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===========ग़ज़ल===========
बहरे- हजज
वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २

सुबह भी स्याह जिसकी वो सुहानी शाम क्या देखे
वो मारा फुर्कतों का रात का अंजाम क्या देखे

लगा कर हौसलों के पर परिंदा इश्क का उड़ता
जमीं से उड़ चला तो फिर फलक क्या बाम क्या देखे

हया आशिक बनाती है अदा मदहोश करती है
निगाहों से पिलाती यूँ शराबी जाम क्या देखे

बना कर खूँ को स्याही नाम लिक्खा था कभी उसका
नहीं मिटता दरो-दीवार से वो नाम क्या देखे

मिटा दस्तूर तोड़ी रस्म सब भूला रिवाजों को
हुआ आशिक भला अब नाम क्या बदनाम क्या देखे

नहीं कोई बड़ा उसको नहीं छोटा कोई उसको
फकीरी भा रही जिसको वो खासो-आम क्या देखे

इबादत में जो  डूबा "दीप" तो खुद को भुला बैठा
खुदा इंसान में पाया है अल्ला-राम क्या देखे


संदीप पटेल "दीप"
सिहोरा, जबलपुर (म. प्र. )

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 11, 2012 at 11:19am

आदरणीया रेखा जी , आदरणीय राज साहब , आदरणीय तोमर साहब , आदरणीय हसरत साहब, आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी , आदरणीय पियूष जी
आप सभी ने मेरी इस ग़ज़ल को अपनी मुबारकबाद से नवाजा , अपना कीमती वक़्त दिया इसके लिए मैं आप सभी का नित्य ही आभारी हूँ
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया स्नेह यों ही बनाये रखिये

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on October 11, 2012 at 8:26am

शेर तो सभी लाजवाब हैं..पर दो शेरों ने दिल में जगह बना ली है..

१. हया आशिक बनाती है अदा मदहोश करती है
निगाहों से पिलाती यूँ शराबी जाम क्या देखे

२. इबादत में जो  डूबा "दीप" तो खुद को भुला बैठा
खुदा इंसान में पाया है अल्ला-राम क्या देखे

लाजवाब... बधाई स्वीकारें इस श्रेष्ठ रचना के लिए !


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Comment by Saurabh Pandey on October 11, 2012 at 2:22am

मतले से मक्ते तक ऊँचे मेयार की ग़ज़ल के लिये दिली दाद कुबूल् अफ़रमायें .. भाई ! किसी एक शेर पर कुछ नहीं कहूँगा. हर शेर की वज़्नोसूरत लाज़वाब है. बधाई.  शिल्प से सुदृढ और कहन से उच्च ऐसी ही ग़ज़लें कहते रहें.

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on October 10, 2012 at 11:16pm

नहीं कोई बड़ा उसको नहीं छोटा कोई उसको
फकीरी भा रही जिसको वो खासो-आम क्या देखे

is umdah ghazal ke kliye bahut bahut mubarakbad pesh karta hoon deep ji

Comment by Raj Tomar on October 10, 2012 at 7:27pm

"मिटा दस्तूर तोड़ी रस्म सब भूला रिवाजों को 
हुआ आशिक भला अब नाम क्या बदनाम क्या देखे"

 बहुत खूब..शानदार ग़ज़ल है भाई साब. बधाई हो. :)

Comment by राज़ नवादवी on October 10, 2012 at 1:16pm

//हया आशिक बनाती है अदा मदहोश करती है 
निगाहों से पिलाती यूँ शराबी जाम क्या देखे //

-बहुत खूब भाई संदीपजी!बधाई हो. 

Comment by Rekha Joshi on October 10, 2012 at 1:07pm

सुबह भी स्याह जिसकी वो सुहानी शाम क्या देखे 
वो मारा फुर्कतों का रात का अंजाम क्या देखे.उम्दा गजल पर हार्दिक बधाई संदीप जी 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 11:23am

आदरणीय वीनस सर जी ये सब आप, आदरणीय सौरभ सर  और मंच के सभी वरिष्ट सुधीजनों  द्वारा प्रदान किये गए मार्गदर्शन और स्नेह से ही संभव हो पाया है
इसे यूँ ही बांये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 10, 2012 at 11:21am

आदरणीया राजेश कुमारी जी ...आदरणीय राजेश झा जी,, आदरणीय नादिर जी... आदरणीय अजय जी, आदरणीय वीनस सर जी आप सभी को सादर प्रणाम
आप सभी मेरी कही ग़ज़ल को वक़्त दिया और सराहा इसके लिए मैं आप सभी को धन्यवाद प्रेषित करता हूँ
साथ साथ आप सभी का इस अद्वतीय स्नेह के लिए आभारी हूँ
स्नेह बनाये रखिये अनुज पर यूँ ही

Comment by वीनस केसरी on October 10, 2012 at 2:43am

भाई संदीप जी कितने शेर कह डाले कि एक साथ दो ग़ज़ल तैयार हो गई
अभी अभी इसी जमीं पर आपकी एक ग़ज़ल पर टिप्पणी दे कर आ रहा हूँ
वैसे इस ग़ज़ल के अशआर भी बहुत खूब हुए हैं
तहे दिल से ढेर सारी दाद क़ुबूल करें

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