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SANDEEP KUMAR PATEL's Blog – November 2013 Archive (9)

तरही ग़ज़ल

किसी सोच में कभी डूब के जो लिखा न हो औ कहा न हो

वो ग़ज़ल है क्या और वो गीत क्या किसी दिल को जिसने छुआ न हो

 

मेरी शाईरी में है जो निहाँ मेरे हर्फ़ में वो रवाँ रवाँ

मेरी है दुआ उसी रब से के कहूँ जब मैं कोई खफा न हो

 

ज़रा पूछिए किसी आदमी से छुआ है कैसे ये आसमाँ

क्या सफ़र में फर्श से अर्श के कोई है वो जो कि गिरा न हो

 

कहे माँ कहीं मिलें गर्दिशें तो खुदा दिखाता है रास्ता

इसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो चराग ले के खडा न…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 30, 2013 at 4:00pm — 20 Comments

घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है

बात सच जो लबे खुद्दार में आ जाती है

मैं ये सोचे हूँ क्यूँ बेकार में आ जाती है

 

सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो  

उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है

 

हर दफा सुन के चुनावी औ सियासी बातें

याँ चमक सूरते बीमार में आ जाती है

 

गालियाँ भीड़ को दे यार से भी लड़ मर ले

कैसे हिम्मत किसी मैख्वार में आ जाती है

 

रोते चेहरों को हँसाना ही जिन्हें है भाता  

रूह उन जैसी भी संसार में आ जाती…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 26, 2013 at 11:56am — 17 Comments

रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब

रिश्ते यहाँ लहू के सिमटने लगे हैं अब

माँ बाप भाई भाई में बँटने लगे हैं अब

 

लो आज चल दिया है वो बाज़ार की तरफ  

सब्जी के दाम लगता है घटने लगे हैं अब

 

वो प्यार से गुलाब हमें बोल क्या गए

यादों के खार तन से लिपटने लगे हैं अब

 

बदले हुए निजाम की तारीफ क्या करें  

याँ शेर पे सियार झपटने लगे हैं अब

 

नेताओं की सुहबत का असर उनपे देखिये

देकर जबान वो भी पलटने लगे हैं अब

 

मशरूफ “दीप” सब हैं क्या…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 24, 2013 at 9:07pm — 13 Comments

तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं

वो अपने यार को छलने के बाद आते हैं

दिलों में दर्द उभरने के बाद आते हैं

 

चमकते चाँद सितारे गगन में लगता है  

विरह की आग में जलने के बाद आते हैं

 

न कोई देख ले चेहरे की झुर्रियां यारों  

तभी वो खूब सँवरने के बाद आते हैं

 

हमारे दर्द भी करते हैं नौकरी शायद

हमेशा शाम के ढलने के बाद आते हैं

 

तुम्हारी याद के जुगनू भी बेबफा तुम से

तमाम रात गुजरने के बाद आते हैं…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 22, 2013 at 1:30pm — 31 Comments

झूठ जीता सत्य हारा

झूठ जीता सत्य हारा

राजनीति की अग्नि में

जले देश सारा

 

रिश्ते नाते स्वार्थ-सिद्धि की धुरी में  

समय मजदूरों का गुजरे नौकरी में

श्रम किया जी तोड़

किन्तु फल है खारा

 

मन लगा के पर हुआ जाता गगन सा

लक्ष्य के आगे हैं किन्तु तम गहन सा

सिन्धु की गहराई

जाने बस किनारा

 

घात की यह वेदना क्यूँ माँ सहे अब

ज्ञान की नदिया भी क्यूँ उल्टी बहे अब

मिट गयी अब नेह की

वो मूल धारा…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 20, 2013 at 10:30pm — 5 Comments

भोर

 

दिव्य अलोकिक सी

उतर रही

क्षितज से

नीचे की ओर

त्रण से छीन लेती है

ओस का प्याला

और वह

अवाक

मूक मुँह बाए

देखता है

उस देवी को जो

मद-मस्त हो जाती है

कलि कलि मुस्काती है  

पुष्प खिल उठते हैं

बागों के

पोखरों के

ह्रदय के   

उसके दर्शन पा

 

भर लेती है वो

अपनी बाहों में

अलसाए से

विहंगों को

प्रकृति के कण कण को  

और देती है…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 20, 2013 at 4:32pm — 12 Comments

मन में पसरे घोर तम का नाश होना चाहिए

ज्ञान का चहुँ ओर यों प्रकाश होना चाहिए

मन में पसरे घोर तम का नाश होना चाहिए

 

बढ़ रही तकनीक क्रांति ला रहे उद्योग अब

तब तो मेरे गाँव का विकाश होना चाहिए

 

देखता है स्वप्न सोते जागते दिन रात मन

बाँधने मनगति को तप का पाश होना चाहिए  

 

जीतने का हर समय प्रयास करना है उचित

हार कर हमको नहीं निराश होना चाहिए

 

घर के भीतर “दीप” जलना सिद्ध होता है सही

आपका भगवान् से निकाश होना चाहिए

 

निकाश -…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 8:35pm — 13 Comments

कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया

देख सियासतदानों ने सत्ता पाकर क्या काम किया

कच्ची सड़कें खुद बनवाकर अभियंता बदनाम किया

 

इल्म नया दे रस्म रिवाज अदब का काम तमाम किया

मगरीबी तहजीबें अपनाकर फिर मुल्क गुलाम किया

 

देख बुढापा मात पिता का सोचे कब रुखसत होंगे

बेटे ने तब पहले उनकी दौलत अपने नाम किया

 

सुख सुविधाएँ अक्सर ही पैदा करती सुकुमारों को

तंगी की हालत थी जिसने पैदा एक कलाम किया

 

वीराना था ये घर मेरा तेरे आने से पहले

दीप जलाकर प्रेम का…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 17, 2013 at 2:13pm — 17 Comments

इश्क जब होगा सनम को जमाल कर देंगे

गमजदा लोग ये ऐसा कमाल कर देंगे

इतना रोयेंगे के हँसना मुहाल कर देंगे

 

झूठ कहने में उन्हें इस कदर महारत है

के सजर को भी वो तो नौ निहाल कर देंगे

 

कैसे हैं आज के बच्चे कहें भी क्या उनको

इक जबाब आता नहीं सौ सवाल कर देंगे

 

है यकीं अपनी मुहब्बत पे इस कदर उनको

इश्क जब होगा सनम को जमाल कर देंगे

 

हैं हम आजाद हवा इन्कलाब लाने को

"दीप" को एक सुलगती मशाल कर देंगे

 

संदीप कुमार पटेल…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on November 11, 2013 at 2:30pm — 11 Comments

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