For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल"कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे"

===========ग़ज़ल===========
बहरे- हजज
वजन- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २- १ २ २ २

सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे
कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे

गरीबी ने मिटा डाला जिसे खाने के लाले हैं
चलाने अपना घर अच्छा बुरा वो काम क्या देखा

बना माँ बाप को अपना खुदा पूजा करो यारो
है जिसका घर यहाँ मंदिर वो तीरथ धाम क्या देखे

मिटा अभिमान खुद का कर रहा काली कमाई जो
सियासी बन गया अब नाम क्या बदनाम क्या देखे

बना आतंकवादी अब खड़ा बन्दूक ताने यूँ
जो छीने जिन्दगी पल में वो अल्ला-राम क्या देखे

संदीप पटेल "दीप"

Views: 798

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 5:01pm

स्वागत है अनुज संदीप जी !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 4:18pm

आदरणीय अम्बरीश सर जी सादर प्रणाम आपकी सलाह इक दम दुरुस्त है कहन के भाव बिना बदले इसमें सम्पूर्णता आ गयी है
इस सहयोग और स्नेह के लिए मैं आपका आभारी हूँ
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये अनुज पर आपका तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 12, 2012 at 4:07pm

अनुज संदीप जी, आदरणीय योगराज जी ने एकदम दुरुस्त फरमाया है .....फिर भी आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी है जिसके लिए बहुत-बहुत बधाई ....

यदि आप चाहें तो अपने दोनों शेर निम्नलिखित प्रकार से  सुधार भी सकते हैं ....

यह सिर्फ एक सुझाव ही है....

//सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे
कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे//

सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे
कफ़न बांधे कटा ले सर खड़ा अंजाम क्या देखे

//गरीबी ने मिटा डाला जिसे खाने के लाले हैं
चलाने अपना घर अच्छा बुरा वो काम क्या देखा//

गरीबी ने मिटा डाला जिसे खाने के लाले हैं
चला ले अपना घर अच्छा बुरा वो काम क्या देखे…….सस्नेह

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 3:47pm

\\वैसे जिस बिंदु पर मैंने बात की उसे इल्म-ए-अरूज़ में "ऐब-ए-अख्लाल" कहा जाता है, जब किसी मिसरे में किसी शब्द की कमी रहा जाए तब यह ऐब पैदा होता है.\\

इस इक और ऐब के बारे में मेरी जानकारी बढाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय योगराज सर जी
बहुत बहुत आभार आपका
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
सादर प्रणाम


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 2:43pm

आपने मेरे कहे को मान दिया, दिल से आभारी हूँ संदीप भाई. वैसे जिस बिंदु पर मैंने बात की उसे इल्म-ए-अरूज़ में "ऐब-ए-अख्लाल" कहा जाता है, जब किसी मिसरे में किसी शब्द की कमी रहा जाए तब यह ऐब पैदा होता है.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 1:33pm

जी आदरणीय योगराज सर जी
अब समझ में आया
आपकी दी इस हिदायत को भी हमेशा ध्यान रखूँगा सर जी
अब से यही कोशिश रहेगी के ऐसी कहन में शब्दों की पूर्ती हो जाये
आपका बहुत बहुत आभारी हूँ सर जी
मार्गदर्शन  सहित स्नेह और आशीष बनाये रखिये


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 1:25pm

भाई संदीप पटेल जी
जिस सन्दर्भ में आपके ये दोनों शेअर के मिसरे हैं, वहां
"कटाने सर"
"चलाने अपना घर"
का प्रयोग सही नहीं, वो सही है कि वज्न-ओ-बहर के हिसाब के कोई कमी नहीं लेकिन
"कटाने सर" की बजाये "कटाने को सर" अथवा "सर कटाने को "तथा "चलाने अपना घर" की बजाये  "चलाने को अपना घर" अथवा "अपना घर चलाने को" कहना व्याकरण और भाषा की शुद्धता की मांग है.     

