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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's Blog (69)

ग़ज़ल (शुक्र तेरा अदा नहीं होता)

2122-1212-22

शुक्र तेरा अदा नहीं होता

और वा'दा वफ़ा नहीं होता

तू न तौफ़ीक़ दे अगर मौला 

एक सज्दा अदा नहीं होता 

सिर्फ़ तौबा पे बख़्शने वाले 

कोई तुझ-सा बड़ा नहीं होता 

घर नहीं, है वो एक वीराना 

ज़िक्र जिस में तेरा नहीं होता 

सबके अहवाल जानता है तू

कुछ भी तुझ से छुपा नहीं होता 

तेरी रहमत के आसरे पर हूँ 

तू जो चाहे तो क्या नहीं होता

और बे-ज़र 'अमीर'…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 4, 2022 at 11:08pm — 8 Comments

ग़ज़ल (...महफ़ूज़ है)

2122 - 2122 - 2122 - 212

वो जो हम से कह चुके वो हर बयाँ महफ़ूज़ है

दास्तान-ए-ग़ीबत-ए-कौन-ओ-मकाँ महफ़ूज़ है 

मुश्त'इल करने की हम को कोशिशें कितनी हुईं

लो हमारे दिल में देखो सब यहाँ महफ़ूज़ है 

हक़-बयानी जिसका शेवा हो कभी झुकता नहीं 

दार तक रंग-ए-रुख़-ए-ताब-ओ-तवाँ महफ़ूज़ है 

ज़ब्त कहते हैं जिसे वो है समंदर में कहाँ 

ये उलट देता है सब-कुछ जो जहांँ महफ़ूज़ है 

ज़र्फ़ ये बख़्शा है रब ने…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 3, 2022 at 10:54pm — 2 Comments

ग़ज़ल (ऐ ख़ुदा दिल को क्या हुआ है ये)

2122 - 1212 - 22/112

ऐ ख़ुदा  दिल को  क्या  हुआ  है ये

किसकी  चाहत  में खो  गया  है ये

पेट  में   तितलियाँ   सी  उड़ती  हैं

इश्क़  की  क्या  ही  इब्तिदा  है  ये

याद-ए-जानाँ  तो  है दवा  है  गोया

दिल-ए-मुज़्तर  का  आसरा   है  ये

कौन  सुन  पायेगा   मेरे   दिल  की

दिल-ए-सोज़ाँ   तो   बे-सदा   है  ये…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 23, 2022 at 9:48am — 6 Comments

ग़ज़ल (तुम्हारी एक अदा पर ही मुस्कराने की)

1212 / 1122 / 1212 / 22(112)

तुम्हारी एक अदा पर ही मुस्कराने की 

लगी है शर्त सितारों में जगमगाने की 

तुम्हारे आने से फिर लौट आई है रौनक़ 

भुला चुके थे अदा लब तो मुस्कुराने की 

तुम्हीं ने आ के ये वीराना कर दिया रौशन 

तमन्ना थी न ज़रा हमको झिलमिलाने की 

छुपा लूँ आओ तुम्हें मैं इन्हीं निगाहों में 

नज़र लगे न कहीं तुम को इस ज़माने की 

तड़प रहा है मेरी याद में मेरा मोहसिन 

सिखा के कारीगरी…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 17, 2022 at 1:12pm — 6 Comments

ग़ज़ल (उठाओ जितनी भी चाहे क़सम ज़माने की)

1212 / 1122 / 1212 / 22

उठाओ जितनी भी चाहे क़सम ज़माने की 

निकल सकेगी न हसरत हमें मिटाने की 

जहाँ ये सारा हमारा वतन रहेगा, सुनो 

हमारे वास्ते गर्दिश है सब ज़माने की 

जिसे भी देखिये पत्थर लिये हुए है वो 

करेगा बात यहाँ कौन दिल मिलाने की

तड़प के ख़ुद ही मेरी राह पर पड़ा है वो 

बना रहा था जो बातें मुझे भुलाने की 

जिसे भी देखिये वो होश-मंद है यारो

सुनेगा कौन यहाँ बात फिर दिवाने…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 15, 2022 at 5:16pm — 5 Comments

