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All Blog Posts Tagged 'कविता' (987)

है यही पाथेय मेरा // रवि प्रकाश

है यही पाथेय मेरा

एक नन्हा सा अकेला

पल कि जिसमें एक मैं हूँ एक तुम हो

दूर तक कोई नहीं है

और भीतर झिलमिलाते कोटि दीपक

टिमटिमाते हैं सितारे और सूरज भी दमकते

फूटते निर्झर सहस्रों

अति सघन हिमरेख गल कर बह निकलती,

चाह कर भी छुप न पाती

हैं उमंगें दो दिलों की

देह आगे और आगे ही सरकती

चाहती अस्तित्व का अंतिम सिरा

छू कर पिघलना,

देखते हैं नैन ऐसे

आ गया हो ज्वार जैसे

और फिर यूँ बंद होते

लाज में लिपटे अचानक

दूर परबत के शिखर… Continue

Added by Ravi Prakash on November 19, 2016 at 2:24pm — 6 Comments

बड़ी बात , छोटी सी कविता - डॉo विजय शंकर

हुकूमतें लाजवाल
हाकिम कामयाब
जनता त्रस्त बेहाल ,
अपने अपने नसीब हैं।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on November 7, 2016 at 7:57am — 4 Comments

करमों से नाम बने

कोई सूली पर चढ़े
और मसीह बने
कोई वन को गए
और राम बने
कोई सीता पर मरे
और रावण बने
अपमानित हुई नारी
और भीष्म बने
राहुल को त्यागे
और गौतम बने
नर्क भी यहीं है
स्वर्ग भी यहीं है
इतिहास मरने
से पहले है बनता
धरती पर ही
अपने करमों से
कुछ राम बने
और रावण बने
मौलिक अप्रकाशित

Added by S.S Dipu on October 5, 2016 at 1:11am — 4 Comments

कविता - "उत्कर्ष"/अर्पणा शर्मा

“उत्कर्ष“

एक टिमटिमाते, बुझते तारे का उत्कर्ष,

देख लोग, होते चमत्कृत,

लेकिन वे बूझने में असमर्थ,

उसका नैपथ्य में छिपा,

गहन, सतत संघर्ष,

रुपहली चमक के पीछे छिपे,

कालिमा के सुदीर्घ, लंबे वर्ष,

फिर भी आशाओं से परिपूर्ण,

बाधाएँ, चुनौतियाँ पार कर,

उत्साहित, प्रसन्नचित्त, प्रकाशमान सहर्ष,

प्रोत्साहन देता अनूठा, गांभीर्य शब्द संघर्ष,

छिपा गूढ इसमें तात्पर्य,

ड़टे रहो कर्तव्यपथ पर “ संग + हर्ष",

अब दूर कहीं मुसकुराता है,…

Continue

Added by Arpana Sharma on October 4, 2016 at 5:41pm — 6 Comments

हिट-पिट , गिटपिट -- डॉo विजय शंकर

हिट हिटा हिट हिट

पिट पिटा पिट पिट

ये भी एक अज़ब दौर है

क्या हो जाए कब हिट

क्या जाये कब पिट

पब्लिक की च्वॉइस

मीडिया की वॉयस।

जिस नेता की जयंती बरसी

दो दिन उसकी बातें हिट।

जिससे हो अपना भला ,

हो अपना मामला फिट

वही हिट, वही हिट, वही हिट ,

बाकी सब गिटपिट गिटपिट।

ये बड़ी ख़बर , वो ख़बर हिट ,

गाना हिट , पिक्चर हिट ,

विचार हिट , डायलॉग हिट

मेकियावली हिट , चाणक्य हिट ,

ये नेता हिट ,उसका घोर विरोधी भी हिट… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on October 4, 2016 at 9:15am — 4 Comments

