For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तन्हाईयों में लौट जाएगी......

तन्हाईयों में लौट जाएगी......

किसको सदायें देते हो
कोई रूह को चुराये जाता है
यादों के खंज़र से
आज खामोशी का दामन
तार- तार हुआ जाता है
हवाओं में
साँसों की सरगोशियों का शोर है
आँखों की मुंडेरों पर
दर्द के मौसम आ बैठे है
धड़कनें ज़ंजीरों में कैद हैं
भला दिल की सदा
कौन सुन पायेगा
ये पत्थरों का शहर है
यहां दिल शीशे सा टूट जायेगा
हर मौसम का यहां
अलग मजाज़ है
हर मौसम अब यहां 
चश्मे सावन में डूब जाएगा
कोई बादे सबा अब
कोई सदा न लाएगी
तन्हाईयों से जो आयी है
तन्हाईयों में लौट जाएगी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 494

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on April 30, 2015 at 6:56pm

आदरणीय   डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 30, 2015 at 1:24pm

बढिया रचना है सरना जी . सादर .

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2015 at 2:28pm

आदरणीय   aman kumar  lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2015 at 2:28pm

आदरणीय  Er. Ganesh Jee "Bagi" lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2015 at 2:27pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2015 at 2:27pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker lजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2015 at 2:26pm

आदरणीय   shree suneelजी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on April 29, 2015 at 2:26pm

आदरणीय  Shyam Narain Verma जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by aman kumar on April 29, 2015 at 8:52am

एक  सुन्दर और भावपूर्ण कविता !@

आभार 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2015 at 11:00pm

वाह वाह, कविता की खूबसूरती और शब्द विन्यास देखते ही बनता है, सुन्दर अभिव्यक्ति, बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
2 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
16 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service