For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222 - 1222 - 1222 - 1222

ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ कि वो इस्लाह कर जाते

वगर्ना आजकल रुकते नहीं हैं बस गुज़र जाते 

न हो उनकी नज़र तो बाँध भी पाता नहीं मिसरा 

ग़ज़ल हो नज़्म हो अशआर मेरे सब बिखर जाते

 

बड़ी मुद्दत से मैं भी कब 'मुरस्सा' नज़्म कह पाया 

ग़ज़ल पर सरसरी नज़रों ही से वो भी गुज़र जाते

अरूज़ी हैं अदब-दाँ वो अगर बारीक-बीनी से 

न देते इल्म की दौलत तो कैसे हम निखर जाते

मिले हैं ओ. बी. ओ. पर वो हमारी ख़ुशनसीबी है 

'समर' सर के बिना हम बे-सुरे बे-वज़्न मर जाते 

ख़ुदा दे उम्र में बरकत रहें दोनों जहाँ रौशन

जहाँ 'हज़रत' की आमद हो वहीं गौहर बिखर जाते 

मेरे उस्ताद हैं 'आली 'समर' साहिब 'अमीर' उनकी 

इनायत की नज़र से ही सुख़न बिगड़े संँवर जाते

"मौलिक व अप्रकाशित" 

  

इस्लाह- त्रुटियों को दूर करना, शुद्धि मुरस्सा- रत्न जड़ित, सुसज्जित (काव्य)

अरूज़ी- इल्म-ए-अरूज़, पिंगल शास्त्र का ज्ञाता अदब-दाँ- अदीब, आलिम, भाषाविद

बारीक-बीनी- सूक्ष्मदर्शता, पैनी नज़र गौहर- मोती, रत्न, बुद्धिमत्ता

दोनों-जहाँ- दुनिया और आख़िरत 'आली- ऊँचे मर्तबे वाले, मान्यवर

इनायत की नज़र- महब्बत और महरबानी की नज़र 

Views: 1001

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2021 at 6:07pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी और समर कबीर साहिबान आदाब, ग़ज़ल पर आपके पुन: आगमन पर आभार। 

//लेकिन अगर इस शैर को उर्दू लिपि में जब लिखेंगे तो वहाँ क्या उज़्र पेश करेंगे, इसलिये बहतर ये होता है कि दोनों लिपियों के बीच का रास्ता अपनाया जाये।//

चूंकि ग़ज़ल मूलतः पूरी तरह उर्दू की ही विधा है तो इसके क़वाइद पर मुकम्मल अमल करना भी हमारी ज़िम्मेदारी है लिहाज़ा जनाब समर कबीर साहिब की बात पर अमल करते हुए ग़ज़ल में तरमीम करता हूँ और जैसा कि आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ने कहा 'पण्डोरा बॉक्स' को बन्द करता हूँ। आप दोनों महानुभावों के साथ इस त्रुटि को संज्ञान में लाने वाले बृजेश कुमार ब्रज जी का भी आभार प्रकट करता हूँ।  सादर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 14, 2021 at 12:04am

//देवनागरी लिपि में 'ऐन' नहीं होता है 'ऐन' को अलिफ़ की तरह पढ़ा और बोला जाता है, इसलिये मैंने यह छूट लेने की जसारत की है//

आदरणीय, आपने पण्डोरा बॉक्स खोला न ?

देवनागरी के ही हवाले से पद्य-प्रवाह एवं रचनाकर्म को साधने का प्रयास करें हम. वर्ना कई ऐसी बाध्यताएँ आनी ही हैं, जब न समझाते बनेगा, न बन ही पड़ता है. आग्रही होना सरल है. किंतु आज के 'ज' और आवाज के 'ज' का भेद किसी 'हिन्दी भाषी, देवनागरी अभ्यासी' को कैसे समझा पाएँगे ?

नुख्ता का आरोपित व्यवहार भाषाई चलन नहीं, बलात प्रयास ही माना जाता है. किसी लिपि की विशेषता उक्त लिपि के प्रयोग पर ही संभव है.

यही मेरा सार्थक निवेदन है. 

इस रचनालपर पुन: आता हूँ. ..

सादर 

Comment by Samar kabeer on October 13, 2021 at 2:22pm

//मगर देवनागरी लिपि में 'ऐन' नहीं होता है 'ऐन' को अलिफ़ की तरह पढ़ा और बोला जाता है, इसलिये मैंने यह छूट लेने की जसारत की है//

आपकी बात मान लेते हैं,लेकिन अगर इस शैर को उर्दू लिपि में जब लिखेंगे तो वहाँ क्या उज़्र पेश करेंगे, इसलिये बहतर ये होता है कि दोनों लिपियों के बीच का रास्ता अपनाया जाये । 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 13, 2021 at 2:14pm

मुहतरम समर कबीर साहिब आदाब, आपने दुरुस्त फ़रमाया है, मगर देवनागरी लिपि में 'ऐन' नहीं होता है 'ऐन' को अलिफ़ की तरह पढ़ा और बोला जाता है, इसलिये मैंने यह छूट लेने की जसारत की है। सादर। 

Comment by Samar kabeer on October 13, 2021 at 2:06pm

//इक अर्से से"  को इस तरह पढेंगे तो बह्र की पूर्ति हो रही है "इ+कर् +से+ से"//

यानी आप यहाँ अलिफ़ वस्ल कर रहे हैं,लेकिन जनाब 'अर्से' शब्द तो 'ऐन' से शुरू'अ हो रहा है?

