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वादे इरादे (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी (46)

दस साल बाद एक समारोह में उन दोनों की अप्रत्याशित मुलाक़ात हो गई। न चाहते हुए भी बात चल पड़ी।

"मैंने तुमसे वादा किया था कि मैं आई.ए.एस. अधिकारी बनकर दिखाऊंगा, मैंने पाँच साल ख़ूब मेहनत की, साक्षात्कार तक पहुंच जाता था लेकिन नसीब में तो प्रोफेसर बनना ही लिखा था !"

"मेरे परिवार के स्टेटस का सवाल था। हमारे यहाँ कोई भी रिश्ता प्रशासनिक सेवा से नीचे के लोगों में नहीं हुआ ! आई.ए.एस. बनने के बाद मैं अपने माँ-बाप को और ज़्यादा इंतज़ार नहीं करा सकती थी ! .... लेेेेकिन तुमने तो पागलपन की हद कर दी ! तुमने अब तक शादी क्यों नहीं की ! मैंने कोई तुम्हीं से विवाह करने का वादा तो किया न था, वो तो मैं तुम्हारी अद्भुत प्रतिभा से प्रभावित मात्र थी !"

"और मैंने उसे प्यार समझ लिया था !"

"वह तुम्हारी मूर्खता ही थी ! कुछ भी सोचने से पहले तुम्हें अपने माँ-बाप का लेवल तो देखना था ! मैंने अपने माँ-बाप से किये वादे के मुताबिक आई.ए.एस. बनने के बाद एक आई.ए.एस. से ही शादी की । वादे निभाना हर एक के बस की बात नहीं !

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 6:25am
इस रचना पटल पर समय देने हेतु सभी पाठकगण को सादर हार्दिक धन्यवाद।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 12, 2016 at 10:48am
मेरी इस ब्लोग पोस्ट पर उपस्थित हो कर समीक्षात्मक टिप्पणी करने व मुझे प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी व आदरणीय सतविंदर कुमार जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 28, 2015 at 11:06am

आज कल के रिश्ते भावनाओं पर नहीं टिकते प्रेक्टिकल पर ज्यादा हो गए हैं वो पहले की प्रेम कहानियाँ होती थी जिसमे धर्म वर्ण अर्थ की कोई बंदिश न होकर बस रिश्ते जबान भर से टिके होते थे यथार्थ को दिखाती यह एक सफल लघु कथा है बहुत- बहुत बधाई आ० शेख़ उस्मानी जी |

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 27, 2015 at 7:56pm
सुंदर।आप सही कह रहे है आदरणीय शेख साहब।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 27, 2015 at 7:31pm
मैंने यह अनुभव किया है कि आसपास की सच्ची घटना पर आधारित 90% सच्चाई में 10% कल्पना और सार्थक सटीक संवाद का प्रयोग करके जो लघुकथा मैंने अभी तक रची, उसे बहुत पसंद किया गया व सराहा गया है। मेरी इस रचना पर अपना अमूल्य समय देकर सुंदर सटीक टिप्पणियों से मुझे प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कान्ता राय जी, आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीय सुशील सरना जी आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,आदरणीय मनन कुमार सिंह जी व आदरणीया राहिला जी ।
Comment by kanta roy on December 26, 2015 at 12:56pm

स्टेट्स के चिता में बलि चढ़ते रिश्ते अफ़सोस और कुछ नहीं ,सच ही कहते है महान दार्शनिक प्लेटो कि --प्रेम एक गंभीर मानसिक रोग है।
सुन्दर लघुकथा हुई है आपकी आदरणीय शहज़ाद जी। बधाई !

Comment by Sushil Sarna on December 24, 2015 at 8:13pm

वादे निभाना हर एक के बस की बात नहीं !

इस पंच लाईन ने आदरणीय लघु कथा के मर्म को जीत लिया है। इस सुंदर सृजन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय उस्मानी साहिब।

Comment by Manan Kumar singh on December 24, 2015 at 11:53am
बढ़िया
Comment by Manan Kumar singh on December 24, 2015 at 11:52am
बहुत बाडबढिया उस्मान भाई,मुबारक हो!
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2015 at 11:11am

यह कथा मानसिकता की कई परतें खोलती है ...हार्दिक बधाई ...

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