नज़्म (बे-वफ़ा)

2122 - 1122 - 1122 - 112/(22)

दिल धड़कने की सदा ऐसी भी गुमसुम तो न थी

इतनी बे-परवा मेरी जान कभी तुम तो न थी 

हम तड़पते ही रहे तुम को न अहसास हुआ 

अपनी उल्फ़त की कशिश इतनी सनम कम तो न थी 

सब ने देखा मेरी आँखों से बरसता सावन

थी वो बरसात बड़े ज़ोरो की रिम-झिम तो न थी

तुम जिसे ज़ीनत-ए-गुल समझे थे अरमान मेरे 

गुल पे क़तरे थे मेरे अश्कों के शबनम तो न थी 

क्यूँ न आहों ने मेरी आ के तेरे दिल को…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2022 at 11:02pm — 21 Comments

ग़ज़ल (वो गर हमसे नज़रें मिलाने लगेंगे)

122 - 122 - 122 - 122 

वो गर हमसे नज़रें मिलाने लगेंगे 

रक़ीबों पे बिजली गिराने लगेंगे 

ये लकड़ी है गीली उठेगा धुआँ ही  

सुलगने में इसको ज़माने लगेंगे 

करोगे जो बातें बिना पैर-सर की

कई इनमें फिर शाख़साने लगेंगे 

उमीदों को जिसने न मरने दिया हो

हदफ़ पर उसी के निशाने लगेंगे 

तेरी शाइरी से परेशाँ हैं जो-जो 

तेरी नज़्में ख़ुद गुनगुनाने लगेंगे 

ये जो बात तुमने कही है बजा…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on September 6, 2022 at 10:11pm — 4 Comments

नग़्मा-ए-जश्न-ए-आज़ादी

221 - 2121 - 1221 - 212

ख़ुशियों का मौक़ा आया है ख़ुशियाँ मनाइये

आज़ादी का ये दिन है ज़रा मुस्कुराइये 

क़ुर्बानियाँ शहीदों की भूलेंगे हम नहीं 

दिल से कभी हमारे मिटेंगे ये ग़म नहीं

माना वो दर्द हमसे भुलाया न जाएगा 

ये जश्न भी ख़ुशी का मिटाया न जाएगा 

मिलकर सब एक साथ तिरंगा उठाइये 

जय हिंद की सदा से फ़ज़ा को गुँजाइये 

ख़ुशियों का मौक़ा आया है ख़ुशियाँ मनाइये

आज़ादी का ये दिन है ज़रा…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 15, 2022 at 12:05pm — 4 Comments

ग़ज़ल (जुनून-ए-इश्क़ जिसे हो कहाँ ठहरता है)

1212 - 1122 - 1212 - 22 

जुनून-ए-इश्क़ जिसे हो कहाँ ठहरता है

हवादिसात के सहरा से भी गुज़रता है 

हक़ीक़तों की ज़मीं पर जो आ ठहरता है 

तसव्वुरात के दरिया में कब उतरता है 

बुझा सका है कभी इश्क़ की लगी भी कोई 

भड़कती आग का दरिया है ख़ुद उतरता है 

मियाँ शराब नहीं सिर्फ़ शय बुरी, तन्हा  

बुतों का हुस्न भी ईमाँ ख़राब करता है 

तमाम दर्द मेरे दिल के मिट ही जाते…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 5, 2022 at 7:33pm — 2 Comments

ग़ज़ल (देखें यहीं कहीं वो मेरा साए-बान था)

221 - 2121 - 1221 - 212

देखें यहीं कहीं वो मेरा साए-बान था 

साये में जिसके मेरी ज़मीं, आस्मान था 

खंडर हुआ है आज कभी आलीशान था

ये ढेर ! हाँ यही तो वो ज़िंदा मकान था 

पामाल कर दिये हैं सभी…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 26, 2022 at 9:56am — 4 Comments

ग़ज़ल (जबसे तुमने मिलना-जुलना छोड़ दिया)

