For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मौसम के
सहारे वह
अरमान सजाता
जीवन का
दिन रात ना समझे वह तो
एहसास,ना वर्षा,ना ठंड का
कमर तोड़ मेहनत पर भी
ना मिलता उसे निवाला था।
खाद बीज महँगा अब तो
पानी भी ना देता संग था।
कर्ज में डूब कर भी वह
करता पूरे कर्म था।
तब जीवनदायक
अनाज का दाना
आता उसके घर था।
बड़े अरमान इसी दाने पर
हाथ पीले बेटी के 
बदले मेहर की वह
तन दिखाती साड़ी को
जीवन की है और जरूरत
महीनो तक मुँह का निवाला
कर्ज निवारण इसी दाने से
सब इसी खेती पर निर्भर
पर नसीब का मार उस पर
कार्तिक में बरसे बादल
बह गये जिन्‍दगी के अरमा
निराश जीवन से अपने
मिटा गया खुद केा वह
टूट गयी चुड़ी,
धुल गया सिंन्‍दूर
पत्‍नी बेवा भरी जवानी,
ऑंगन सूना बच्‍चे अनाथ
ऑंगन में थी उसकी लाश 
वह कोई गैर नहीं
अंजान नहीं
कर्तव्‍य कर्ज में कुचाला
अखंड भारत का
एक किसान था।
जय जवान जय किसान था
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

Views: 537

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2013 at 12:48am

बहुत खूब !  इस प्रस्तुति को अब संशोधित कर फिर से लिखिये ताकि प्रस्तुतीकरण पर समुचित अभ्यास हो सके, भाईजी. और, अबकी कोशिश में इस कविता को भाषण का पर्याय न बनने दीजियेगा.

हार्दिक शुभेच्छाएँ

Comment by Akhand Gahmari on December 3, 2013 at 4:05pm

आदरणीय सुजान जी, गिरिराज जी, पाठक जी , गीत जी,डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्‍तव जी एवं आदरणीया वेदिका जी उत्‍साहवर्धन हेतु आप सब को मेरा प्रणाम, आशा है कि आप भविष्‍य में भी हमारे उपर अपना स्‍नेह प्रदान करते रहेगें।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 3:52pm

गहमरी जी

किसान की समस्या पूरे देश जकी समस्या है  i

आपने अपनी स्टाइल से इस समस्या को उठाया है i

इसके लिए आपको धन्यवाद i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 3, 2013 at 11:26am

आपकी रचना मन को छू गई, सच! एक किसान की व्यथा को आपने बखूबी चित्रित किया है, बधाई स्वीकारें आदरणीय अखंड जी

Comment by वेदिका on December 3, 2013 at 12:37am

किसान कि व्यथा बहुत खूब कही आपने| जो हमारा अन्नदाता है, उसके लिए कई योजनाएँ भी चलायी जा रही हैं| लेकिन उचित चैनल न होने से वह लाभान्वित नही हो पाता|

रचना कि संवेदनशीलता हेतु हार्दिक बधाई!!   

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2013 at 11:54pm

सुन्दर रचना आदरणीय भाई  जी , //////बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2013 at 9:41pm

आदरण्र्र्य अखंड भाई , बहुत सही , कटु सत्य का वर्णन किया है आपने अपनी रचना में !!! किसानों की भलाई का केवल प्रपंच रचा जाता है , सच मे भला सरकार नही करती ये अकाट्य सच है !!!! रचना के लिये आपको बधाई !!!!

Comment by सूबे सिंह सुजान on December 2, 2013 at 9:23pm

बहुत सुन्दर .किसान पर कुदरत ही सब कुछ कर पाती है। सरकार नही कुछ सही कर पाती। सरकार कर्मचारियों के लिये,, और निखट्टूओं के लिये तो कर सकती है किसान के लिये नहीं करती।।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
59 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service