कौन बुरा लगता है

आजकल देखने मे
कौन बुरा लगता है,
रोता है वो फिर भी,
हंसता हुआ लगता है।
दिल में है दर्द
पलकें हैं भीगी हुयी,
कोई हमसे यूँ ही
रूठा हुआ लगता है।
डूबा हूँ पानी में
प्यासा हूँ बैठा हुआ
समन्दर भी मुझे अब
सूखा हुआ लगता है।
कौन यहाँ बिखरा गया
फूल और पतियों को,
पेड़ हर तरफ यहाँ ,
टूटा हुआ लगता है।
सब कुछ तो है घर की
दीवारों में सजा हुआ
आिशयाँ मेरा फिर भी
बिखरा हुआ लगता है।
मौलिक अप्रकाशित

Added by S.S Dipu on September 30, 2016 at 12:05am — 4 Comments

दीवारें

आज ना जाने

क्यों सहमी हुईं

है दीवारें

गरम

चाय का प्याला

लिया

ठंडी हवा का

लुत्फ़ लिया

देखा चाँद

की ओर

सब कुछ

स्याह सा लगा

काले बादल

इधर उधर

बिखरने को

मचल रहे थे

तेज़ हवाएँ

बेलगाम

चलने लगी

काँच की

खिड़की भी

छटपटाने

तड़पने लगी

तेज़ी से बिजली

चटकी

चादर में

मैं सिमट गयी

बुझी हुई

आँखों से

फिर देखा

दीवार की

तरफ़

दरारें बे हिसाब

थी… Continue

Added by S.S Dipu on September 28, 2016 at 9:45pm — 1 Comment

मेरे हिस्से की हँसी

तुम चुरा

ना लो

मेरे हिस्से की

हँसी

इस कारण

मुस्कुराना छोड़

दिया है

दर्द ना आँखों से

छलक पाएँ

पालकों

से आँखों को

सिया है

मन्नतें माँगी

नही फिर भी

बिन माँगे झोली

भरी देखी

कसाई बना है

वक़्त सभी का

आज़ादी पर

रोक

लगी देखी

बेपरवाह सब

घूम रहे

लगता नहीं

ये घर लौटेंगे

शहर में

घूम रहे भेड़िए

सचाई पर

बेड़ियाँ

लगी देखी

अपनापन पनपता

बाँटे किससे… Continue

Added by S.S Dipu on September 28, 2016 at 10:05am — 5 Comments

मंज़र बदल जाएगा

जॉन एफ केनेडी

ने कहा

कि यह मत पूछो

कि देश ने तुम्हारे

लिए क्या किया,

यह पूछो कि

तुमने देश के

लिए क्या किया?

इन शब्दों ने मेरे

जीने का अन्दाज़

ही बदल दिया है



मैं शिक्षक हूँ

क्या मैंने छात्रों

का मनोबल

बढ़ा लिया है

पूछूँ मैं

ख़ुद से अब

क्या

तनख़्वाह लेके

सही किया है ?

मैं बेचता हूँ

दूध पानी मिला

मिला के क्या

गाय का नाम

मैंने ही

मिटा रखा है ?

मैने बनके… Continue

Added by S.S Dipu on September 26, 2016 at 11:46pm — 1 Comment

तंत्र-मन्त्र-यंत्र--- डॉo विजय शंकर

तंत्र को नैये-नैये मंत्र मिल रहे हैं ,

सफलता और विकास के नैये-नैये

शब्दकोष रचे जा रहे हैं ,

शब्द , नैये-नैये अर्थ पा रहें हैं ,

अर्थ , पुरुषार्थ में पुरोधा बन रहे हैं।

पा लें , सब पा लें की होड़ लगी हैं ,

क्या खो रहें हैं , देख नहीं पा रहें हैं।

सत्ता , मद - यामिनी ,

सिंहासन , पद - वाहिनी ,

जब डोलता है तो ,

डोलता हुआ नहीं लगता है ,

झूला झुलाता हुआ लगता है ,

जागो , जागते रहो , कहनेवाला ,

खुद नींद में सोया-सोया लगता है।

आगे… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 25, 2016 at 7:35am — 8 Comments

