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All Blog Posts Tagged 'कविता' (987)

कविता _ ठूंठ

कविता :- अखिल विश्व और हम



ठूंठ वृक्ष

सूखे सब पत्ते

कोटर भी पक्षी विहीन

हम कितने एकल |



छोड़ गए सब साथ

हाथ और राह भी छूटी

मील के पत्थर भी उदास

और बेकल बेकल |



संधि काल या महाकाल

क्यों स्याह घनेरा

तुम नित प्यासे

आस भरे आते जाते पल |



दूब पांव की

कोमलता की याद दिलाती

पीछे छूटे गांव छांव सब झुरमुट वाले

हम फिर चलते जैसे चलते आज और कल… Continue

Added by Abhinav Arun on December 4, 2010 at 4:05pm — 2 Comments

यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर



यादों के पत्ते यूँ बिखरे परे है जमीं पर ,

अब कोई खरखराहट भी नही है इनमे,

शायद ओस की बूंदों ने उनकी आँखों को

कुछ नम कर दिया हो जैसे ...

बस खामोश से यूँ चुपचाप परे है ,

यादों के ये पत्ते ...



जहन मे जरुर तैरती होगी बीती वो हरयाली,

हवायें जब छु जाती होगी सिहरन भरी ..

पर आज भी है वो इर्द गिर्द उन पेड़ों के ही ,

जिनसे कभी जुरा था यादों का बंधन ..



सन्नाटे मे उनकी ख़ामोशी कह रही हो जैसे,

अब लगाव नही , बस बिखराव है हर पल… Continue

Added by Sujit Kumar Lucky on December 4, 2010 at 1:54am — No Comments

अस्तित्व...





देखे हैं कभी तुमने,

पेड़ की शाखों पर वो पत्ते,



हरे-हरे, स्वच्छ, सुंदर, मुस्कुराते,

उस पेड़ से जुड़े होने का एहसास पाते,



उस एहसास के लिए,

खोने में अपना अस्तित्व

ना ज़रा सकुचाते,



पड़ें दरारें चाहे चेहरों पर उनके,

रिश्तों मे दरारें कभी वो ना लाते,



किंतु,



वही पत्ते जब सुख जाते,

किसी काम पेड़ों के जब आ ना पाते,



वही पत्ते उसी पेड़ द्वारा

ज़मीन पर… Continue

Added by Veerendra Jain on November 29, 2010 at 11:39am — 5 Comments

मैं नारी हूँ



मैं साकार कल्पना हूँ

मैं जीवंत प्रतिमा हूँ

मैं अखंड अविनाशी शक्तिस्वरूपा हूँ

मैं जननी हूँ,श्रष्टि का आरम्भ है मुझसे

मैं अलंकार हूँ,साहित्य सुसज्जित है मुझसे

मैं अलौकिक उपमा हूँ

मैं भक्ति हूँ,आराधना हूँ

मैं शाश्वत,सत्य और संवेदना हूँ



मैं निराकार हूँ,जीवन का आकार है मुझसे

मैं प्राण हूँ,सृजन का आधार है मुझसे

मैं नीति की संज्ञा हूँ

मैं उन्मुक्त आकांक्षा हूँ

मैं मनोज्ञा मंदाकिनी… Continue

Added by Ekta Nahar on November 27, 2010 at 6:00pm — 5 Comments

उलझते सुलझते बातें जिंदगी के

ये रात शर्त लगाये बैठे है नजरे बोझिल करने की..

और हम ख्वाब सजाने की बगावत कर बैठे है ...



(वक्त के खिलाफ ये कैसी कोशिश ! ! )



यूँ भागती कोलाहल जिंदगी मे ..

कहाँ थी कोई ख़ामोशी..

हम छुपते रहे , पर वो वजह थी..

आखिर मुझे ढूंड ही लिया उसने ! !



(ये कैसी ख़ामोशी. थी ! ! )



राह बंदिशे से निकल कर चलने दे एक कारवां ...

वक्त की हाथो न रुक जाये एक खिलता हुआ जहाँ ..



