For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शोहरत पर कुछ क्षणिकाएं :

शोहरत पर कुछ क्षणिकाएं :

कुछ रिश्ते
रिश्तों का
दिलाने लगे हैं
अहसास
शायद
शोहरत की चमक से
वो
बनने लगे हैं
ख़ास
.... .... .... .... ....
शोहरत की ऊंचाई से
लगते हैं
सभी बौने
यश की धूप
सांझ से डरती है
जाने
कब उतर जाये
यश के जिस्म से
अहं का मुलम्मा
और रह जाएँ
हाथों में
यथार्थ के
खाली दोने
.... .... .... .... .... ....
दर्पण
अंधे हो जाते हैं
अंधेरों में
यथार्थ और ख्वाब
खो देते हैं
अपना अक्स
उग आती हैं
अहं की घास
शोहरत की
कच्ची मुंडेरों पर

.......................

जाती ही नहीं
शोहरत की दीवारों से
मन से टूटे
रिश्तों के
दर्द भरी
सीलन

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on October 4, 2018 at 12:35pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  ..जी. सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 3, 2018 at 4:41pm

आ. भाई सुशील जी, अच्छी कविता हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2018 at 2:48pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2018 at 2:47pm

आदरणीय  Ajay Tiwari जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार। आपका कथन सही है। मैं आपकी बात से सहमत हूँ। आपके द्वारा किया गया संशोधन भी उत्तम है। इसे भी मैं अभी ठीक कर पुनः प्रेषित करता हूँ। हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2018 at 2:43pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार। आपका कथन सही है। मैं इस त्रुटि को अभी एडिट करता हूँ। इस हेतु आपका हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2018 at 2:41pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan ..जी. सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 12:18pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी क्षणिकाएं हुई हैं,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ajay Tiwari on October 1, 2018 at 8:37pm

आदरणीय सुशील जी, बहुत अच्छी क्षणिकाएं प्रस्तुत की है. हार्दिक बधाई. 

मेरे ख्याल से आख़िरी क्षणिका को दो हिस्सों बाँट कर अलग अलग क्षणिकाओं के तौर पर पेश करना बेहतर होगा :

1

दर्पण 
अंधे हो जाते हैं 
अंधेरों में 
यथार्थ और ख्वाब 
खो देते हैं 
अपना अक्स 
उग आती हैं 
अहं की घास 
शोहरत की 
कच्ची मुंडेरों पर

 2
जाती ही नहीं 
शोहरत के कमरों से 
मन से टूटे 
रिश्तों के 
दर्द की 
सीलन

सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on September 30, 2018 at 9:24am

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन।क्षणिकाओं के माध्यम से बढ़िया भाव सम्प्रेषण हुआ है । बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये।

एक जगह टंकण त्रुटि महसूस हो रही हैं। देखियेगा

//कब उत्तर जाये// मुझे लग रहा है यहां "उतर" जाए शुद्ध होगा।

Comment by नाथ सोनांचली on September 30, 2018 at 9:21am

आद0 नरेंद्र सिंह चौहान जी आपकी प्रतिक्रिया इस मंच के अनुकूल कतई नहीं है पर आप इस बात को संज्ञान में भी नहीं ले रहे हैं जो बेहद अफसोस जनक है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
21 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service