मुद्रा स्फीति --डॉo विजय शंकर

( नवीन मुद्रा के आगमन पर स्वागत सहित, अचानक प्रस्तुत )



कैसे गायब हो जाते हैं छोटे सिक्के ,

पाई , अधेला , धेला , दाम ,

छेदाम , पैसा , दो पैसा ,

इक्कनी , दुअन्नी , चवन्नी ,

गला कर उन्हें तांबे ,

पीतल में ढाल लेते हैं।

कहते हैं , उनकी खरीदने की

ताकत ख़तम हो जाती है ,

या उनकीं अपनी कीमत बढ़ जाती है ?

हमारी समझ घट जाती है ,

तभी तो वे पुराने सिक्के

चलन में आज मिलते नहीं ,

कहीं मिल जायें तो

सौ, दो सौ , हजार , दस हजार… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 16, 2016 at 11:10pm — 12 Comments

एक देश (अतुकांत कविता)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

अपनों से ही जुदा

अपनों से ही लुटता

बहुचर्चित एक देश।



एक देश का ग़ुलाम

हथियार पाकर है बदनाम

ख़ुद बेलगाम एक देश।



ख़ुद को ख़ुद से भुलाता

मज़हब की आड़ लेता

कट्टरों का ग़ुलाम एक देश।



आतंक की ले पहचान

आतंक की खुली दुकान

पलता, पालता एक देश।



एक देश का है टुकड़ा

'आधा' खाकर, 'आधे' पर अकड़ा

छोटे से छोटा होता एक देश।



**



[2]



अपनों से ही संवरता

अपनों को ही उलझाता

बहुचर्चित… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 5, 2016 at 11:45pm — 10 Comments

फर्क़ - डॉo विजय शंकर

अमीर उम्र भर रोता रहा
हाय ये भी मिल जाता ,
हाय वो भी मिल जाता ,
ये ये मिलने से रह गया ,
वो चाहा बहुत मिला नहीं।
बस एक गरीब ही है ,
जिसे यही पता नहीं ,
उसने क्या खोया ,
उसे क्या मिला नहीं।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on August 28, 2016 at 10:54am — 2 Comments

संतुलन - डॉo विजय शंकर

जोड़-तोड़ खूब कर लेते हो।
जहां तोड़ लेना चाहिए ,
वहीं जोड़ लेते हो ,
समस्या को निपटा नहीं पाते ,
लिपटा लेते हो , गले लगा लेते हो।
उसी का राग अलापते हो ,
गीत गाते हो , छोड़ते नहीं ,
अलबत मौक़ा मिलते ही भुना लेते हो।
जिनको जोड़ लेना चाहिए ,
उन्हें भूले रहते हो।
संतुलन बनाये रखते हो।
कहते हो , राजनीति है ,
कर लेते हो।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on August 22, 2016 at 10:24am — 20 Comments

दो चार कहीं लगते पौधे , रोज कटते हैं पेड़ हज़ार |

दो चार कहीं लगते  पौधे , 
रोज कटते हैं  पेड़ हज़ार |
वन झाड़ी का होत सफाया , बाग कानन  का  मिटता नाम |
कहीं  पेंड नज़र  नहीं आते  ,    कहाँ   जा करे  राही विश्राम…
Continue