(रोको न इसे खिलने से ! ! )



शिकन न दिखे इन चेहरों मे… Continue

Added by Sujit Kumar Lucky on November 25, 2010 at 11:30pm — No Comments

मेरे तारे.



बैठी देख रही थी तारे..

जाने कितने ..कितने सारे..



छोटी थी तो गिनती थी..

ढेरों सपनों को बुनती थी..

'सप्तऋषि' 'ध्रुव' ढूँढती थी..

अनोखी आकृतियों पे हँसती थी..'



अक्सर देखा करती तारे..

जाने कितने..कितने सारे..

बीता बचपन,बदले सपने..

बदला ढंग देखने का तारे..



लगता था है मुझमें ज्ञान बहुत..

हर बहस जीत खुश होती थी..

अक्सर देखा करती तारे..

अब दूर बहुत लगते सारे..

कुछ…
Continue

Added by Lata R.Ojha on November 24, 2010 at 11:30pm — 1 Comment

मेरी माँ-डॉ नूतन गैरोला

मेरी माँ



जब मेरी माँ २१ साल की थीं





रात के सघन अंधकार में,

तेरे आंचल के तले,

थपकियो के मध्य,

लोरी की मृदु स्वर-लहरियों के संग,

मैं बेबाक निडर सो जाती थी माँ |



और नित नवीन सुबह सवेरे

उठो लाल अब आंखें खोलो

कविता की इन पंक्तियों के संग

वात्सल्य का मीठा रस… Continue

Added by Dr Nutan on November 24, 2010 at 1:00am — 2 Comments

'ज़िन्दगी'... तू "ज़िन्दगी" क्यों है...???



बोझिल मन... आँखें... सांसें...

ऐसा तारतम्य...

ना देखा आज से पहले...

ऐसी सांठ-गाँठ...

क्यों नहीं कर पाती यें... खुशियों में...???

जितना खोलनें की कोशिश करती...

उतनी ही इसकी गांठें और गुथती जाती...

और उन गांठों में फंसती जाती...

ज़िन्दगी... ... ...

धीरे-धीरे घुटती... गिरती... संभलती...

पर उफ़ ना करती...

शायद अब इस घुटन से...

इस उतार-चढ़ाव से...

बाँध ली थी उसने भी गांठें…
Continue

Added by Julie on November 23, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

आज की आवाज

उसकी हिम्मत बनना,
तक़दीर मत बनना,
प्यार जरूर करना पर,
पाव की जंजीर मत बनना,
यादो मे बसना जरूर पर,
तस्वीर मत बनना,
जो जी मे आये लिखते जाओ,
कौन रोकेगा तुम्हे,
बस वो पढ़ने वाले नही रहे अब,
सो कवि तो बनना पर,
तुलसी और कबीर मत बनना |

Added by Binod Kumar Rai on November 22, 2010 at 2:00pm — 1 Comment

प्रधान मंत्री जी आपको सादर नमस्कार ,

प्रधान मंत्री जी आपको सादर नमस्कार,

क्यों कोई बोले आप काम करते हो बेकार,

डी राजा को आपने इतना दिन बचाया,

कलमाड़ी को आप पैसा खूब कमवाया,

आपकी कृपा से पृथ्वी राज के सपना साकार,

प्रधान मंत्री जी आपको सादर नमस्कार,

एन डी ए से ममता सरपट भागी थी,

आग बबूला हो गई थी बस एक ही घपला पे,

आज आपकी पल्लू पकड़ कर बैठी हैं,

सोचिए कितना अच्छा हैं आपका ब्यवहार,

प्रधान मंत्री जी आपको सादर नमस्कार,

अब तक जितने हुए घपले पूरे हिदुस्तान में,

सब से ज्यादा कहे… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on November 22, 2010 at 11:00am — 3 Comments

माँ की भेट चढाने दो ,

मुझे सपनो में जीने दो ,

हकीकत में कुछ कर नहीं पाता ,

झूठ मूठ झुंझलाता हूँ ,

लड़ मरने की चाहत मन में हैं ,

डर के मगर भाग जाता हूँ ,

जो कर नहीं पाता जाग जाग ,

वो सोकर मैं कर जाता हूँ ,

मुझे सपनो में जीने दो ,

आज सपने में डी राजा को ,

बहुत बहुत समझाया ,

बोला अरे ओ अनाड़ी,

ये क्या कर डाला ,

अरबो की गई हिंद के प्यारे ,

तूने कितना बनाया ,

झट से बोला वो मुझसे ,

गुरु जीवन सफल बनाया ,

जो हैं बाते वो ,

अब खुल कर हो जाने… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on November 20, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

महक उठेगी रात की रानी



महक उठेगी रात की रानी



तेरी वेणी में सज कर ही.



