For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहुत देर से 

धूप ही धूप  थी 

दूर तक

कोई दरख्त नहीं 

जिसकी छाँव तले मै 

आ जाऊं !

बहुत दिनों से

कंठ  सूखा था

दिनों तक कोई

लहर नहीं

जिसे जी भर मै

पी जाऊं !

कई जेठों  से

स्वेद की कितनी बूंदें

माथे छलछलाती थीं

कब शीतल पुरवाई में

समा जाऊं !

आ जाओ

बस आ ही जाओ

मेरी जिन्दगी 

छाँव, तृप्ति और श्वास

मेरी तुम !

-जीतेन्द्र 'गीत'  

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 906

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 30, 2013 at 7:08pm

आदरणीया प्रियंका जी, 

आपने रचना को सराहा, लेखन कर्म को सफलता मिली ,आपका बहुत बहुत आभार

सादर!!

Comment by Priyanka singh on July 30, 2013 at 6:13pm

आ जाओ

बस आ ही जाओ

मेरी जिन्दगी 

छाँव, तृप्ति और श्वास

मेरी तुम !

सुन्दर......लाजवाब ....बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 30, 2013 at 10:57am

आदरणीय सौरभ जी,

मेरा पाठक से रचनाकार  हो जाना , मुझे भी उतना ही आश्चर्य चकित कर रहा है ......

मैंने कभी नही सोचा था की मै कविता लिख भी सकूँगा,  मै जब से ओ बी ओ परिवार में जुडा हूँ , साहित्य से लगाव हो गया, मैंने बतौर पाठक , रचनाकारों की रचनाओं का पठन किया, जैसे रचनाकर अंतर्मन की गहराइयों में जाकर रचना को इक रूप देता है, वैसे ही उस रचना का भाव समझने के लिए , पाठक को भी उसी गहरे तल तक जा कर मनन करना होता है, ओ बी ओ के रचनाकारों से प्रेरणा पाकर मैंने एक रचना लिखी जो की आपके सामने है, मन में संकोच था, प्रकाशन को दूँ या न दूँ  फिर ओ बी ओ के ही सदस्य एक सम्मानीय रचनाकार ने मेरी रचना को पढ़ा और कहा-"अरे वाह, ये आपकी प्रथम रचना है? प्रथम दृष्टया विश्वास ही नही होता|" और मुझमे इतनी उर्जा भर दी की, की ये रचना मैंने आप सब के सम्मुख रख दी|

सादर 

  

Comment by Ketan Parmar on July 26, 2013 at 5:46pm

आप साथ देंगे ,अवश्य सीख जाऊंगा, भाई जी

aapke is comment par maine kaha tha ke main nahi sikha sakta kisi ko.

kyuki main khud sikh raha hoo.

or apne kah diya ke aapse kisne kaha sikhane ko.

or ab main aage iss vishay me koi charcha karna nahi chahtaa aap acche lekhak hai kripyaa mujhe maaf kare main bahut bada agyani hoo.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 26, 2013 at 5:09pm

आदरणीय केतन जी! 

आपने एक तरफ के ही सम्वाद लिखे, जो गलतफहमी पैदा करते है, पहले तो आपने ही कहा था की की "मै सिखाने नही आया हूँ", तिस पर मैंने निवेदन किया था की, अधूरापन बता दीजिये, ताकि मै उसे पूर्ण कर दूँ, और आपने इसे पब्लिकली कर दिया,,, अगर आप रचना में कमी नही बता सकते तो आपको नये रचना कार का हौसला बढ़ाना चाहिए,, खैर .... मुझे सीखना है, इसलिए मै सीखूंगा|  

आपने रचना को समय दिया,, आभार

सादर            

Comment by Ketan Parmar on July 26, 2013 at 4:28pm

main aapka manobal todna nahi chahta hoo magar jab baat aap yaha karna chahte hai toh main aapke msg ko yah rakhnaa chunga aapne likha tha aap jante kya hai or aapse kisane kaha sikhane ke liye.

pahli baat main yaha par kisi ko sikhane ke liye nahi aayaa hoo, main khud sikh raha hoo.

aur aapki kavitaa acche bhaav se sampurn hai jeet bhai, magar aapne mere comment ka galat matlab nikaala adhurepan se meraa ashay tha ke kavita me or kuch add hota jaise saavan me kya kya hota hai prem prasang or woh sab toh or bhi jyaada nikhar aataa magar kher meri inn baat se koi matlab nahi hai aap sarvagya hai bhai ji

Saadar

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 26, 2013 at 4:22pm

// Magar na jane kyu mujhe kuch kami mehsus ho rahi hai //

// rachna sampurn hai // ........ आदरणीय केतन जी, मेरी प्रथम कविता रचना थी, बस कुछ और नही आपका "अधूरेपन वाला कमेन्ट" देख कर अपनी गलतियों की ओर इशारा चाहा था, आपने तो स्टेटमेंट ही बदल दिया आदरणीय. मेरा मनोबल टूट रहा है ........     

Comment by Ketan Parmar on July 26, 2013 at 4:07pm

rachna sampurn hai

Comment by वेदिका on July 25, 2013 at 8:12pm

खूबसूरत और भावपूर्ण कविता,

सारगर्भित और पर्याप्त स्पेस घेरती हुयी रचना,

अगर आप स्वयं नही कहें तो विश्वास नही आता कि, सचमुच आपकी प्रथम रचना है ये??

लेखन के शुभ पग को धरने के लिए शत शत शुभकामनायें!!!

     

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 25, 2013 at 7:50pm

आदरणीय आशीष भाई,

आपके उत्साह बर्धन के लिए , आपका बहुत बहुत आभार..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
2 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service