For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल इस्लाह के लिए :मनोज अहसास

2122  2122  2122  212

मेरे जीने का भी कोई फलसफा लिख जाइये
आप मेरी चाहतों को हादसा लिख जाइये

आपका जाना ज़रूरी है मुझे मालूम है
हो सके तो मेरी खातिर रास्ता लिख जाइये

नींद मेरी धड़कनों के शोर से बेचैन है
मेरे जीवन मे विरह का रतजगा लिख जाइये

आप अपना नाम लिख लीजै मसीहाओं के बीच
बस हमारे नाम के आगे वफ़ा लिख जाइये

गर जुदा होकर ही खुश हैं आप तो अच्छा ही है
पर हमारी चाहतों को ही खरा लिख जाइये

जुड़ गया जिनसे मुकद्दर अब तेरे 'अहसास' का
उन सभी के वास्ते कोई दुआ लिख जाइये

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 860

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on January 3, 2018 at 9:49pm

ग़ज़ल पर प्रतिक्रिया देने के लिए सभी आदरणीय मित्रों ,गुणीजनों का आभार

सुझावों पर विचार करूँगा

हृदय से आभार प्रकट करता हूँ

नमन करता हूँ आप सबका

सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 3, 2018 at 3:13pm

भाई मनोज जी , अच्छी गजल हुई है। बधाई।

Comment by Afroz 'sahr' on January 2, 2018 at 12:32pm
जनाब मनोज अहसास साहिब इस रचना पर बधाई स्वीकार करें। गुणी जनों की बातों पर गौ़र फ़रमाएं,,,
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 1, 2018 at 7:56pm

जनाब मनोज अहसास साहिब ,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । 

  • मतले का ऑप्शन यह भी हो सकता है।(मेरी उल्फ़त का कोई तो फलसफा लिख जाइये---कुछ न लिख पाएं अगर तो हादसा लिख जाइये )
  • शेर4--(काम यह कर जाइये मेरा मसीहा हैं अगर --सिर्फ मेरे नाम के आगे वफ़ा लिख जाइये ) 
  • शेर5--(पास रह कर भी अगर  तुम खुश नहीं हो जानेमन --जाते जाते मेरी चाहत को दगा लिख जाइये ) 
  • शेर6--(किस्मते अहसास से जिनका मुक़द्दर मिल गया --उनके नामों के मुक़ाबिल आशना लिख जाइये ।)
Comment by Ajay Tiwari on January 1, 2018 at 3:44pm

आदरणीय मनोज जी, खूबसूरत अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.

मतले के लिए एक तात्कालिक विकल्प : 

'आप मेरी चाहतों को हादसा लिख जाइये

पर मेरे जीने का भी इक फलसफा लिख जाइये'  या   'पर जिऊँ मैं किस तरह वो फलसफा लिख जाइये'

नव वर्ष मंगलमय हो !

सादर 

Comment by ram shiromani pathak on January 1, 2018 at 8:25am

वाह वाह बहुत खूब।।सुंदर अशआर।।बधाई आपको

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 1, 2018 at 1:08am

बढ़िया दिलचस्प, लेकिन अहम निवेदन करती ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मनोज कुमार अहसास जी।

Comment by मनोज अहसास on December 31, 2017 at 8:04pm

हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी

सादर

Comment by TEJ VEER SINGH on December 31, 2017 at 6:24pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी।बेहतरीन गज़ल।

आप अपना नाम लिख लीजै मसीहाओं के बीच
बस हमारे नाम के आगे वफ़ा लिख जाइये

Comment by मनोज अहसास on December 31, 2017 at 6:22pm

बहुत बहुत शुक्रिया राम अवध विश्वकर्मा जी

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय महेन्द्र जी। थोड़ा समय देकर  सभी शेरों को और संवारा जा सकता है। "
25 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। यह गजल इस बार के मिसरे पर नहीं है। आपकी तरह पहले दिन मैंने भी अपकी ही तरह…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल कुछ शेर अच्छे हुए हैं लेकिन अधिकांश अभी समय चाहते हैं। हार्दिक…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
5 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
6 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
7 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
9 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service