For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भाई साहब सबकी अर्थी, बस कन्धों पर जानी है-----इस्लाह के लिए ग़ज़ल

22 22 22 22 22 22 22 2
माटी माटी जुटा रही पर जीवन बहता पानी है
स्वार्थ लिप्त हर मनुज हुआ कलयुग की यही कहानी है

मन की आग बुझे बारिश से, सम्भव भला कहाँ होगा
तुम दलदल की तली ढूंढते ये कैसी नादानी है

भौतिकता तो महाकूप है मत उतरो गहराई में
दर्पण कीचड़ युक्त रहा तो मुक्ति नहीं मिल पानी है

बीत गया सो बीत गया क्षण, बीता अपना कहाँ रहा
हर पल दान लिए जाता है समय शुद्ध यजमानी है

स्वर्ण महल अवशेष न दिखता हस्तिनापुर बस कथा रहा।
बाबर वंश भिखारी है अब सबकी यही कहानी है

स्वर्णजड़ित सिंहासन बैठो या झिलगंहिया खटिया पर।
भाई साहब सबकी अर्थी बस कंधों पर जानी है

मौलिक अप्रकाशित

Views: 1050

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 8, 2016 at 10:23am
आदरणीय कल्पना मैम सादर प्रणाम, और हार्दिक धन्यवाद
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 8:51pm

इस सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज कुमार जी |

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 4, 2016 at 2:52pm
आदरणीय बृजेश जी सादर अभिवादन
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 4, 2016 at 2:52pm
आदरणीय बृजेश जी सादर अभिवादन
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 3, 2016 at 2:07pm
आदरणीय श्री पंकज कुमार जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 3, 2016 at 7:59am
आ.पंकजजी ताटंक छंद पर आधारित विशुद्ध हिन्दी की गजल रचना के लिए बहुत बधाई हो।
गुणी जनों से मेरे कुछ प्रश्न है।
छंद आधारित किसी भी रचना को यदि रदीफ़ और काफिये में बांध देने से उस गजल कहा जा सकता है क्या।
हिन्दी में मात्रा गिनी जाती है पर उन मात्राओं के क्रम के विषय में बहर जैसे निश्चित नियम नहीं है।
"जुटा रही पर" 12 12 22 है जिसे यदि रचना बहर बद्ध है तो हम उसे 22 22 मान सकते हैं क्या।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 2, 2016 at 3:22pm

माटी माटी जुटा रही पर जीवन बहता पानी है
स्वार्थ लिप्त हर मनुज हुआ कलयुग की यही कहानी है.....वाहह आदरणीय वाहह बहुत शानदार गहरे भावों से ओतप्रोत ग़ज़ल हुई...हार्दिक बधाई

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 2, 2016 at 10:05am
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, ग़ज़ल आपको पसंद आयी, मुझे बहुत अच्छा लगा। किताब मुझे कल शाम में मिली है, अब उसे पढ़ कर आपको बताऊंगा
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 2, 2016 at 10:05am
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, ग़ज़ल आपको पसंद आयी, मुझे बहुत अच्छा लगा। किताब मुझे कल शाम में मिली है, अब उसे पढ़ कर आपको बताऊंगा
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 2, 2016 at 9:58am
आदरणीय शिज़्ज़ु शकूर सर हार्दिक आभार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service