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आखिर आज वही बात सच हुई, जिसकी चेतावनी युगल  ने  नितिन को चार माह पूर्व  दी थी।
नितिन के पिता रामेश्वर जी के पास बटवारे के बाद केवल पांच एकड़ जमीन मिली थी। नितिन और विपिन दो भाई है। 
नितिन के पिता रामेश्वर रोटी राम है, नितिन और विपिन ने आठ माह पहले दो एकड़ जमीन बेच के व्यवसाय के लिए डाउन पेमेंट पर ट्रेक्टर लिया था। चार माह पहले ही नितिन की शादी हुयी, नितिन के घर की पहली ही शादी है जिसे पारम्परिक रूप से बहुत धूम धाम से होनी चाहिए, ऐसा रामेश्वर का मानना था। युगल ने नितिन व विपिन को खूब समझाने की कोशिश की अगर मन्दिर से शादी की जाये और दुल्हन के लिए एक मंगल सूत्र और पायल, बिछिया केवल से ही काम बन जाता जैसे की उनकी वर्तमान में हैसियत थी। और केवल कम हैसियत वाले लोग ही नही बल्कि सम्पन्न घर के लोग भी सादगी वाली शादी को अपनाने लगे है और ये सादगी वाली शादी करके कोई समाज में छोटा नहीं हो जाता, बल्कि दूरदर्शिता से काम लेते हुए शेष पैसो को बचा कर दुल्हन के लिए ही बैंक में राशी जमा कर देते है।   
लेकिन गाँव के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे और समझदार किसान, युगल की समझाइश को दरकिनार करते हुए नितिन, विपिन और रामेश्वर ने, परम्परा को निभाया। और परम्परावादी रामेश्वर और नितिन ने विपिन की सहमति के साथ शेष तीन एकड़ जमीन में एक एकड़ फिर से बेच के दुल्हन के लिए पूरे गहने बनवाये और बारात में भी धूम धाम मचा दी।  
अब बहू घर आ चुकी है, ट्रेक्टर के शेष ऋन के रूप में बैंक की किश्तें भी सामने है, और घर की व्यवस्थाएं भी भंग है     
अब उनके पास कोई रास्ता नही है, आर्थिक तंगी को लेकर नितिन और विपिन बौखला रहे है, रामेश्वर को इस परेशानी से कोई लेना देना नही है। बाकि जमीन भी विक्रय करने की नौबत आ गयी है। तो क्या घर की लक्ष्मी के स्वागत के लिए पैतृक सम्पत्ति को बेचना आवश्यक था? इस प्रश्न के साथ नितिन, कर्ज दारों के दवाब में अब घर में कैद है 
                                                                                                                          -जितेन्द्र  'गीत' 
 
(मौलिक व अप्रकाशित)   
          

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 17, 2013 at 9:44pm

आदरणीय बृजेश जी, तहे दिल से शुक्रिया आपका..आपने रचना पर दृष्टी डाली. 

पूरा श्रेय ओ बी ओ परिवार को  है ,ओ बी ओ का ही सानिध्य है, जो मैं लेखन कर्म को प्रेरित हुआ

Comment by विजय मिश्र on July 17, 2013 at 11:16am
उचित दृष्टान्त देकर मूलाधार से वंचित न होने की और लौकिकता के आडम्बर से परे रहने का प्रसंशनीय परामर्श सराहना योग्य तो है ही ,अनुकरणीय भी है जितेन्द्रजी . आभार .
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 17, 2013 at 8:33am

आ0 पस्तारिया भाई जी,  वाह!  बहुत खूब सूरत विचारगम्य प्रस्तुति।  हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 16, 2013 at 10:46pm

आदरणीय जीतेंद्र जी आपकी रचना को पढ़ कर अच्छा लगा हमारे आज के समाज मे बनावटी और दिखावटी ज़िंदगी को ही प्राथमिकता दी जाने लगी है, आपकी रचना मे निहित संदेश साफ है अपनी इस रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 16, 2013 at 10:14pm

मेरे अजीज़ जितेन्द्र जी, आपने जो तर्क दिए हैं वह अपनी जगह ठीक हैं लेकिन लघुकथा में बात इशारों में कही जाती है तथा अत्याधिक और अनावश्यक विस्तार इसके नन्हे अकार से मेल नहीं खाता है, मुझे अच्छी तरह पता है कि यह आपकी पहली रचना है, मगर फिर भी मैंने जानबूझ कर इतनी सख्त प्रतिक्रिया दी, मालूम है क्यों ? क्योंकि जीवनरक्षक टीके अगर किसी बच्चे को बचपन में ही दे दिए जाएँ तो बाद में संक्रमण का खतरा समाप्त हो जाता है. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 16, 2013 at 9:11pm

जीतेन्द्र जी ओ बी ओ पर आपकी ये पहली पोस्ट है जिसका तत्थ्य /मर्म बहुत ही सन्देश परक है बहुत अच्छा लगा पढ़ के बस विद्वद जनो की बात पर गौर करना ,फिलहाल बहुत बहुत बधाई आपको


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 16, 2013 at 8:53pm

एक पाठक के साथ साथ आप रचनाकर्म में भी संलग्न हो गये, मुझे सबसे बड़ी यही ख़ुशी है, आपकी लघुकथा में निहित भाव स्पष्ट हो रहा है, शिल्प धीरे धीरे आप पकड़ लेंगे, लिखते रहे , पढ़ते रहें, शुभकामनायें । 

Comment by बृजेश नीरज on July 16, 2013 at 6:16pm

आदरणीय जितेन्द्र जी यह कोई पहली रचना है शायद आपकी। इस मंच की सार्थकता ही है कि आपने लिखना भी शुरू कर दिया। बहुत बधाई आपको।
सुधीजनों ने जो मार्गदर्शन दिया है उस पर ध्यान दें। निखार अपने आप आ जाएगा। सतत लेखन करें।
इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 16, 2013 at 4:37pm
आदरणीय..रविकर जी,आपने रचना को पसंद किया, रचना सार्थक हुई..बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by रविकर on July 16, 2013 at 4:00pm

बढ़िया-कथा-
शुभकामनायें-

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