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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला's Blog – March 2015 Archive (3)

कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

1 धन बल का मद 

धन के माया जाल में, लगे रहे दिन रेन

दुखियों के दुख देखकर, हुआ न मन बेचैन |

हुआ न मन बेचैन. ह्रदय न किसी का रोया

सुरा सुन्दरी जाम. जमा धन सभी डुबोया

सोचें अब हो दीन, काम आता निर्धन के

थी बापू की सीख, पड़े न मोह में धन के | 

(2) दुर्लभ मानव जीवन 

मानव दुर्लभ जन्म का, उचित करे उपयोग ,

तन मन धन हमको…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2015 at 11:30am — 11 Comments

घनाक्षरी - लक्ष्मण रामानुज

महिला दिवस पर रचित -

घनाक्षरी – 16-15 वर्ण

कंधें से कंधा मिला काम करे जो खेत में,

भोर में उठ, देर रात तक जगती है |

 

खुद का वजूद भूल मान रखे आदमी का,

सर्वस्व समर्पण को तैयार रहती है |

 

शादी कर अनजान घर बसाने, कोख में,

नौ माह तक पीड़ा भी सहती रहती है |

 

फिर भी स्वयं का नही कोई वजूद मानती,

नाम बच्चें को भी वह बाप का ही देती है |

 

सर्दी गर्मी वर्षा सहती अंग भी झुलसाती,

दूजे…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 12, 2015 at 12:30pm — 18 Comments

कुण्डलिया छंद

जनमत जिसके साथ में, उसकी होती जीत,

अहंकार जिसने किया, जनता करे न प्रीत |

जनता करे न प्रीत, जीत न उसे मिल पाए

जो भी चाहे जीत, काम जनता के आए

कह लक्ष्मण कविराय, मिटावे दिल से नफरत

जनहित की हो सोच, उसे ही मिलता जनमत |

 

दिल में भाव अभाव है,कोरा है वह चित्र 

दुख में कभी न छोड़ता,वह है सच्चा मित्र |

वह है सच्चा मित्र, श्रेय न कभी वह लेता

कपट धूर्तता बैर, पास न फटकने देता

लक्ष्मण देती साथ,ह्रदय से पत्नी इसमें

रहे…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 1, 2015 at 7:30pm — 19 Comments

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