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प्रस्तुत है कुछ पुच्छल दोहे 
=====================

प्रेम और उत्साह जब ,पैदा करें तरंग | 
छोड़ कुसुम के तीर तब , विहँसे तनिक अनंग || 
मिलन का क्षण ही ऐसा | 
***
देश प्रेम की हर समय ,उठती रहे हिलोर | 
उन्नति की फिर देश में ,निश्चित होगी भोर || 
यही हो लक्ष्य हमेशा | 
***
ह्रदय सभी के आ सकें ,थोड़े से भी पास | 
फिर निश्चित इस देश में ,छा जाये उल्लास || 
यत्न सब कर के देखें | 
***
एक रहें उत्साह रख , छोड़ दिलों के भेद | 
कर सकते हम मिल सभी ,आसमान में छेद || 
एकता में ही बल है | 
***
मन उमंग तन हो चपल ,यौवन के संकेत | 
सावधान अब काम का , जगने वाला प्रेत || 
शीघ्र फिर शांत न होगा |
***
प्रेम प्यार उल्फत सभी ,एक शब्द पर्याय | 
जिसके जीवन में नहीं ,बदकिस्मत कहलाय || 
हाथ की बदलें रेखा | 
***
इच्छा प्रभु की हो अगर , उपजे प्रीत प्रगाढ़ | 
वह चाहे तो प्रेम की , आ सकती है बाढ़ || 
एक बादल है काफी | 
***
मित्र करे तो मित्रता ,मीत करे तो प्यार | 
बहन करे तो स्नेह है ,माँ जब करे दुलार || 
प्रीत के रंग कई हैं | 
***
राधा-कान्हा प्रेम की , सुन्दर एक मिसाल | 
पढ़ सुन कर इनकी कथा ,होता जगत निहाल ||
बहुत रस आता भैया | 
***
कह 'तुरंत' जिसने किया , प्रेम सुधा का पान | 
रहता उसको है कहाँ ,जीव जगत का भान || 
सुरा यह पीकर देखो | 
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 7, 2019 at 4:28pm

आदरणीय  Samar kabee जी ,सर्वप्रथम तो दोहों की सराहना के लिए हार्दिक आभार एवं सादर नमन |  आप का ध्यान सही जगह गया है | और आपने पढ़ा भी ठीक ही है मैंने चपल-ता ही लिखा है | हिंदी में मात्रा गणना १११२ इस प्रकार से की जाती है | मैंने यही सोच कर इसे चप ल-ता ही पढ़ा | किंतु मुझे आपकी बात सही लगी | वस्तुतः हम अपनी मर्ज़ी से पढ़ सकते हैं लेकिन लय के हिसाब से उर्दू का फार्मूला ही सही बैठता है |हालाँकि हिंदी के कई विद्वान मात्रा गणना करते समय लघु लघु लघु को अलग मानकर करते हैं | जैसे समर =१२ और २१ दोनों ले लेते हैं जबकि लय के हिसाब से स-मर अधिक ठीक  लगता है | आपके निर्देश के अनुसार १२२ ही इसका सही वजन है | इसलिए इस पंक्ति को इस प्रकार परिवर्तित कर रहा हूँ -मन उमंग तन हो चपल ,यौवन के संकेत | पुनः आभार | कृपया इसी प्रकार स्नेह बनाये रखें | 

Comment by Samar kabeer on January 7, 2019 at 3:00pm

क्षमा !

मैं इसे 'च पल ता' पढ़ गया,ये शायद "चप ल ता" है ।

Comment by Samar kabeer on January 7, 2019 at 2:57pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, दोहों का अच्छा प्रयास हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।


'मन उमंग तन चपलता'

इस पंक्ति के विषम चरण में 'चपलता'122 है,जबकि यहाँ 212 होना चाहिये, देखियेगा । 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 7, 2019 at 9:54am

नमस्कार भाई सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ,आपके उत्साहवर्धक शब्दों ने अभिभूत कर दिया है | सादर आभार | 

Comment by नाथ सोनांचली on January 7, 2019 at 9:15am

आद0गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। दोहों का सुंदर प्रयास किया है आपने,, बधाई स्वीकार कीजिये

कृपया ध्यान दे...

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