For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत -- लौटेंगे कर्म फल आप तक ज़रूर - ( गिरिराज भंडारी )

लौटेंगे कर्म फल आप तक ज़रूर

******************************

बातें हमेशा मुँह से ही बोली जायें तभी समझीं जायें ज़रूरी नहीं

कभी कभी परिस्थितियाँ जियादा मुखर होतीं हैं शब्दों से ,

और ईमानदार भी होतीं हैं

देखा है मैनें

जिसे परिवार में समदर्शी होना चाहिये

उनको छाँटते निमारते ,

अपनों में से भी और अपना  

 

वैसे गलत भी नहीं है ये

अधिकार है आपका , सबका  

देखा जाये तो मेरा भी है

 

तो, छाँटिये बेधड़क , बस ये जानते रहिये  

आप भी छाँटे जायेंगे , किसी के द्वारा

निकाल दिये जायेंगे चावल में से कंकर की तरह

किसी दिन फेक दिये जायेंगे ,

किसी कोने में ,

क्यों कि , विज्ञान कहता है

हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है

और ,कर्म का सिद्धांत भी तो यही कहता है ,

लौटेंगे कर्म फल आप तक ज़रूर

 

तय हो गया था उसी दिन आपका भी छाँटा जाना

कब ? कहाँ ? ये कोई नहीं जानता

सिवाय उस समदर्शी परम शक्तिमान के

 

मेरा कहना इतना ही है , अगर आप  समदर्शी नहीं हैं

तो इंतिजार कीजिये आप उस समय का ,

और वक़्त सामने आ जाये तो शिकायत मत कीलियेगा   

आँखें बन्द कर खुद में झाँक झाँक लीजियेगा ।

******************************************* 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

Views: 664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2015 at 1:06pm

आदरणीय आशुतोष भाई , रचना को स्वीकार करने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 6, 2015 at 1:02pm

आदरनीय गिरिराज भाईसाब ..आज का दिन तो आपकी रचनाओं के ही नाम जाएगा ..एक से बढ़कर एक सुंदर , चिंतन शील रचना ..और उसपर प्रतिक्रिया में मिथिलेश जी ने उस माटी की याद दिला दी जिस पर ज़िंदगी का बेहद कीमते समय बीता भी और जहा थकन दूर करने दो चार महीने में जान हो ही जाता है ..इस रचना के लिए भी हार्दिक बधाई सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 10:33pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , रचना की सराहना और अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:23pm

सूपा म चांउर निमारत हंव बड़े दादा.

दादा तोहर गोठ हवे तोहर कविता..छाँट डार बीन डार  निमार डार...

निमारते शब्द की सोंधी सोधी खुशबू में इस कविता को देख रहा हूँ आदरणीय गिरिराज सर.

निमारने में सक्षम केवल सर्वशक्तिमान ही है. 

इस सुन्दर रचना ने ह्रदय को छू लिया. 

हार्दिक बधाई आपको 

सादर. नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 9:18pm

आदरणीय कृष्णा भाई , बात अगर सरल होती तो कविता ही नहीं होती , जिनके प्रति आप ज़िम्मेदार हैं या जो आपके आश्रित हैं उनके प्रति तो समदर्शिता होनी ही चाहिये , नहीं तो आप भी तैयार रहें , यही तो कविता कह रही है । रचना की सराहना के लिये आपका आभार । 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 8:49pm

इंसान होकर कोई कहाँ तक समदर्शी हो सकता है??यह अपने आप में एक प्रश्न है!

बहुत ही बेहतरीन रचना हुयी है आदरणीय गिरिराज सर!नमन!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 6:12pm

आदरणीय सौरभ भाई , रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मेरी मेहनत को सफल कर रही है , और मेरी गति सही दिशा में है आश्वस्थ कर रही है , वैसे जिसकी लगाम आपके हाथ को वो बहक भी नहीं सकता , बशर्ते लगाम छुड़ा न ले । ये मेरा विश्वास है । सराहना के लिये आपका आभार ।

छत्तीस गढ़ी मे एक कहावत है , आदरणीय -- कनवा भाय नहीं , कनवा बिना रहौं नहीं   । आपका शे र बहुत कुछ कहता है ॥

इसी के नीचे एक अतुकांत और है , आदरणीय ॥  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 5, 2015 at 5:07pm

बेहया को छोड़ भी दूँ  
किन्तु मेरी जान है वो

आदरणीय गिरिराजभाईजी, आपकी रचना से गुजरते हुए जाने क्यों यह शेर हो गया.

इस रचना में बहुत कुछ ’कहा हुआ’ है, सो किसी इंगित या ’अनकहे’ की ओर मैं देखना भी नहीं चाहता.

आपकी प्रस्तुति में आते निरन्तर निखार के लिए हार्दिक बधाइयाँ.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:31pm

आदरणीय मोहन सेठी भाई जी , सराहना के लिये बेदह शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:30pm

आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन और सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह-मुकरी * प्रश्न नया नित जुड़ता जाए। एक नहीं वह हल कर पाए। थक-हार गया वह खेल जुआ। क्या सखि साजन?…"
30 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
10 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
yesterday
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service