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कवि - राज बुन्दॆली's Blog – April 2015 Archive (8)

एक गज़ल,

२१२२ २१२२ २१२२ २१२

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बारिषॊं मॆं भीग जाना नित नहाना याद है !!

आसमां पर उन पतंगॊं का उड़ाना याद है !!(१)



टप-टपातीं बूँद बादल गरजतॆ आषाढ़ मॆं,

पॊखरॊं कॆ मध्य मॆढक टर-टराना याद है !!(२)



घॊड़ियॊं कॆ झुंड आतॆ थॆ कभी जब गाँव मॆं,

पूँछ उनकी खींचतॆ ही हिनहिनाना याद है !!(३)



श्रावणी त्यॊहार तॊ हॊता अनॊखा था बहुत,

लड़कियॊं का ताल मॆं कजली बहाना याद है!!(४)



खूब रॊतीं थी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 8, 2015 at 3:30am — 12 Comments

दस दॊहॆ,,,(व्यसन मुक्ति)

दस दॊहा,,,(व्यसन मुक्ति)

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धुँआ उड़ाना छॊड़दॆ, मत भर भीतर आग !

सड़ जायॆंगॆ फॆफड़ॆ, हॊं अनगिनत सुराग़ !!(१)



जला जला सिगरॆट तू, मारॆ लम्बी फूंक !

रॊग बुलाता है स्वयं, कर कॆ भारी चूक !!(२)



बीड़ी सिगरिट फूँक कर, करॆ दाम बर्बाद !

मीत न आयॆं पूछनॆं,जब तन बहॆ मवाद !!(३)



कैंसर सँग टी.बी. मिलॆ,जैसॆ मिलॆ दहॆज़ !

खूनी खाँसी अरु दमा,अंत मौत की सॆज़ !!(४)



मजॆ उड़ाता है अभी, गगन उड़ाता छल्ल !

खूनी खाँसी जब उठॆ, रक्त बहॆगा भल्ल…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 7, 2015 at 1:55am — 5 Comments

दस दॊहॆ,,,,,(माँ)

दस दॊहॆ,,,,,(माँ)

===========

प्रथम खिलायॆ पुत्र कॊ,बचा हुआ जॊ खाय !

दॊ रॊटी कॊ आज वह, घर मॆं पड़ी ललाय !! (१)



दूध पिलाया जब उसॆ, सही वक्ष पर लात !

वही पुत्र अब डाँट कर, करता माँ सॆ बात !! (२)



सूखॆ वसन सुलाय सुत,रही शीत सिसियात !

चिथड़ॊं मॆं अँग अँग ढँकॆ, जागी सारी रात !! (३)



नज़ला खाँसी ताप या, गर्म हुआ जॊ गात !

एक छींक पर पुत्र की, जगतॆ हुआ प्रभात !! (४)



गहनॆ गिरवी धर दियॆ, जब जब सुत बीमार !

मज़दूरी कर कर भरा,…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 6, 2015 at 4:00am — 9 Comments

अरसात सवैया छन्द

शिल्प = भगण X 7 + रगण
ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।। ऽ।।  ऽ।ऽ
 

ऊपर सींकि टँगाय धरी हति,झूलत ती लटकी नित जीत की !!
मॊहन खाइ गयॊ सगरॊ दधि, फॊरि गयॊ मटकी नवनीत की !!
भीतर आइ लखी गति मॊ पर,गाज गिरी टटकी अनरीत की !!
‘राज’ कहैं नहिं दॆंउ उलाहन,भीति हियॆ अटकी कछु प्रीत की !!

"राज बुन्दॆली"
मौलिक एवं अप्रकाशित,,,,,,,

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 5, 2015 at 4:00am — 5 Comments

चकोर सवैया

चकोर सवैया

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भगण X 7 + गुरु + लघु
================

फॊरत है मटकी नित मॊहन, नंद यशॊमति तॆ कहु आज !!
चीर चुरावत गॊपिन कॆ सुनु, वॊहि न आवत एकहु लाज !!
नाँवु धरैं नर नारि सबै नित, नाँवु धरै यदु वंश समाज !!
खीझत खीझत ‘राज’कहैं अलि,खूब सताइ रहा बृजराज !!

"राज बुन्दॆली"

मौलिक व अप्रकाशित

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 4, 2015 at 5:30am — 6 Comments

मनहरण घनाक्षरी छन्द

मनहरण घनाक्षरी छन्द
***********************



पैरॊं की धूल सॆ तर,गई नार गौतम की,

पैर धो कॆवट पाया, जग मॆं सम्मान है !!

राज-पाट पाया भाई,भरत नॆं अयॊध्या का,

किन्तु प्रभु…
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Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 3, 2015 at 12:14am — 8 Comments

एक प्रयास ग़ज़ल,,,

कभी तुम चीन जाओगे कभी जापान जाओगे ।।

नया रुतबा दिखाने को कभी ईरान जाओगे ।।(1)



गिरानी के तले दबकर मरे जनता तुम्हारा क्या,

विदेशों में मियाँ खाने मिलें पकवान जाओगे ।।(2)



पड़े ओले किसानों के मुक़द्दर में बनीं पर्ची,

जताने तुम रहम-खोरी चले खलिहान जाओगे ।।(3)



मिलेंगे कब हमें अच्छे दिनों की आस है भाई,

विदेशी नोट लाने को कभी हनुमान जाओगे ।।(4)



हमारी बेवशी को तुम न समझोगे बड़े साहब,

ज़रा ख़ुद डूब कर देखो,हमें पहचान जाओगे ।।(5)…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 2, 2015 at 8:00am — 10 Comments

गज़ल,,,,,,

ज़मानॆ का चलन यारॊ यहाँ इक-दम निराला है !!

गिरा जॊ राह मॆं उसकॊ कहॊ किसनॆं सँभाला है !!(१)



चला जॊ राह ईमाँ की उसी पर है उठी उँगली,

सरीखा आँख मॆं चुभता सभी की तॆज भाला है !!(२)



चलीं हैं आँधियाँ कैसी बुझानॆ अब चिराग़ॊं कॊ,

कभी सॊचा नहीं उन नॆं अँधॆरा स्याह काला है !!(३)



लिखी किसनॆ यहाँ तहरीर है ख़ूनी लिबासॊं की,

जहाँ दॆखॊ वहीं पॆ बस क़ज़ा का बॊल-बाला है !!(४)



वफ़ा की राह चलनॆं का नतीज़ा खून कॆ आँसू,

मग़र फिर भी वफ़ाऒं कॊ ज़हां मॆं खूब…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 1, 2015 at 1:30am — 7 Comments

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