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स्मृति पृष्ठ ...

स्मृति पृष्ठ ...

रजनी के
श्यामल कपोलों पर
मेघों की बूंदों ने
व्यथित यादों के
पृष्ठों पर जैसे
सान्तवना का
आभासीय श्रृंगार कर डाला

दृग कलशों से
सजल वेदना
प्रीत की
पराकाष्ठा को
चेहरे की लकीरों में
शोभित करती रही

प्राण और देह में
जीवन संघर्ष चलता रहा
किसी को विस्मरण करने के
सभी उपचार
रेत की भित्ति से
ढह गए

थके नयन
आशा क्षणों की
गहन कंदराओं में
प्रतीक्षा की विफलता के प्रहारों को
सह न सके

रक्ताभ अधरों पर
तरल प्रतीक्षा क्षण
पल भर रुके
फिर
बिन प्रतीक्षा
रजनी के
तारांचल पर गिर पड़े

प्रभात ने
उन क्षणों से
अपनी मांग सजा ली
रजनी को अपने में
समाहित कर लिया
चिर प्रतीक्षित क्षण
प्रभात बन

फिर से 
एक नया
स्मृति पृष्ठ बना गए

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 561

Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 9, 2017 at 7:07pm
आदरनीय इस सूंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by Mohammed Arif on May 9, 2017 at 5:52pm
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सुंदर भावों की अंजलि पेश की है आपने । छायावाद युग की यादें ताज़ा हो गई हो जैसे । ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on May 9, 2017 at 5:43pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,हमेशा की तरह सुंदर भावों से सजी है ये कविता,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

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