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ग़ज़ल -- ये ज़मीं सारी मेरा घर कह लें ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212    22  / 112 

ये ज़मीं सारी मेरा घर कह लें

आप आयें जहाँ से, दर कह लें

 

जो कमाता है, बांटने के लिये 

है तो इंसाँ,  मगर शज़र कह लें

 

जान रखता हूँ मै हथेली पर

दोस्त माना मुझे अगर कह लें

 

सच को सच बोलने की आदत है  

मेरी राहों को पुर ख़तर कह लें

 

आपके दर पे मांगने आया

आप चाहें,  अगर- मगर कह लें

 

दिल के जज़्बात पिरो लाया हूँ

बिन पढ़े आप बे असर कह लें

 

मेरे अहबाब मेरी क़ुव्वत हैं

मेरी ख़ातिर, हैं बाल-- पर कह लें

 

भीड़ मेरी तरफ जो लगती है

अस्ल में है उधर , उधर कह लें

 

मै ने बस आइना दिखाया था

अब ग़लत मुझको उम्र भर कह लें  

 

आग लगती है मेरी बातों से

आप अब से उन्हें शरर कह लें 

****************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2015 at 8:47am

आदरणीय सौरभ भाई , आपने सही पहचाना , इस रदीफ पर कुछ कहने  की सोच के ही गज़ल कही थी । आपका आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 5, 2015 at 8:45am

आदरणीय मिथिलेश भाई , आपका आभार ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2015 at 10:23pm

यह एक अभ्यासी प्रास हुआ है. हार्दिक बधाई, आदरणीय गिरिराजभाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 2:54am

आदरणीय गिरिराज सर शानदार ग़ज़ल हुई है 

शेर दर शेर दाद हाज़िर है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2015 at 7:48am

आदरणीया कांता जी , आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by kanta roy on June 16, 2015 at 7:22am
वाह ! बहुत खूब कही है यह गजल आपने

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 1:47pm

आदरणीय नेरेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के  लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by narendrasinh chauhan on June 15, 2015 at 12:48pm

क्या खूब गजल कही है..........बेहद उम्दा गजल


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 15, 2015 at 10:24am

आदरणीय दिनेश भाई , हौसला अफज़ाईका शुक्रिया ।  उस मिसरे मे गलती है , मै सुधार कर लूँगा । आपका आभारी हूँ ।

Comment by दिनेश कुमार on June 15, 2015 at 7:28am

बहुत खूब .. वाह वाह आदरणीय ... मुबारकबाद ..

दिल के जज़्बात पिरो लाया हूँ... पुनः देखने की ज़रुरत लगती है शायद सर..

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