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लंग सा जो भंग पैरों पर खड़ा है
हाँ, सहारा दो तो वो भी दौड़ता है
व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है
कौन कैसा क्यों है, ये किसको पता है
दानवों सा इस जगह जो लग रहा है
सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है
सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम
मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है
आप अपनी राह में चलते ही रहिये
बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है
उनकी क़समों का भरोसा क्या करुं मै
राज अपने कौन किसपे खोलता है
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
उनकी क़समों का भरोसा क्या करुं मै
राज अपने कौन किसपे खोलता है.............वाह ! वाह!
आदरणीय गिरिराज जी सादर, बढ़िया गजल कही है सभी अशआर अच्छे हैं. बहुत-बहुत बधाई!
आदरणीय गिरिराज जी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
आप अपनी राह में चलते ही रहिये
बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है
बहुत ही सुन्दर
सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम
मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है----शानदार अशआर हुआ ...सटीक भाव
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई आ० गिरिराज जी तहे दिल से दाद कबूलिये.
अच्छे अश’आर हुए हैं गिरिराज जी। दाद कुबूल कीजिए। ये शे’र विशेष
आप अपनी राह में चलते ही रहिये
बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है
लंग सा जो भंग पैरों पर खड़ा है
हाँ, सहारा दो तो वो भी दौड़ता है............... सच्चे सहारे को बयां करता हुआ मतला
व्यक्तिगत सत्यों की सबको बाध्यता है
कौन कैसा क्यों है, ये किसको पता है...............आज का सत्य, जब हर इंसान अवसरवादी है यहाँ
दानवों सा इस जगह जो लग रहा है
सच कहूँ ! कुछ के लिये वो देवता है...............यह शायद समझने वाला ही समझ सकता है
सत्य सा निश्चल नही अब कोई आदम
मौका आने पर स्वयम को मोड़ता है..............बहुत गहरा दृष्टिकोण
आप अपनी राह में चलते ही रहिये
बोलने वाला तो यूँ भी बोलता है....................सफल जीवन का मंत्र, लोगो की सुनो तो स्वयं परेशानी मोल लेलो
आपने अपने जीवन के अनुभव को बहुत सुन्दरता से गजल के शेरों में बयां किया है आपकी लेखनी को नमन आदरणीय गिरिराज जी, तहे दिल से बधाइयाँ स्वीकार कीजियेगा
सादर!
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