Added by Shyam Narain Verma on August 9, 2016 at 2:26pm — 10 Comments

पहले आप - डॉo विजय शंकर

पहले आप

पहले आप

एक तहजीब थी ,

अंग्रेजी में ,

ऑफ्टर यू ,

एक ही बात ,

आपके बाद।

आपका दौलत खाना ,

ख़ाकसार का गरीबखाना ,

आपके करम ,

बन्दे की खिदमत।

हम कुछ भी हों ,

आपके आगे कुछ नहीं।

वक़्त बदल गया।

पर सब कुछ वैसा ही है ,

तहज़ीब के पैमाने वही।

आपके आगे हम

आज भी कुछ नहीं ,

कुछ नहीं करने में

आप हमसे आगे ,

आपके घोटाले बड़े ,

इतने कि धरती धकेल दें ,

आप आगे , हम बहुत पीछे।

कामचोरी में आप… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2016 at 10:57am — 2 Comments

पिंजड़ा -- डॉo विजय शंकर

पिंजड़ा भी ,

एक अजीब बंधन है ,

दाना भी , पानी भी , बस ,

बंद पंछी उड़ नहीं सकता।

हौसलों से कहते हैं कि

क्या कुछ हो नहीं सकता ,

हो सकता है , बस पंछी ,

पिंजड़ा लेकर उड़ नहीं सकता।

कितने आज़ाद हैं हम ,

फिर भी उड़ नहीं पाते ,

मुक्त हो नहीं पाते ,

उन्मुक्त होकर जी नहीं पाते ,

बाहर से आज़ाद हैं , बस ,

कुछ पिंजड़े हैं हमारे अंदर ,

बाँधे हैं , कुछ ढीले , कुछ कस कर।

रूढ़ियाँ कब बन जाती हैं बेड़ियाँ ,

बंधे रह जाते हैं हम , पता… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on August 2, 2016 at 9:30am — 17 Comments

चोर को चोर कहना गुनाह होता है - डॉo विजय शंकर

हर गुनाह की सजा होती है ,
ये तो पता नहीं ,
पर हर गुनाह पर किसी न किसी का
हक़ होता है , ये पता है।
कभी कोई गुनाहगार मजबूर लाचार भी होता है ,
ये तो पता नहीं ,
पर बड़ा गुनाहगार अक्सर बड़ा ताक़तवर होता है ,
ये सबको पता है।
चोरी तो चौसठ कलाओं में से एक है ,
पता है न ,
पर चोर ताक़तवर हो तो
चोर को चोर कहना गुनाह होता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2016 at 10:00am — 10 Comments

अस्तित्व -- डॉo विजय शंकर

विशालता - सूक्ष्मता
का अनूठा संगम हैं प्रकृति,
हाथी भी है , चींटी भी है,
सूक्ष्म जीव , जीवाणु ,
कीट , कीटाणु भी हैं
दोनों का भोजन है ,
भूखा कोई नहीं है ,
इंसान को समझो ,
उसे न्यून मत करो ,
इतना न्यून तो
बिलकुल मत करो
कि वह सूक्ष्म हो जाए ,
और तुम्हें दिखाई भी न दे ,
कीटाणु की तरह ,
रोगाणु की तरह ,
रहेगा तब भी वह समाज में,
सोचो , क्या करेगा ?
समाज को ही रोगी करेगा।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 15, 2016 at 10:15am — 12 Comments

हालात-ए-तालीम -- डॉo विजय शंकर

सदैव सचेत ,जाग्रत ,

रहने वाले प्रबुद्ध हैं हम ,

बस अपने से ही दूर ,

अनन्त अंजान हैं हम।

जागते रहो , नारा है ,

लक्ष्य-आदर्श नहीं ,

दृश्य है , वो दीखता नहीं ,

अदृश्य , लक्ष्य है , और

पहुँच से बहुत दूर दीखता है ,

फिर भी अति प्रसन्न हैं हम ,

सुसुप्त-सुख से ग्रस्त हैं हम ,

जगा दे कोई किसी में दम नहीं।

फिर भी कोई दुःसाहस करे ,

जागते नहीं , उखड़ जाते हैं हम ,

भड़क जाते हैं हम ,

ज्ञान बोध से नहीं ,

अज्ञान के उद्भव से ,… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on July 2, 2016 at 10:00am — 8 Comments

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