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 12, 2012 at 1:01pm

आदरणीय योगराज सर जी सादर प्रणाम
सर्वप्रथम तो आपने जो मुझे आज इक ताज पहना दिया स्टार ग़ज़ल-गो का उसके लिए मैं आपका आभारी हूँ लेकिन अभी ये स्वीकार नहीं कर पा रहा हूँ इसके लिए खेद है मैं अभी सीखने की जमीं पे हूँ जहाँ मुझे केवल और केवल सीखना है जिस दिन में इस लायक हो जाऊंगा उस दिन आपका ये ताज सहर्ष स्वीकार करूँगा और आप सब का आशीर्वाद रहा तो इक दिन अवश्य वो दिन नसीब होगा
फिर मैं आपकी दी हुई हिदायत को इस बार समझने में असमर्थ रहा हूँ और ऐसा होना शायद मेरे लिए स्वाभाविक है क्यूंकि यदि मैं इस बात को समझता तो ऐसी गलती ही क्यूँ करता ||
मैंने अपने सारे शेर पढ़ के तक्तीह करने के बाद ही मंच पर प्रेषित किये हैं क्यूंकि आदरणीय वीनस सर और गुरुवर सौरभ सर की मांग थी की ग़ज़ल को पढ़ पढ़ के देखें और यदि सही लगे तभी पोस्ट करें
अब आपने कहा के मैं कुछ छोड़ के आगे बढ़ जाता हूँ तो मैं असमंजस में हूँ की आखिर क्या छूट गया है मुझसे कहाँ गलती हो गयी है
कृप्या एक बार मेरा मार्गदर्शन कीजिये
आपका तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 12, 2012 at 11:23am

भाई संदीप पटेल जी, अगर मैं यह कहूँ कि आप ओबीओ के स्टार ग़ज़ल-गो हैं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. मैं आपको पहले  दिन से ही फोलो कर रहा हूँ और आप उन चाँद शायरों में से एक हैं जिनकी रचनायों को मैं बहुत ध्यान से पढता हूँ. आपके पास कहन बहुत उच्चकोटि का है, वज़न-ओ-बहर पर पकड़ भी मज़बूत हो रही है. लेकिन बहुत जगह न जाने क्यों आप अक्षर "खा" जाते हैं जो इतनी जबर्दस्त बदमजगी पैदा करता है कि पूछें मत. इस ग़ज़ल के ही दो मिसरे देखें     

//कटाने सर कफ़न बांधे खड़ा अंजाम क्या देखे
//
//चलाने अपना घर अच्छा बुरा वो काम क्या देखा //

"कटाने सर" और "चलाने अपना घर" में क्या  आपको किसी शब्द की कमी नज़र नहीं आ रही ? सुभाषता और साफ़ साफ़ कहन गजल की बेसिक खूबियों में से एक है. लेकिन यहाँ ये दोनों मिसरों में भाषा के स्तर पर चूक हुई है जो कि बेहद अटपटी लग रही है.

एक मिसरा और देखें:
//सिपाही मुल्क की सरहद पे सुबहो शाम क्या देखे //

यहाँ "मुल्क+की" में दो "क" आ जाने से "मुलक्की" बन गया है जोकि उच्चारण को बाधित कर रहा है है. "मुल्क" की बजाये "देश" क्या बेहतर नहीं होगा ?

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 11, 2012 at 11:28am

आदरणीय मकरंद जी, परम आदरणीय गुरुवर सौरभ सर जी, आदरणीया रेखा जी सादर प्रणाम
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और सादर आभार
ये स्नेह अनुज पर यों ही बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"तौर-ए-इमदाद ये भला तो नहीं  शहर भर में अब इतना गा तो नहीं     मर्ज़ क्या है समझ…"
33 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का मतला भरपूर हुआ है। अन्य शेर आयोजन के बाद संवारे जाने की मांग कर रहे…"
58 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ दयाराम मैठानी जी। आपके द्वारा इंगित मिसरा ऐसे ही बोला जाता है अतः मैं इसे यथावत रख रहा…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. अजय जी"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"शब में तारों से जगमगाते फ़लक मेरे पुरखों के नक़्श-ए-पा तो नहीं  लगता ईमान सा ही कुछ शायद गिर…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त दिया मतले के सानी को उला से साथ कहने की कोशिश…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदमी दिल का वह बुरा तो नहीं सिर्फ इससे  खुदा  हुआ  तो नहीं।। (पर जमाने से कुछ…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ, मेदानी जी, कृपया देखेंकि आपके मतल'अ में स्वर ' उका' की क़ैद हो गयी है, अत:…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल में कुछ दोष आदरणीय अजय गुप्ता जी नें अपनी टिप्पणी में बताये। उन्हे ठीक कर ग़ज़ल पुन: पोस्ट कर…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, आपकी ग़ज़ल का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ। यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है किंतु दूसरे…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, पोस्ट पर आने और सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बशर शब्द का प्रयोग…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्ते ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई। अच्छे भाव और शब्दों से सजे अशआर हैं। पर यह भी है कि…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service