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युगों तक जगत में वही जी सका है
हृदय अपना जिसने समंदर किया है
हक़ीक़त से नज़रें हटाने से यारो
कभी झूठ भी क्या कहीं सच हुआ है?
कहाँ रात के मानकों से हो चिपके
उजाले का वाहक तो सूरज रहा है
गरल एकता के लिए पीना होगा
सिखाती सभी को परम शिव कथा है
'सुनो आइनो तुम भी पढ़ लो सुकूँ से
कि 'पंकज' ने सब सामने रख दिया है' (आदरणीय बाऊजी समर कबीर द्वारा संशोधित)
मौलिक अप्रकाशित
Comment
बहुत ही बेहतरीन अहसास जनाब पंकज जी ।
अच्छे सृजन हेतु बधाई ।
सादर ।
आदरणीय नीलेश सर सादर अभिवादन, सुझाव पर अमल करता हूँ अभी।
पिछली ग़ज़ल में दोष दूर करके भेज दिया है मैंने।
आदरणीय शेख शहजाद सर सादर आभार
आ. पंकज जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है ..
अंतिम मिसरा एक पुन: देख लें
सादर
जिस तरह सूरज में उजाला है, उसी तरह दिल में सागर हो, तो क्या कहने। बेहतरीन सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज कुमार मिश्र ' वात्स्यायन' जी।
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