22 22 22 22 22 2

जबसे तुमने मिलना-जुलना छोड़ दिया

यूँ लगता है जैसे नाता तोड़ दिया

मंदिर-मस्जिद के चक्कर में कितनों ने 

पुश्तैनी रिश्तों को यूँ ही तोड़ दिया 

मुझ पर है इल्ज़ाम कि मैं चुप रहता हूँ 

तुम ने भी तो लड़ना-वड़ना छोड़ दिया  

मुझको आगे आते जो देखा उसने 

ग़ुप-चुप अपनी राहों का रुख़ मोड़ दिया

मुझको बीच समंदर उसने जाने क्यों 

लहरों की बाहों में तन्हा छोड़…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 30, 2022 at 10:44pm — 8 Comments

ग़ज़ल (... तमाशा बना दिया)

221 - 2121 - 1221 - 212

मौज आयी..घर को फूंक तमाशा बना दिया

हा.... झोंपड़ा फ़क़ीर ने ख़ुद ही जला दिया 

कर के इशारा बज़्म से जिसको उठा दिया

दरवेश ने उसी का मुक़द्दर बना दिया

अपनों के होते ग़ैर भला क्यूँ उठाए ग़म 

नादान दोस्तों ने ही रुसवा करा दिया

नफ़रत की फ़स्ल देख के ख़ुश हो रहे थे सब

बोया था जिसने ज़ह्र उसी को चखा दिया 

मुझको था ए'तिमाद कि आ जाएगी बहार

रंग-ए-ख़िज़ाँ ने मेरे यक़ीं को…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 20, 2022 at 11:59am — 12 Comments

ग़ज़ल (इबादतों में अक़ीदत की सर-कशी न मिला)

1212 - 1122 - 1212 - 112

इबादतों में अक़ीदत की सर-कशी न मिला  

महब्बतों में मेरे यार दुश्मनी न मिला

हवाओं में न कहीं अब ये ज़ह्र घुल जाए 

फ़ज़ा को साफ़ ही रहने दे शोरिशी न मिला 

कहीं नहीं है कोई ग़ैर दूर-दूर तलक

मगर क़रीब भी मुझको मेरा कोई न मिला 

सिहर उठा हूँ किया याद वक़्त वो जब जब

चिता को आग लगाने को आदमी न मिला 

मिले हैं यूँ तो हज़ारों हसीं ज़माने में

जिसे तलाशता रहता हूँ बस वही…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 10, 2022 at 1:57pm — 10 Comments

नज़्म - शहीद की आरज़ू

2122 - 2122 - 2122 - 212

मुझको पहलू में सुला लेना मेरे प्यारे वतन

अपने आँचल की हवा देना मेरे प्यारे वतन 

आ रहा हूँ तुझसे मिलने जंग के मैदान से 

अपनी बाहों में उठा लेना मेरे प्यारे वतन 

आ मिलूंगा जब तुझे मैं बाज़ुओं में लेके तू

मुझको झूला भी झुला देना मेरे प्यारे वतन

प्यार करना माँ के जैसे चूमकर माथा मेरा    

मुझको सीने से लगा लेना मेरे प्यारे वतन 

ख़ाक अपनी तेरे क़दमों छोड़ जाता हूँ…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 27, 2022 at 4:40pm — 2 Comments

ऐ सरहद पर मिटने वाले...(मुसल्सल ग़ज़ल)

22 22 - 22 22 - 22 22 - 22 2

ऐ  सरहद पर  मिटने वाले  तुझ में  जान  हमारी है        

इक तेरी  जाँ-बाज़ी  उनकी  सौ जानों  पर भारी है 

अपने वतन की मिट्टी हमको यारो जान से प्यारी है

ख़ाक-ए-वतन बेजान नहीं ये इस में जान हमारी है

एक …

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 25, 2022 at 4:37pm — 6 Comments

ग़ज़ल (क़वाफ़ी चंद और अशआर कहने हैं कई मुझको)

