(१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२ )
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न हसरतों से ज़ियादा रखें लगाव कभी
वगरना क़ल्ब में मुमकिन है कोई घाव कभी
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इमारतें जो बनाते जनाब रिश्तों की
उन्हें भी चाहिए होता है रखरखाव कभी
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हयात का ये सफर एक सा कहाँ होता
कभी ख़ुशी तो मिले ग़म का भी पड़ाव कभी
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न इश्क़ की भी ख़ुमारी सदा रहे यकसाँ
कभी उतार का आलम है और चढाव कभी
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अदब से पेश ज़रा आइये ज़माने से
कि डाल सकता है मुश्किल में बेज़ा ताव कभी
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हयात आपकी ख़तरे में डाल सकता है
क़रीब आने न दीजै कोई तनाव कभी
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यक़ीन कीजै बदलना है वक़्त की फ़ितरत
कभी पुलाव का मौसम तो है अभाव कभी
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सभी को बख़्शी बराबर है नैमत-ए-क़ुदरत
ख़ुदा तो करता नहीं कोई भेदभाव कभी
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सलाह मुफ़्त में देना 'तुरंत ' छोड़ें अब
कि बेवक़ूफ़ को हरगिज़ न दें सुझाव कभी
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
०८/०१/२०१९
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
Mahendra Kumar जी ,आपकी स्नेहिल सराहना से अभिभूत हूँ | सादर नमन |
न हसरतों से ज़ियादा रखें लगाव कभी
वगरना क़ल्ब में मुमकिन है कोई घाव कभी ...बहुत ख़ूब!
इस बढ़िया ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी. सादर.
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी , सदर नमस्कार | आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार | जी बिलकुल आदरणीय Samar kabeer साहेब की इस्लाह निश्चित रूप से मेरे कलाम को बेहतर बनाने में अमूल्य योगदान दे रही है | तदनुसार संसोधन कर दिया है |
आद0 गिरधारी सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल पर दिली मुबारकबाद,, शेष आद0 समर साहब के बातों का संज्ञान लीजियेगा।
भाई Ajay Tiwari जी
खाकसार का कलाम पसन्द करने और हौसला आफजाई का बेहद शुक्रिया |
आदरणीय गिरधारी जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है.हार्दिक बधाई.
आदरणीय गिरधारी सिंह जी बढ़िया गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारकबाद पेश करता हूं
आदरणीय Sameer Kabeer साहेब ,बहुत बढ़िया इस्लाह ,बहुत बहुत आभार | अभी संशोधित करता हूँ | सादर नमन |
'क़रीब आने न दीजै कोई तनाव कभी'
ये मिसरा देखिये?
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