For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महाभारत का घटनाचक्र एक बार फिर से दोहराया गया ! लेकिन इस बार जुआ युधिष्ठिर नहीं बल्कि द्रौपदी खेल रही थी! देखते ही देखते वह भी शकुनी के चंगुल में फँसकर अपना सब कुछ हार बैठी ! सब कुछ गंवाने के बाद द्रौपदी जब उठ खडी हुई तो कौरव दल में से किसी ने पूछा:
"क्या हुआ पांचाली, उठ क्यों गईं?"
"अब मेरे पास दाँव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा " द्रौपदी ने जवाब दिया !
तो उधर से एक और आवाज़ आई:
"अभी तो तुम्हारे पाँचों पति मौजूद है, इनको दाँव पर क्यों नहीं लगा देती ?"
द्रौपदी ने शर्म से सर झुकाए बैठे पांडवों की तरफ हिकारत भरी दृष्टि डालते हुए जवाब दिया:
"मैं इतनी बेग़ैरत नही कि अपने जीवन साथी को ही दाँव पर लगा दूँ!"

Views: 1075

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2015 at 7:46pm
आदरणीय योगराज सर इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई।
Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on November 29, 2012 at 12:26pm

आदरणीय योगराज जी.. इस लघुकथा की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है ! कोटिशः बधाई स्वीकारें !

Comment by Er. Ambarish Srivastava on October 25, 2011 at 1:48pm

आदरणीय योगी जी ! बड़ी ही सहजता से आपने सब कुछ कह दिया! आपके इस रूप को नमन मित्रवर ! दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनायें!  जय हो !!!
सादर :

Comment by Bhasker Agrawal on December 25, 2010 at 2:27am
परुष और स्त्री की सोच में क्या फर्क है ...ये खूब दिख रहा है इस में .
मगर अफ़सोस है के बराबर दर्जे के नाम पर आजकल द्रौपदी भी युधिष्ठिर होती जा रही हैं

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2010 at 1:27am
पांचाली ने क्या ऐसा कहा होता या न कहा होता.. न कहा होता तो क्या होता या ऐसाही कहा होता तो क्या होता.. इन हेतु-हेतुमद भूत के क्रम में कथ्य को डाल लघुकथा के शिल्प को जिस ऊँचाई पर आपने रख दिया है, भाई साहब, इस पर चर्चा पाठक करते रहें. मेरे लिए सुखद आश्वस्ति का कारण है कि लघुकथा का विन्यास जीवंत हो उठा है. प्रस्तुत की गई पंक्तियों के बीच के अलोत दुरूह को आमफहम बना सके यही इस विधा की पराकाष्ठा है. और आपने इस पराकाष्ठा को भरपूर छूआ है.
इस कथ्य पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार कर कृतार्थ करें.
Comment by Shamshad Elahee Ansari "Shams" on October 18, 2010 at 10:32pm

योगी जी....पांचाली के जवाब से भारत की महिलावादी शक्तियों को नाँक भौं सिकोडने का मौका दे दिया आपने...बेहतर होता वो पाँचो पतियों को हार जाती और १०-१५ साल किसी कोल्हू में बैल की तरह जुता दिये जाते...::))


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 18, 2010 at 10:41am
आदरणीय आचार्य सलिल जी,
आपको लघुकथा पसंद आई, यह जानकर दिल को बहुत सुकून मिला ! सादर !
Comment by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 9:59am
waah... waah... bahut khoob... gagar men sagar... badhaee... ise kahte hain lagukatha.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2010 at 10:21am
"मैं इतनी बेग़ैरत नही कि अपने जीवन साथी को ही दाँव पर लगा दूँ!"

योगराज सर, शायद लघु कथा का यही मकसद होता है की, पढ्ने के बाद पाठक देर तक उसी की बात सोचते रहे | आपकी लघु कथा गहरे घाव करने मे सक्षम है, आज भी कुछ पांडव है जो द्रोपदी को दाव पर लगाने से नहीं चुकते, उन्हे हर हाल मे बस जुआ जितना होता है, भले ही द्रोपदी को हारना पड़े | सब मिलाकर बहुत ही संदेशपरक कथा और उम्द्दा कथ्यशिल्प | आगे भी आपकी लघु कथाओं का इन्तजार रहेगा |

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 17, 2010 at 10:20am
नवीन भाई जी, डॉ ब्रिजेश त्रिपाठी जी, रत्नेश रमण पाठक जी एवं अभिनव भाई - आप सब की हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई के साथ-साथ धन्यवाद भी। कि, इस पटल पर, इस खुले आयोजन…"
17 hours ago
Chetan Prakash commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"वाकई  खूबसूरत शुद्ध हिन्दी गजल हुई, आदरणीय! "कर्म हम रणछोड  के अनुसार भी करते…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service