1222 - 1222 - 1222 - 1222 

क़वाफ़ी चंद और अशआर कहने हैं कई मुझको

चुनौती दे रहे हैं चाहने वाले नई मुझको 

ये किसने दिलकी चौखट पर ज़बीं ख़म करके रख दी है 

अक़ीदत की मिली है ये इबारत इक नई मुझको 

चले आओ ख़ुतूत-ओ-फ़ोन से ये दिल न बहलेगा 

कि तुम से रू-ब-रू करनी हैं अब बातें कई मुझको 

हवाओं में घुली है फिर वो ख़ुशबू जानी-पहचानी 

सुनाई दी अभी आवाज़ उसकी वाक़ई मुझको 

तेरे पैकर की गर्मी से पिघलता है…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 23, 2022 at 1:41pm — No Comments

ग़ज़ल (तुझे है जीतने की धुन तो ये इक़रार ले पहले)

1222 - 1222 - 1222 - 1222

तुझे  है जीतने  की  धुन तो ये  इक़रार ले पहले

न  हारेगा  कभी भी तू  किसी भी हार  से पहले 

अगर  कुंदन  के जैसा  चाहता है तू चमकना तो

ज़रा शो'लों के दरियासे तू  ख़ुद को तारले पहले 

हवाओं की तरह आज़ाद बहना अच्छा लगता है 

तो परवा छोड़  दुनिया की  ज़रा रफ़्तार ले पहले 

फ़रिश्तों  की तरह  मासूम होना है तेरी ख़्वाहिश

इताअत में तू रब की इस ख़ुदी को मार ले पहले  

तुझे महताब…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 21, 2022 at 3:47pm — No Comments

ग़ज़ल (जिसको हुआ गुमाँ कि 'ख़ुदा' हो गया है वो)

2212 1211 2212 12

जिसको हुआ गुमाँ कि 'ख़ुदा' हो गया है वो 

रुस्वाई के भंवर में तो ख़ुद जा गिरा है वो

अच्छा भला था 'ख़ुल्द' में 'इब्लीस' हो गया 

झूठी अना की शान को मुन्किर हुआ है वो 

हद से ज़ियाद: ख़ुद पे भरोसे का ये हुआ

थूका जो आस्मान पे मुँह पर गिरा है वो

मिट्टी जो फेंकी चाँद पे मैला नहीं हुआ 

करनी पे अपनी ख़ुद ही तो शर्मा रहा है वो

थोड़ी सी धूप के लिये था जो रवाँ-दवाँ

सूरज को ले के…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 17, 2022 at 11:38am — 9 Comments

ग़ज़ल (हँसी में उनकी हमने वो छुपा ख़ंजर नहीं देखा )

1222 - 1222 - 1222 - 1222 

हँसी में उनकी हमने वो छुपा ख़ंजर नहीं देखा 

हसीं मंज़र ही देखा था पस-ए-मंज़र नहीं देखा 

वो जैसा उनको देखा है कोई दिलबर नहीं देखा 

हसीं तो ख़ूब देखे हैं रुख़-ए-अनवर नहीं देखा 

ज़माने में कहीं तुम सा कोई ख़ुद-सर नहीं देखा 

सितमगर तो कई देखे मगर दिलबर नहीं देखा

वो मेरे ज़ाहिरी ज़ख़्मों को मुझसे पूछते हैं क्या 

दिवानों ने कभी दिल में चुभा नश्तर नहीं देखा 

जो कहते थे…

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Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 13, 2022 at 6:03pm — 8 Comments

नये साल का तुहफ़ा

नए साल की आमद पर तुझ को 

क्या तुहफ़ा पेश करूँ ऐ दोस्त

ये दिल तो सदा से तेरा है 

अब जान भी तेरी हुई ऐ दोस्त

हर साल के हर नए माह तुझे 

ख़ुशियों का नया पैग़ाम मिले

हर दिन के हर लम्हे तुझसे 

ग़म कोसों दूर रहे ए दोस्त

नाकामी किसे कहते हैं भला 

तुझको न रहे कुछ इसकी ख़बर

थम जाएं कहीं जो तेरे क़दम 

ख़ुद आए वहां मंज़िल ए दोस्त

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on January 1, 2022 at 12:00am — 4 Comments

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