For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिटा दूँ या मिट जाऊँ -- अतुकांत ( गिरिराज भण्डारी )

मिटा दूँ या मिट जाऊँ

-----------------------

कब से भटक रहा हूँ

कभी पानी हुये

तो कभी खुद को नमक किये 

कोई तो मिले घुलनशील

या घोलक

घोल लूँ या घुल जाऊँ ,

समेट लूँ

अपने अस्तित्व में या

एक सार हो जाऊँ , किसी के अस्तित्व संग

विलीन कर दूँ ,

खुद को उसमें

या कर लूँ ,

उसको खुद में

भूल कर अपने होने का अहम

और भुला पाऊँ किसी को

उसके होने को   

ख़त्म हो जाये दोनों का ठोस पन

ज़ाहिर हो वास्तविक तरलता

बचे बस प्रेम

बहे बस प्रेम

इस क्षितिज से उस क्षितिज तक

भर जाये ,

लबालब ॥

******************************* 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 668

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 10, 2015 at 10:07pm

आदरणीय विजय भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका आभारी हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 10, 2015 at 10:07pm

आदरणीय श्याम भाई , आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 10, 2015 at 10:06pm

आदरणीय महर्षि भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 10, 2015 at 10:05pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 10, 2015 at 10:05pm

आदरणीय विनय भाई , आपका ह्र्दय से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 10, 2015 at 9:53pm
आदरणीय गिरिराज सर, बहुत ही सुन्दर कविता। विषय ही ऐसा है कि गहरे तक प्रभावित करता है। अपनी पुरानी कबीर वाली टिप्पणी दोहराव हो जायेगा। मेरे लिए उसी श्रेणी की सुन्दर और दिल को छूने वाली रचना।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 10, 2015 at 9:46pm

वाह्ह्ह्ह बहुत सुन्दर प्रेम की अनुभूति से सराबोर रचना एक शास्वत सत्य खुद को खोकर उसको पाना अहम् को भुलाकर एक सघन प्रेम की ज्योति जलाना .हार्दिक बधाई आपको आ० गिरिराज जी 

Comment by khursheed khairadi on March 10, 2015 at 8:56pm

कोई तो मिले घुलनशील

या घोलक

घोल लूँ या घुल जाऊँ ,

समेट लूँ

अपने अस्तित्व में या

एक सार हो जाऊँ , किसी के अस्तित्व संग

विलीन कर दूँ ,

खुद को उसमें

या कर लूँ ,

उसको खुद में

आदरणीय गिरिराज सर ,बहुत ही सघन कल्पना है , ठोसपन यानि अभिमान क खोकर क्षितिज के इस कोने से उस कोने तक प्रेम की सरिता क बहना अद्भुत दृश्य है |बहुत बहुत बधाई |सादर अभिनंदन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 10, 2015 at 8:28pm
ख़त्म हो जाये दोनों का ठोस पन
अस्थाई , बनावटी , कठोरता ,
रह जाए तरलता , प्रवाह ,
क्योंकि जीवन तो वही है ,
निरंतर बहना ,गतिशील रहना ॥
आपको आपके ही शब्दों में , सादर ,
बहुत गहराई है इन पंक्तियों में आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , बधाई, सादर।
Comment by Shyam Mathpal on March 10, 2015 at 7:52pm

Aadarniya Giriraj Bhandari Ji,

Aaj ese hi soch ki jarurat hai. Safh pani ki tarah insaan ka man wa budhi chahiye.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted blog posts
1 hour ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service