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ग़ज़ल - दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं - ( गिरिराज )

2122   1212   22 /112

मेरी साँसें रवाँ - दवाँ कर दे  

फिर लगे दूर आसमाँ कर दे

 

प्यासे दोनों तरफ़ हैं , खाई के

है कोई.. ? खाई जो कुआँ कर दे 

 

वो ठिकाना जहाँ उजाला हो
सब की ख़ातिर उसे अयाँ कर दे

 

दुश्मनी घुट के मर न जाये कहीं

आ मेरे सामने , बयाँ कर दे

 

ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे

हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे

 

कैसे देखूँगा मै ये जंग ए अदब

मेरी आँखे धुआँ धुआँ कर दे

 

वो अकेला है राह ए हक़ में, उसे

है दुआ मेरी, कारवाँ कर दे

मेरी बातें हों नागवार जिन्हें

रू ब रू उनके, बे ज़बाँ कर दे

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 10:38am

आदरणीय तस्दीक भाई - घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।     

ग़ज़ल पर उअपस्थिति और सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 10:37am

आदरणीय सुशील भाई , घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।

उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 10:36am

आदरणीय समर भाई - घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।

ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

आदरनीय -- मतले मे आप -  सांसों मे गतिशीलता चाहने से  .. अभी घुटन है  ये समझिये ... और
आसमान को गंतव्य या मंज़िल का प्रतीक मानिये .... और आसमान एक नही सात हैं .. इसका भी खयाल रखें तो शेर की बात साफ समझ मे आ जायेगी ।  सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2017 at 10:29am

आदरनीय आरिफ भाई -- घरेलू काम मे व्यस्त होने के कारण देर से उपस्थित हो पाया -- क्षमा कीजियेगा ।

गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।

Comment by Ravi Shukla on April 27, 2017 at 6:12pm

आदरणीय गिरिराज भाई जी फिर से आपकी गजल का मतला पढ़ा  उला तो समझ आ गया कि आसानी चाहते है आप । क्‍या सानी में आपका आशय अासमान के प्रयोग में कठिनाईयों से है पहले मेरा वर्तमान सुधार दो फिर आसमान से भी पार पा जाउंगा । कुछ ऐसा समझ में आया है  हो सकता है सानी मिसरे में कुछ वाक्‍य के संयोजन में किसी शब्‍द की कमी हो जिससे ऐसा भ्रम हुआ हमें । सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 25, 2017 at 6:28pm

आ. गिरिराज सर अच्छी रचना हुई है बधाई आपको, बाकी समर साहब ने कह ही दिया है

Comment by नाथ सोनांचली on April 25, 2017 at 7:44am
आद0 भाई गिरिराज जी सादर अभिवादन, बहुत उम्दा गजल, हरेक शेर मुझे प्रभावित किया।
ऐ ख़ुदा, क्या नहीं है बस में तिरे
हिन्दी- उर्दू को एक जाँ कर दे।।
क्या बात है, हृदय से बधाई निवेदित है। सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 24, 2017 at 11:30pm
आदरणीय गिरिराज भाईसाब हर शेर उम्दा है वो अकेला है राह ऐ हक़ में उसे ,,,इस शेर के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकार करें साफ
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 24, 2017 at 9:10pm
बेहतरीन आदरणीय बहुत ही बेहतरीन..एक एक शेर लाजबाब..
Comment by Ravi Shukla on April 24, 2017 at 6:48pm
आदरणीय गिरिराज भाई जी प्रणाम । बहुत उम्दा अशआर कहे हैं आपने दाद और मुबारक बाद हाजिर है
दो बातें है एक तो मतले तक हमारी रसाई नही हो सकी । दूसरी दुश्मनी घुट के ....वाह क्या कहने
और मेरी आँखें धुआं धुआं कर दे ये दोनों शेर कमाल के हुए है पुनः बधाई । सादर

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