For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- ज़माना जान चुका था,हर इक ख़बर में था

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

ज़माना जान चुका था,हर इक ख़बर में था
वो इक जुनून जो उस वक़्त मेरे सर में था

हर एक शख़्स खिंचा जा रहा था तेरी तरफ़
न जाने कौन सा जादू तिरी नज़र में था

कभी कभी मुझे उसकी भी याद आती है
सफ़ेद बिल्ली का बच्चा जो अपने घर में था

इसी सबब से परेशान थे मेरे दुश्मन
क़बीला सारा मेरी बात के असर में था

सुनाई देतीं भी कैसे ग़रीब की चीख़ें
तुम्हारा ध्यान तो उस वक़्त माल-ओ-ज़र में था

उड़ान भरते रहे आसमान की जानिब
जहाँ तलक भी "समर",ज़ोर बाल-ओ-पर में था

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 591

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 27, 2015 at 8:36pm

आदरणीय कबीर समीर जी --इसी सबब से परेशान थे मेरे दुश्मन क़बीला सारा मेरी बात के असर में था

Comment by जयनित कुमार मेहता on October 27, 2015 at 10:28am
बढ़िया ग़ज़ल हुई है,आदरणीय कबीर जी.. यदि आप कठिन उर्दू शब्दों का अर्थ भी नीचे कोष्ठ में बता देते तो मुझ जैसे पाठक को समझने में सहूलियत होती,..सादर!
Comment by जयनित कुमार मेहता on October 27, 2015 at 10:28am
बढ़िया ग़ज़ल हुई है,आदरणीय कबीर जी.. यदि आप कठिन उर्दू शब्दों का अर्थ भी नीचे कोष्ठ में बता देते तो मुझ जैसे पाठक को समझने में सहूलियत होती,..सादर!
Comment by Rahila on October 27, 2015 at 9:33am
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय समर जी! बहुत बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 27, 2015 at 7:19am

आदरणीय समर भाई , हमेशा की तरह बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है , दिली मुबारकबाद पेश करता हूँ , कुबूल कीजिये ॥

Comment by दिनेश कुमार on October 26, 2015 at 6:12pm
बहुत खूब। आदरणीय समर साहब। बेहतरीन ग़ज़ल। हर शेर उम्दा। खास तौर पर बिल्ली के बच्चे वाला। इस शेर ने आज बहुत कुछ याद करा दिया। हार्दिक दाद सर।
Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 5:34pm

 ज़माना जान चुका था,हर इक ख़बर में था
वो इक जुनून जो उस वक़्त मेरे सर में था---- बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है ये आदरणीय समर कबीर जी।  बधाई कबूल फरमाइए। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
6 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service