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All Blog Posts Tagged 'कहानी' (92)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

 लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - पांच ---------------------

उसे देखते ही शालू तीर की तरह निकल गयी

सुबह संजय से मालूम हुआ कि रात में शालू को बेहरहमी से पीटा गया है . समाज की संकीर्णता देखकर मेरा मन क्षुब्ध हो उठा .किसी लड़की का किसी लड़के से मिलने का एक ही मतलब निकालने वाला यह समाज सजग एवं सचेत रहने के नाम पर भयंकर लापरवाही का परिचय देता रहता है . शालू पर , जो अभी यौवन के पड़ाव से कुछ दूर ही थी , उसकी मां ने सुरक्षा के ख्याल…

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Added by satish mapatpuri on September 23, 2011 at 9:06pm — 2 Comments

नहीं आऊंगी

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - चार ---------------------

 

मैं सोच नहीं पा रहा था की इस नयी परिस्थिति का किस तरह सामना करूँ . शालू जाने लगी तो मैनें उसे पकड़ कर पुनः बिठा दिया .

" शालू ,मुझे गलत मत समझो. मेरे दिल में तुम्हारे लिए अब भी वहीँ स्नेह है, पर मां की आज्ञा तुम्हें माननी चाहिए."

शालू का मेरे यहाँ आना-जाना अब काफी कम हो गया था. वह मेरे यहाँ तब ही आती थी जब उसकी मां और मधु या तो घर से बाहर हों या सो गयी…

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Added by satish mapatpuri on September 22, 2011 at 10:56pm — 2 Comments

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

 

नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)

लेखक - सतीश मापतपुरी

--------------- अंक - तीन  ---------------------

वह बड़ी हो चुकी थी. सदैव की भाँती एक दिन वह आकर मेरे बगल में बैठ गयी . मैं कुछ परेशान था .

"मुझसे नाराज है अंकल?" उसने पूछा .

"नहीं तो . सर में हल्का दर्द है ."  मैंने यूं ही उसे टालने के ख्याल से…

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Added by satish mapatpuri on September 21, 2011 at 11:26pm — 3 Comments

नहीं आऊँगी (कहानी )

नहीं आऊँगी (कहानी )

           लेखक - सतीश मापतपुरी

----------------- अंक - एक --------------------

मैं जब कभी बरामदे में बैठता हूँ , अनायास मेरी निगाहें उस दरवाजे पर जा टिकती है, जिससे कभी शालू निकलती थी और यह कहते हुए मेरे गले लग जाती थी - " अंकल, आप बहुत अच्छे हैं."

         कई साल गुजर गए उस  मनहूस घटना को बीते हुए. वक़्त ने उस घटना को अतीत का रूप तो दे दिया, किन्तु ...............  मेरे लिए वह घटना आज भी ................. शालू की यादें शायद कभी भी मेरा पीछा…

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Added by satish mapatpuri on September 20, 2011 at 12:43am — No Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-२)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

अंक -१ पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करे

  • अंक - दो

                   इंसान अगर जीने का मकसद खोज ले तो निराशा स्वत: दम तोड़ देगी. विकास को निराशा के गहरे अँधेरे कुंए में आशा की एक टिमटिमाती रोशनी नज़र आई,उसने मन ही मन सोचा -" क्यों न एड्स के साथ जी रहे लोगों के पुनर्वास और उनके प्रति लोगों के दृष्टिकोण में…

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Added by satish mapatpuri on August 11, 2011 at 1:00am — 5 Comments

चुड़ैल

 

            मै पश्चिम वाली कोठरी में आलमारी पर पड़े सामानों को इधर-उधर कर के देख रहा था| तभी मेरी नज़र एक निमंत्रण कार्ड पर पड़ी| कार्ड के ऊपर देखने पर पता चला की वो निमंत्रण भैया के नाम से था, प्रेषक वाली जगह के नाम से मै अनजान था| कौतुहल वश मैंने बड़ी आसानी से अन्दर के पत्र को निकाल कर देखा, अगले दिन बारात आने वाली थी| दर्शनाभिलाषी में पढने पर ज्ञात हुआ की वह निमंत्रण भैया के एक मित्र के बहन की शादी का था| मै और भैया एक ही स्कूल में पढ़े थे और उनके लगभग सारे मित्र मुझे भी…

