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