For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल "संदली सा बदन है क्या कहिये"

========ग़ज़ल=======

संदली सा बदन है क्या कहिये
फूल जैसी छुअन है क्या कहिये

जल उठा है बदन तुझे छूकर
हुश्न है या अगन है क्या कहिये

सर से पा तक तुझे वो छूता है
आपका पैरहन है क्या कहिये

तीर नज़रो के जब चलें दिल पर
होती मीठी चुभन है क्या कहिये

घर मेरा आप जैसा गुल पा कर
खुद को समझे चमन है क्या कहिये

इश्क का रोग लग गया शायद
खोया खोया जेहन है क्या कहिये

हमसे नज़रें चुराते फिरते हैं  
राज-ए-उल्फत दफ़न है क्या कहिये

"दीप" सब जानते हैं ये तेरी
दिल्लगी आदतन है क्या कहिये

संदीप  पटेल  "दीप"

Views: 639

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 3, 2013 at 11:11pm

सर से पा तक तुझे वो छूता है
आपका पैरहन है क्या कहिये

तीर नज़रो के जब चलें दिल पर
होती मीठी चुभन है क्या कहिये

घर मेरा आप जैसा गुल पा कर
खुद को समझे चमन है क्या कहिये

वाह भाई संदीप जी सादर, सुन्दर गजल क्या कहिये. बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 3, 2013 at 2:31pm

कोमल सी सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई आ. संदीप जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 2:10pm

भाईजी, पारंपरिक ग़ज़लगोई कीजिये, मगर उन्हीं बिम्बों से कुछ नयापन भी तो दिखे, ये कहना था मेरा. शृंगार बुरा विषय थोड़े न है..

:-)))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 3, 2013 at 11:39am

श्रृंगार रस से सराबोर इस झूमती हुई गज़ल के लिए बधाई..........

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 3, 2013 at 10:48am

आदरणीय विजय सर जी तहे दिल से शुक्रिया इस हौसलाफजाई के लिए

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 3, 2013 at 10:48am

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम

गुरुदेव इस बार मैंने पारम्परिक ग़ज़ल कहने का प्रयास किया है जिसमें श्रिंगार को पिरोने की कोशिश की है

आपकी आशाओं में खरा उतरने का भरसक प्रयास करूँगा

स्नेह और आशीष बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 3, 2013 at 10:46am

आदरणीया महिमा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल की पसंदगी के लिए

Comment by vijay nikore on February 3, 2013 at 8:08am

गज़ल अच्छी लगी।

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 3, 2013 at 7:11am

घर मेरा आप जैसा गुल पा कर
खुद को समझे चमन है क्या कहिये 

हर संतुष्ट पति का दिल स्वर पा गया है. .. :-))))

वैसे, पूरी ग़ज़ल के परिप्रेक्ष्य में कहूँ तो आपसे कुछ और बेहतर की अपेक्षा ग़लत नहीं है.. .

Comment by MAHIMA SHREE on February 2, 2013 at 10:56pm

क्या बात है ...बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service