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"दस हजार रूपये की व्यवस्था कर ले रमेश, मुझे मेरे बच्चो को स्कूल ड्रेस और किताबें दिलानी है"

 किशन ने लापरवाही से अपने छोटे भाई रमेश को दवाब देते हुए बोला.

पिछले बड़े कर्जे से अभी अभी निपटा रमेश, अपने साले  द्वारा भी की गयी रुपयों की मांग को लेकर परेशान होते हुये बोला "हाँ, ठीक है, मै मालिक से बात करता हूँ." अपने दोस्त लखन के साथ रमेश मालिक के पास पैसे मांगने गया.

मालिक युगल ने अचरज करते हुए पूछा " अरे! तुझे इतनी बड़ी रकम की जरुरत पड गयी? तू अभी तो कर्जे से निपटा है,"

परेशान रमेश चुप ही रहा|

तभी तपाक से लखन बोला "भैया! ये जरूरत इसकी अपनी नही, इसका सीधा स्वभाव देख कर, इसका भाई और साला इससे रूपये ऐठने के चक्कर में है| इसकी घरवाली इससे रोज लडती है की"अगर तूने थारा भाई का पैसा दियाच तो म्हारा भाई का भी दीजो, नि तो थारी रोटी तू ही ब्नाजो" इस लिए बेचारा दोनों के लिए आपसे पैसा मांग रहा है|

लखन अपनी राम कहानी आगे सुनाता हुआ बोला " भैया! जब पिछली बार मैंने अपने भाई और साले को अपनी जमानत पर  कर्जा दिलवाया था , लेकिन जब मै एक महीने तक बीमार पड़ा रहा तो अपने भाई के लिए मुझसे लड़ाई करने वाली मेरी लुगाई का न तो भाई आया न मेरा भाई, और तो और मेरी लुगाई को ही दुधमुहे  बच्चे को लेकर मजूरी पे जाना पड़ा था|

रमेश चुप ही रहा लेकिन लखन से ये "सच" जान के मन ही मन एक निर्णय ले चुका था, जिसे सुने बिना ही लखन और युगल साफ़ साफ समझ पा रहे थे|                    

                                                                                                   -जितेन्द्र 'गीत' 

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 9:49pm

"सच कहा आपने आदरणीया..प्रज्ञा जी, रचना को सराहने के लिए..बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 5:54pm

आपका बहुत बहुत आभार....आदरणीय..बृजेश जी.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 5:53pm

सही कहा आपने आदरणीया कुंती जी! 

आज के समय में इंसान का जीवन चिन्ताओ से शुरू होकर, चिन्ताओ में ही ख़त्म हो जाता है ...आपने रचना को सराहा, बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 5:45pm

आदरणीया  ..गीतिका जी, आपने रचना पर दृष्टि डाली , रचना के सकारात्मकता होने को स्पष्ट किया ! आपका बहुत बहुत शुक्रिया...मुझे मार्गदर्शन देकर , लेखनकर्म में उत्साह बर्धन करते रहियेगा

Comment by Pragya Srivastava on July 18, 2013 at 5:43pm

इंसान के सीधे पन को लोग उसकी कमजोरी मान लेते हैं

                         जीत जी आपको इस कथा लेखन पर बधाई

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 3:37pm

इस कथा पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 1:15pm

इंसान को कब ऐसे जीवन से छुटकारा मिले ...न घर में चैन न बाहर...जैसे एक चक्र्व्यूह में फँसा.....कभी नमक तेल की चिंता  तो कर्ज की भुगतान.

जीत जी, आपने समाज का एक  बहुत ही कड़वी पहलू पर अपने कलम की नोक रखी है.

सादर

कुंती

Comment by वेदिका on July 18, 2013 at 12:51pm

बहुत ही विचारशील घटना आपने साझा की हमसे| और सकारात्मकता से कथा को अंत किया|

आपके लेखन कर्म में उत्साह से संलग्न होने पर आपको शत शत शुभकामनाये!!

आदरणीय जीत जी!!  

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