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 13, 2021 at 1:56pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी एवं बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, आजकल व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण ओ बी ओ पर समय न दे पाने के लिए और सम्मानित सदस्यों की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया न दे पाने और दूसरे सदस्यों की रचनाओं पर उपस्थित न हो पाने पर खेद है।

आप ग़ज़ल तक आए, अपना क़ीमती समय रचना पर देकर मेरा हौसला बढ़ाया इसके लिए मश्कूर हूँ।

ग़ज़ल आपको अच्छी लगी लेखन सफल हुआ। अब बृजेश कुमार ब्रज जी की शंका पर आता हूँ - 

//पूछूँगा ही...तीसरे शे'र के उला में "इक अर्से से" में 1222 बह्र की पूर्ति कैसे हो रही है?//

बृजेश जी "इक अर्से से"  को इस तरह पढेंगे तो बह्र की पूर्ति हो रही है "इ+कर् +से+ से" सादर। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 10, 2021 at 10:10am

वाह आदरणीय अमीरुदीन जी वाह सभी के दिल की बात कह दी...आदरणीय समर जी ने तो ज्यादा कुछ नही कहा..लेकिन मैं तो सीख रहा हूँ तो पूछूँगा ही...तीसरे शे'र के उला में "इक अर्से से" में 1222 बह्र की पूर्ति कैसे हो रही है?थोड़ा प्रकाश डालें..सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 10, 2021 at 9:17am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। सीधी सच्ची सरल बात को गजल के रूप में पेश कर मार्गदर्शकों का आभार बखूबी व्यक्त किया आपने। हार्दिक बधाई। निश्चित तौर पर हम जैसे तमाम लोग ओबीओ परिवार का हिस्सा बनकर श्रेष्ठ मार्गदर्शकों द्वारा ही निखारे गये हैं। इसके बिना हमारी रचनाएँ अधकचरा ही होतीं । सादर..

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 4, 2021 at 7:58pm

मुह्तरम समर कबीर साहिब आदाब, अहक़र की तख़लीक़ पर आपकी मुबारक आमद हमेशा ही मेरे लिए ख़ुश ख़बर होती है, और हो भी क्यों नहीं शाइरी हम पहले भी लिखते-पढ़ते थे मगर हमारी नज़्में बेतरतीब बे-क़ाइदा सी मह्ज़ तुकबन्दी ही हुआ करती थीं, जो ओ बी ओ पर आने के बाद आपकी रहबरी में सही मआनी में ग़ज़ल होने लगी हैं जिसके लिए मैं ओ बी ओ और आपका शुक्रगुज़ार हूँ। यक़ीनन मेरी ये ग़ज़ल, ग़ज़ल से कहीं ज़्यादा एक सच्चा पैग़ाम है और मैं क़ुर्बान जाऊँ आपकी रम्ज़ शनासी पर कि आपने इसे दिल से मह्सूस किया है, एक बार फिर साबित हुआ कि दिल से निकली बात दिल तक ज़रूर पहुंचती है। हम सब तालिब-ए-इल्म और ओ बी ओ पटल आपकी मुख़लिस ख़िदमात कभी फ़रामोश नहीं कर पाएंगे।

तमाम नेक ख़्वाहिशात क़ुबूल फ़रमाएं और सलामत रहें। सादर। 

Comment by Samar kabeer on October 4, 2021 at 3:21pm

जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब आदाब, आपकी महब्बत से लबरेज़ तख़लीक़ देखी और इसमें आपकी महब्बतों को दिल से महसूस किया, मैं आपकी इस महब्बत का किन अल्फ़ाज़ में शुक्रिय: अदा करूँ समझ नहीं पा रहा हूँ, हालाँकि आपके इस महब्बत नामे में कुछ शिल्पबद्ध कमियाँ ज़रूर हैं लेकिन उन्हें इंगित करना यहाँ मुझे मुनासिब नहीं लगा क्योंकि :-

'महब्बत मानी-ओ-अल्फ़ाज़ में लाई नहीं जाती

ये वो नाज़ुक हक़ीक़त है जो समझाई नहीं जाती'

आपकी महब्बतों और दुआओं के लिये आपका तह-ए-दिल से शुक्र गुज़ार हूँ, सलामत रहें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service