For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत (गीतिका छंद)/सतविन्द्र कुमार

भारती को अब नहीं फिर से सताना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए

आज अपने देश में जो ये घृणा का दौर है
पागलों ने सब किया है ये नहीं कुछ और है
नफरतों को बेचते जो काम ऐसे कर रहे
बांटते हैं देश को बस जेब अपनी भर रहे
उन सभी के चेहरे से पट हटाना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए।।१।।


देश के जो रक्षकों को पत्थरों से मारते
दुश्मनों से जा मिलें वो क्या कभी हैं हारते
आज मिलकर हम सभी उत्तर उन्हें देते चलें
साथ आएँ वो हमारे या विदा लेते चलें
देश अपने से उन्हें अब तो भगाना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए।।२।।

जो रहे गद्दार सारे क्यों उन्हें हम सह रहे?
जो सदा से देश को ही बाँटने की कह रहे
उन सभी को अब नहीं रहना यहाँ ये सोचलें
बाँध अपने बिस्तरों को वे यहाँ से तो चलें
सह नहीं सकते उन्हें यूँ अब जताना चाहिए
दुश्मनों को देश के अब ये बताना चाहिए।।३।।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 943

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 12, 2016 at 11:01pm

देश भक्ति भावना से सराबोर इस गीतिका के लिए दिल से बधाई लीजिये आद० सतविन्द्र  भैया |शुभकामनायें 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 4, 2016 at 6:41pm
आपको रचनाकर्म अच्छा लगा।इसने सार्थकता प्राप्त की।हार्दिक आभार आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी।
Comment by Ashok Kumar Raktale on August 4, 2016 at 8:08am

वाह ! वाह ! तीनों बंद सुंदर रचे हैं. उन्माद की सामयिक घटना पर गीतिका छंद आधारित सुंदर गीत रचा है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी. सादर.

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 8:42pm
आदरणीय सुरेश फौजी भाई प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया।दिल ने कहा हमने लिखा।सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 3, 2016 at 8:27pm
आदरणीय सतविंदर भाई आज के समय में ऐसे ही साहित्य की जरूरत है। हम फौजियों के बलिदान को तभी सम्मान मिल सकता है। दिल की गहराईयों से बधाई प्रेषित है ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 5:02pm
बहुत् बहुत हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा दी।नमन
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 5:00pm
श्रद्धेय सौरभ सर सादर वन्दे!आपसे प्रोत्साहन पाकर अभिभूत हूँ।आपके कहे अनुसार ऐसी ग़ज़लों को पढ़ने का प्रयास करूँगा।सादर आभार संग नमन श्रद्धेय !
Comment by pratibha pande on August 2, 2016 at 8:17pm

इस  ऊर्जा से भरे  सामयिक गीत पर ढेरों बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय सतविंदर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2016 at 5:51pm

आपके प्रयास से हार्दिक प्रसन्नता हुई है आदरणीय सतविन्द्र जी. 

गीतिका छन्द उर्दू बहर फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन के समकक्ष है. अतः ऐसी व्यवस्था में अच्छी-अच्छी नज़्में भी कही गयी हैं. आप चाहें तो ढूँढ कर पढ़ सकते हैं. इससे कथ्य और स्ंप्रेषणीयता में आशातीत सुधार होगा. यह अवश्य है कि आपका प्रयास वाकई श्लाघ्नीय है. 

किन्तु पहली पंक्ति में ही फिर और सताना के बीच एक गुरु का लोप हो गया है. यह अवश्य ही टंकण त्रुटि है. सुधार लीजियेगा.

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 2, 2016 at 3:40pm
आभार आदरणीय गिरिराज जी नमन।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
14 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
49 minutes ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
2 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
Thursday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service