For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्षणिका : नीम चढ़ा करेला

 

नीम चढ़ा करेला

सेहत के लिए सबसे अच्छा होता है

लेकिन चर्बी को सेहत मानने वाले समाज में

ये कहीं नहीं बिकता

 

क्षणिका : हवा की तरह

 

मुझसे प्रेम करो हवा की तरह

ताकि तुम्हारा हर एक अणु

मेरे जिस्म के हर बिन्दु से टकराये

और तुमसे दूर होते ही

मेरी नसों में बह रहा लहू

मुझे फाड़कर रख दे

 

क्षणिका : विकास

 

चिकित्सा कम कर देती है इंसान के मरने की संभावना

अभियांत्रिकी कम कर देती है दुर्घटनाओं की संभावना

साहित्य कम कर देता है इंसानियत के मरने की संभावना

ये घटती हुई संभावना ही विकास है

बाकी सब बकवास है

 

 क्षणिका : भाषा चक्र

 

भावों का सूर्य उगा

शब्दों के मेघ बने

ज्ञान के पहाड़ों पर

झूम झूम बरसे

फूट चलीं भाषा की नदियाँ

एक दूसरे से संगम करतीं

प्रेम के महासागर में जा गिरीं

Views: 537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 11:26am

आदरणीय महोदय जी 

सादर 

छनिकाएं हैं उत्तम 

बधाई सर्वोत्तम 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2013 at 9:58am

पहले नीम चढ़ा करेला और हवा की तरह !

चर्बी को सेहत मानने वाला समाज हर तरह की चर्बियों के इज़ाफ़े के लिए तत्पर है. नीम पर चढ़ा करेला उपलब्ध हुआ तो क्या. उसकी हिनाई तो यों होगी कि नीम पर चढ़े करेले क्या हर तरह के करेले हाशिये पर रख दिये जाते हैं. उनका वज़ूद ही सवालों के दायरे में होता है. और बाद की पाढ़ी करेले को करेला के वज़ूद पर ही सवाल हो जाते हैं !

हवा की तरह में जिस आसानी से आपने सर्वव्याप्तता को शब्द दिया है व अभिभूत करता है, आदरणीय धर्मेन्द्रजी.

विकास के इंगित थोड़े अक्लिष्ट हैं अतः बोधगम्य हैं. एक बात अवश्य है कि इस क्षणिका में कई तरह की संभावनाओं की बात हुई है तो ये घटती हुई संभावना ही विकास है जैसी निर्णय पंक्ति बहुवचन की होती. यह मेरा एक सझाव भर है.

बहुत सरल तरीके से आपनेभौतिक विकास को परिभाषित कर दिया है, आदरणीय.

भावों का चक्र .. एकदम भौगोलिक या प्राणिशास्त्रीय किसी चक्र का प्रारूप बनाता दीखता है. सटीक कल्पना की है आपने.

बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ इन क्षणिकाओं के लिए !

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 6, 2013 at 8:43am

आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर, सभी क्षणिकाएँ सुन्दर बन पड़ी है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. 

Comment by seema agrawal on May 5, 2013 at 8:18pm

वाह बहुत खूब धर्मेन्द्र जी .........विकास के लिए विशेष बधाई 

चिकित्सा कम कर देती है इंसान के मरने की संभावना

अभियांत्रिकी कम कर देती है दुर्घटनाओं की संभावना

साहित्य कम कर देता है इंसानियत के मरने की संभावना

ये घटती हुई संभावना ही विकास है

बाकी सब बकवास है

Comment by manoj shukla on May 5, 2013 at 4:32pm
बहुत सुन्दर अभिव्यक्तियाँ.... आदर्णीय बधाई स्वीकार करें
Comment by coontee mukerji on May 5, 2013 at 3:35pm

विकास

 

चिकित्सा कम कर देती है इंसान के मरने की संभावना

अभियांत्रिकी कम कर देती है दुर्घटनाओं की संभावना

साहित्य कम कर देता है इंसानियत के मरने की संभावना

ये घटती हुई संभावना ही विकास है

बाकी सब बकवास है............अंतिम दो  लाइन विचारणिय  है  आदरणीय .

: भाषा चक्र

 

भावों का सूर्य उगा

शब्दों के मेघ बने

ज्ञान के पहाड़ों पर

झूम झूम बरसे

फूट चलीं भाषा की नदियाँ

एक दूसरे से संगम करतीं

प्रेम के महासागर में जा गिरीं

बहुत  सुंदर ......./ सादर  / कुंती .

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 5, 2013 at 3:13pm

विकास ---चिकित्सा कम कर देती है इंसान के मरने की संभावना

अभियांत्रिकी कम कर देती है दुर्घटनाओं की संभावना

साहित्य कम कर देता है इंसानियत के मरने की संभावना

ये घटती हुई संभावना ही विकास है, बाकी सब बकवास है | - घटती संभावनाओ पर सुन्दर क्षणिका के लिए बधाई

भाषा चक्र ---भावों का सूर्य उगा

शब्दों के मेघ बने, ज्ञान के पहाड़ों पर

झूम झूम बरसे,  फूट चलीं भाषा की नदियाँ

एक दूसरे से संगम करतीं,

प्रेम के महासागर में जा गिरीं-- ये है बढती संभावनाए है, हार्दिक बधाई भाई धर्मेन्द्र सिंह जी 

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 5, 2013 at 11:59am

आ0 धमेन्द्र जी, ’झूम झूम बरसे
फूट चलीं भाषा की नदियाँ
एक दूसरे से संगम करतीं
प्रेम के महासागर में जा गिरीं’ अतिसुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service