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Added by आशीष यादव on August 10, 2011 at 10:00am — 11 Comments

धारावाहिक कहानी :- मिशन इज ओवर (अंक-१)

मिशन इज ओवर (कहानी )

लेखक -- सतीश मापतपुरी

  • अंक - एक

                                 अनायास विकास एक दिन अपने गाँव लौट आया. अपने सामने अपने बेटे को देखकर भानु प्रताप चौधरी के मुँह से हठात निकल गया -"अचानक ..... कोई खास बात ......?" घर में दाखिल होते ही प्रथम सामना पिता का होगा, संभवत: वह इसके लिए तैयार न था, परिणामत: वह पल दो पल के लिए सकपका गया ............. किन्तु, अगले ही क्षण स्वयं को नियंत्रित कर तथा अपनी बातों में सहजता का पुट डालते…

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Added by satish mapatpuri on August 10, 2011 at 1:30am — 6 Comments

" एक चीख " एक सच्ची घटना .. Dr Nutan Gairola

ये कैसा महिला का महिला के प्रति प्यार ?

एक चीख मेरे कानो में गूंजती है ..बात छह महीने पहले की है ..जबकि एक चीख की आवाज पर मैं  अपने चेम्बर से बाहर निकली तो पाया - दर्द में पीड़ित महिला को, जो आठ माह के गर्भ से थी काफी रक्तस्त्राव की वजह से पीली पड़ी हुवी  थी | मैं  स्त्रीरोग…

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Added by Dr Nutan on February 6, 2011 at 11:30pm — 6 Comments

कहानी : -ये कहानी नहीं

..एक व्यथा ...कथा नहीं यह

नीलेश और रोमा आज कुछ जल्दबाजी में थे |कल रात को भी नीलेश अपनी ड्यूटी कुछ जल्दी छोड़कर घर आ गया था |और भोर से ही रोमा…

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Added by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 10:00pm — 5 Comments

सत्य (प्रेरक प्रसंग)

बहुत पुरानी बात है कहीं एक गावं था, जहाँ के अधिकाँश लोग येन केन प्राकरेण धन कमाने में लगे हुए थे | उन सब के लिए पैसा ही भगवान था | लेकिन उसी गावं में एक ब्राह्मण ऐसा भी था जिसने कभी भी कोई बुरा काम नही किया था, सत्य की राह पर चलते हुए जो भी मिलता उसी से गुजारा करता था | गाँव वाले कतई उसकी इज्ज़त नहीं किया करते थे क्योंकि वह बेचारा निर्धन था | एक दिन उस ब्राह्मण ने पूजा पाठ करते हुए भगवान को उलाहना दिया,



"हे ईश्वर, इस पूरे गाँव में एक मैं ही हूँ जो कि धर्म और सत्य की राह पर चल रहा… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 25, 2010 at 3:30pm — 8 Comments

माही बह रही थी

माही नदी के पानी पर ढाक के पेड़ों की सुनहरी काली छाया , चांदी का वरक लपेटे बहता प्रवाह और किनारे की बजरी पर उगी नरम घास अनारो के कबीलाई मन के संस्कार बन चुके थे. उसका बचपन यहीं रेत में लोट-लोटकर उजला हुआ था. घंटों नदी के पानी में पैर डालकर बैठी रहती.छोटे-छोटे हाथ अंजुरी में पानी समेटते और हवा में कुछ बूंदें यूँ ही उछल जातीं. अनारो उन्हें लपकने की कोशिश करती और जब एक-आध बूंद उसके श्याम मुख पर गिरती तो खनखनाकर ऐसे हंसती कि सारा वातावरण उसकी हंसी से… Continue

Added by Aparna Bhatnagar on October 1, 2010 at 7:30am — 6 Comments

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