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" देखो तो , आज माँ के लिए मैं क्या लाया हूँ "|
" क्या जरुरत थी माताजी को इतनी बढ़िया साड़ी लाने की !" , पत्नी की आवाज में आश्चर्य झलक रहा था |
" माँ की आँखें नहीं हैं लेकिन मेरी तो हैं ना "|

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on January 19, 2015 at 8:32pm

 बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी ..

Comment by विनय कुमार on January 19, 2015 at 8:31pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 7:06pm

उत्तम  भाव रचित सुंदर सन्देश देती लघु कथा के लिए हार्दिक  बधाई  श्री विनय कुमार सिंह जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 6:56pm

 आदरणीय विनय जी  बहुत कम शब्दों में सुन्दर ,सार्थक लघुकथा ! हार्दिक बधाई !

Comment by विनय कुमार on January 19, 2015 at 6:54pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जीतेन्द्र पस्तरीया जी | शायद सन्देश देने में सफल हुई है लघुकथा..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 19, 2015 at 6:07pm

बहुत सुंदर लघुकथा , आदरणीय विनय जी. आपने अपने प्रतिउत्तर में बहुत प्रभावी बात कही. सच! स्वस्थ इंसान की विकलांग मानसिकता न ही दिखती है अपितु घातक भी रहती है

Comment by विनय कुमार on January 19, 2015 at 3:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण त्रिपाठी जी | शारीरिक रूप से विकलांग लोगों की विकलांगता तो दिख जाती है लेकिन शारीरिक रूप से स्वस्थ लोगों की मानसिक विकलांगता कहाँ दिखती है |

Comment by विनय कुमार on January 19, 2015 at 3:44pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय अर्चना त्रिपाठी जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 19, 2015 at 3:08pm

विनय जी

क्या पंच लाइन है i आपको साधुवाद i  बहुत मार्मिक i बधाई  हो i

Comment by Archana Tripathi on January 19, 2015 at 10:35am
नैतिकता की उच्च मानसिकता को दर्शाती कथा

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