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भंवरों ने घेरा

पहुंचाया अवसादों की गर्तो में

संयोग बड़ ही सुखकर थे जिनके

उनके ही वियोग भुजंग बने,लगे डसने

कौन शक्ति? जो हर क्षण

अपनी ही ओर हमें है खींच रही

कल से खींचा,आज छुड़ाया

जो आयेगा वो भी छुटेगा

नश्वरता में इक दिन जीवन ही डूबेगा 

क्षणभंगुरता से हो विकल हृदय

साश्वत खोज में जब भी तड़फा है

मोहवार्तों ने आलिंगन कर

जिज्ञासु तड़फ को मोड़ा है।

खार उदधि की हर विंदु में

रुचिकर रस का भास हुआ

भास भास ही सिद्ध हुआ 

सत कुछ भी तो दिखा नहीं

हे अविनाशी!

अविनाशी कर के भान करा दे

मेरी तड़फ को

जिसकी चिंगारी का 

कुछ बूंदों ने पल में नाश किया।

      -

विन्दु

(मौलिक,अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 12:14pm

बहुत ही सुन्दर! बहुत उच्च भावयुक्त रचना है ये! जिसे उतना ध्यानाकर्षण नहीं मिला जितना मिलना चाहिए था! आपको हार्दिक बधाई!

टाइपिंग की गलतियों पर ध्यान दें! इसने मज़ा काफी बिगाड़ा है!

सादर!

Comment by annapurna bajpai on November 26, 2013 at 7:42pm

वाह ! प्रिय वंदना सुंदर भावो का सम्प्रेषण हुआ है कुछ टंकण त्रुटियाँ है उन्हे सही कर लीजिये । इस सुंदर रचना हेतु बधाई । 

Comment by vijay nikore on November 26, 2013 at 6:51pm

आदरणीया विन्दु जी:

 

रचना के गहन भाव अच्छे लगे। खासकर निम्न....

 

//भंवरों ने घेरा

पहुंचाया अवसादों की गर्तो में//

 

//कौन शक्ति? जो हर क्षण

अपनी ही ओर हमें है खींच रही//

//क्षणभंगुरता से हो विकल हृदय

साश्वत खोज में जब भी तड़फा है//

बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by Meena Pathak on November 26, 2013 at 2:51pm

बहुत सुन्दर .... बधाई प्रिय वंदना 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 26, 2013 at 2:04pm

सुंदर प्रयास ..सादर बधाई के साथ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 24, 2013 at 4:13pm

आप अभ्यास  की प्रक्रिया  में है  i

ऐसे ही लिखती रहे

 

मेरी शुभकामनाये i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 24, 2013 at 9:05am

बहुत ही गहन व् सुंदर भाव से संजोयी पंक्तियाँ, बधाई स्वीकारें आदरणीया वंदना जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 23, 2013 at 9:25pm

आदरणीया वन्दना जी , !!!!!!! सुन्दर प्रस्तुति के लिये आपको बधाई !!!!! आदरणीया गीतिका जी की बातों को ध्यान ज़रूर दें !!!!!!!!

Comment by umesh katara on November 23, 2013 at 4:41pm

शानदार प्रस्तुति की है बधायी हो सर

 

Comment by वेदिका on November 23, 2013 at 1:21pm

संयोग बड़ ही सुखकर थे जिनके

उनके ही वियोग भुजंग बने,लगे डसने...... उक्त पंक्तियाँ बहुत प्रभावशाली है रचना मे! 

रचना मे शब्दों की अशुद्धियाँ है! शीर्षक तड़फ/ तड़प...?

प्रयास पर बधाई !!  

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