For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोस्तो गर ज़िन्दगी में कामरानी चाहिए
ज़ह्न-ओ-दिल से गर्द नफ़रत की हटानी चाहिए

अर्ज़ कर दूँ आख़िरी ख़्वाहिश इजाज़त हो अगर
एक शब मुझको तुम्हारी मेज़बानी चाहिए

ज़िल्ल-ए-सुब्हानी अगर कुछ आपसे बच पाए तो
हम ग़रीबों को भी थोड़ी शादमानी चाहिए

मूँद कर आँखें न चलना याद रखना ये सबक़
ज़िन्दगी में हर क़दम पर सावधानी चाहिए

ज़िन्दगी में लाज़मी तो है मगर इंसान को
दफ़्न करने के लिये भी माल पानी चाहिए

फ़ज़्ल से रब के मुकम्मल हो गई मेरी ग़ज़ल
दोस्तो अब आपकी बस क़द्र दानी चाहिए

'नूर' साहिब ने लिखी ये ख़त में फ़रमाइश मुझे
हीरे मोती से जड़ी इक कूड़े दानी चाहिए

आज कल तो महफ़िलों में शाइरी के नाम पर
ऐ 'समर' ग़ज़लें नहीं बस नोहा ख़्वानी चाहिए

'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1444

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on November 20, 2020 at 5:20pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिय:

Comment by Samar kabeer on November 20, 2020 at 5:19pm

जनाब सालिक गणवीर जी आपका बहुत बहुत शुक्रिय:

Comment by Samar kabeer on November 20, 2020 at 5:19pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आपका बहुत बहुत शुक्रिय:

Comment by Samar kabeer on November 20, 2020 at 5:18pm

जनाब चेतन प्रकाश जी आपका बहुत बहुत शुक्रिय:

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 20, 2020 at 4:13pm

वाह वाह आ. समर सर..
आयोजन में इंतज़ार था आपकी ग़ज़ल का ..
बहुत बहुत बधाई 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 19, 2020 at 9:08pm

वाह आदरणीय...क्या ही शानदार ग़ज़ल पढ़ने को मिली...हरेक शे'र बेमिसाल...

Comment by Md. Anis arman on November 19, 2020 at 6:40pm

समर कबीर साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है एक अलग रंग लिए हुए हर शेर उस्तादों वाला लग रहा है कवाफ़ी बेहतरीन ढंग से निभाए गए है बहुत बहुत मुबारक 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 19, 2020 at 12:14pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर कबीर साहब जी।आदाब। लाज़वाब गज़ल।

ज़िल्ल-ए-सुब्हानी अगर कुछ आपसे बच पाए तो
हम ग़रीबों को भी थोड़ी शादमानी चाहिए

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 11, 2020 at 1:28pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by सालिक गणवीर on November 10, 2020 at 10:20pm

आदरणीय समर कबीर साहिब
सादर अभिवादन
एक उम्द: तरही ग़ज़ल के लिए ढेरों बधाइयाँ और शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें . सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service