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एक फीलब्दीह/सतविन्द्र कुमार राणा

बह्र:122 122 122 122
-----
नहीं ये किसी को बताया हुआ है
कि इस दिल में तुमको बसाया हुआ है।

रहा जो हमेशा से दुश्मन हमारा
उसे भी गले से लगाया हुआ है।

जमाने को लगने न देंगे खबर भी
खजाना वफ़ा का छुपाया हुआ है।

करम से रहा जो हमेशा ही जालिम
वही अब तो रब का सताया हुआ है।


मुहब्बत वतन से ही ए ‘राणा’ कमायी
तहे दिल से इसको कमाया हुआ है।


मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 16, 2016 at 11:51pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी हौंसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!।सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 16, 2016 at 11:50pm
आदरणीय सुरेश भाई जी जर्रा नवाज़ी का तह-दिल-से शुक्रिया।आपका स्नेह यूँ ही बना रहे!
Comment by vijay nikore on October 13, 2016 at 3:17pm

खूबसूरत गज़ल के लिए मुबारकबाद । बहुत ही अच्छी लगी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2016 at 8:53pm

आद०  सतविन्द्र  भैय्या ,बहुत अच्छी ग़ज़ल बधाई  आपको 

Comment by Ravi Shukla on October 12, 2016 at 3:30pm

आदरणीय सतविन्‍द्र कुमार जी बहुत अच्‍छी गजल कही है मुबारक बाद कुबूल करें 

Comment by Samar kabeer on October 10, 2016 at 5:37pm
जनाब सतविंदर कुमार'राणा'जी आदाब,बहुत उम्दा फ़िलबदीह ग़ज़ल कही आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
"ज़माने को लगने न देंगे ख़बर भी"
Comment by नाथ सोनांचली on October 10, 2016 at 2:14pm
बहुत खुबसूरत रचना आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणा जी
बधाई स्वीकार करें
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 10, 2016 at 12:51pm
करम से जो रहा हमेशा ही जालिम
वही अब तो रब का सताया हुआ है।
वाह्ह्ह आदरणीय सतविंदर भाई जी, बहुत ही सुन्दर रचना । बधाई स्वीकार करें । सादर ।

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