For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी...( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221-1221-1221-122

बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी
पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी (1)

माज़ी को भुला कर मियाँ अच्छा किया मैंने
रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी (2)

मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ
कमरे में हवाओं की शरारत भी बहुत थी (3)

है मुझसे अदावत उन्हें अब हद से ज़ियादा
था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी (4)

ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे
हाकिम की उसी पर ही इनायत भी बहुत थी (5)

दिखने में बहुत सख़्त था पत्थर की तरह वो
फूलों सी मगर उनमें नज़ाक़त भी बहुत थी (6)

वैसे भी अलग होना था इक दिन हमें 'सालिक'
थे पास मगर हम में मसाफ़त भी बहुत थी (7)

* मौलिक एवं अप्रकाशित

©सालिक गणवीर

Views: 1000

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on August 27, 2021 at 11:01am

आदरणीय भाई बृजेश कुमार 'ब्रज' ' जी
सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका तह -ए -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

Comment by सालिक गणवीर on August 27, 2021 at 11:00am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका तह -ए -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

Comment by सालिक गणवीर on August 27, 2021 at 10:59am

आदरणीय Ravi Shukla जी
सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका तह -ए -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 26, 2021 at 8:25pm

खूबसूरत ग़ज़ल और शानदार चर्चा के लिए आपका अभिनंदन है आदरणीय

Comment by Ravi Shukla on August 26, 2021 at 12:36pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी उम्दा ग़ज़ल कही आपने  दिली मुबारक बाद कुबूल करें ग़ज़ल पर हुई चर्चा से काफी कुछ सीखने को मिला । 

Comment by सालिक गणवीर on August 23, 2021 at 8:32pm
मुहतरम Samar kabeer साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए आपका तह -ए -दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। आपकी क़ीमती इस्लाह के ममनून हूँ. सलामत रहें।
Comment by Samar kabeer on August 19, 2021 at 3:22pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में मेरे नज़दीक रब्त मौजूद है ।

'रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी'

इस मिसरे में सहीह तलफ़्फ़ुज़ "अज़िय्यत" है, जनाब अमीर साहिब ठीक कहते हैं, इस तरह लिखें वज़्न तो एक ही रहेगा ।

'मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ'

इस मिसरे में 'भी' की जगह "ही" शब्द उचित होगा ।

'था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी'

इस मिसरे में 'वो' शब्द भर्ती का है,यूँ कह सकते हैं:-

'पर एक जमाना था महब्बत भी बहुत थी'

'ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे
हाकिम की उसी पर ही इनायत भी बहुत थी'

इस शैर को यूँ कहें:-

'ज़ालिम की शिकायत भला हम किस तरह करते

उस पर मियाँ हाकिम की इनायत भी बहुत थी'

'दिखने में बहुत सख़्त था पत्थर की तरह वो
फूलों सी मगर उनमें नज़ाक़त भी बहुत थी'

इस शैर में शुतर गुरबा दोष है,जनाब अमीर साहिब से सहमत हूँ, सानी मिसरे में 'उनमें' की जगह "उसमें" कर लें,दोष निकल जाएगा ।

'थे पास मगर हम में मसाफ़त भी बहुत थी'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, मगर चलेगा ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 19, 2021 at 10:38am

//जनाब मैंने इसलिए कहा क्योंकि कबीर साहब इस मतले को पहले ही ,ओके कह चुके हैं अब बताइए?मैं क्या कहूँ?//

जनाब गणवीर जी, इस ग़ज़ल पर जनाब समर कबीर साहिब की कोई टिप्पणी या अनुमोदन अभी तक तो दृष्टिगोचर नहीं हुआ है, फिर भी मैं कहूँगा कि आपके ख़याल और नज़रिए की आप ख़ुद सबसे बहतर व्याख्या कर सकते हैं। हो सकता है समर कबीर साहिब ने फ़ोन पर हुई वार्ता में आपके इस मतले का अनुमोदन किया हो जबकि वो पूरी तरह से फोकस्ड न हों अन्यथा अभी तक वो इस ब्लॉग पोस्ट पर भी अपने अनुमोदन की टिप्पणी दे चुके होते। बहरहाल जनाब समर कबीर साहिब की बेशक़ीमती इस्लाह का इंतज़ार रहेगा।  सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2021 at 7:11am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by सालिक गणवीर on August 18, 2021 at 10:30pm

आदरणीय 'अमीर' साहिब

आदाब

जनाब मैंने इसलिए कहा क्योंकि कबीर साहब  इस मतले को पहले ही ,ओके कह चुके हैं. अब बताइए?मैं क्या कहूँ?ग़ुस्ताख़ी  मुआफ़ हो मुहतरम.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"गत दो दिनों से तरही मुशायरे में उत्पन्न हुई दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की जानकारी मुझे प्राप्त हो रही…"
9 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मोहतरम समर कबीर साहब आदाब,चूंकि आपने नाम लेकर कहा इसलिए कमेंट कर रहा हूँ।आपका हमेशा से मैं एहतराम…"
45 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"सौरभ पाण्डेय, इस गरिमामय मंच का प्रतिरूप / प्रतिनिधि किसी स्वप्न में भी नहीं हो सकता, आदरणीय नीलेश…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय समर सर,वैसे तो आपने उत्तर आ. सौरब सर की पोस्ट पर दिया है जिस पर मुझ जैसे किसी भी व्यक्ति को…"
2 hours ago
Samar kabeer replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"प्रिय मंच को आदाब, Euphonic अमित जी पिछले तीन साल से मुझसे जुड़े हुए हैं और ग़ज़ल सीख रहे हैं इस बीच…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
10 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service