चंदनिया शीतल हो गी पर



तेरी काया से लग कर ही .











सुमन सुशोभित हों उप वन में



तेरे आँचल के छूते ही



मानस तल पर विविध छटाएं



बिखरें तुम को छू पल भर ही .







मन मयूर करे नृत्य सुहाना



पुलकित होता हर्षाता है



जब छाते हैं कुंतल



बस तेरे मुख के नभ पर…
Continue

Added by DEEP ZIRVI on November 19, 2010 at 9:40pm — 2 Comments

राखी का इन्साफ

वाह री राखी सावंत

कर दिया तूने तंग

ऐसे चिल्लाती हो जैसे

लड़ रही हो जंग

सच बतलाएं मज़ा न आया

बेशक तूने नाम कमाया

देख तिहारी नौटंकी

हुई जाए अखियाँ बंद

नारी हो कुछ शर्म करो

कुदरत के कहर से डरो

इतना चीखना चिल्लाना

एक मर्द को नामर्द बतलाना

कहाँ से इतना ज्ञान पा लिया

हम देख के रह गए दंग

खुद भड़कीले वस्त्र धारणी

उंगली उठाती दूजों पर

राखी के इन्साफ में दिखता

केवल अश्लीलता का रंग



दीपक शर्मा… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on November 19, 2010 at 3:00pm — 1 Comment

मूँछों के झोंटे ::: ©





झबरीली मूंछों वाले लोगों को देख कर मेरा भी कटीली मूँछ रखने का मन हो आया.... अब आप देखें तो मेरी बेटी झलक की ओर से किसी मूंछों वाले के लिए कही गयी नयी बात क्या होगी...



मूँछों के झोंटे ::: ©



ताऊ जी ताऊ जी.....

मेले प्याले-प्याले ताऊ जी..

मेले छुई-मुई छे बचपन को..

लटका कल अपनी मूंछों में..

त्लिप्ती दिया कलो झोंटे देकल..

अनुपम छुन्दल हवादाल झूला..

सदृश्य अनुराग मेली… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 19, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

लम्स की तपिश

बस इक बार ही चखा था मैंने उठा के

तुम्हारा लम्स अपने ठंडी रूह से लेकिन

बरसों सुलगता रहा वो हिस्सा रूह में

इक चिंगारी की तरह पकiता रहा रूह को

बस इक लम्स की तपिश से जीती रही

चखती रहती रूह उस चिंगारी को धीरे-२

ज्यूँ- ज्यूँ मेरी रूह का दायरा बढ़ता गया

चिंगारी चखने की आदत बढती गयी

पर वक़्त के साथ मधम हो गयी है… Continue

Added by Venus on November 16, 2010 at 12:30am — 5 Comments

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ....

रात ना कटे तो तुम ऐसा करना ..

काली लम्बी इस रात के 3 टुकड़े करना



इक टुकडा काट के आसमान को दे देना



फिर दूसरा टुकडा दे देना तुम चाँद को

बचा हुया वो एक आखिरी टुकडा



तुम अपने पास अपने सरहाने रख लेना,



लेटे लेटे उसमे देखना बीता वक़्त हमारा

वो मिलना ,वो जीना,वो बिछड़ना हमारा

इस लम्बे से सफ़र में वो छोटा… Continue

Added by Venus on November 16, 2010 at 12:30am — 7 Comments

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए,

भंवर में ही उनको छोड़ दिए|

ऐसा उसने कहा था|



ये है बिलकुल हकीकत,

रहा मै वहीँ तक|

साथ में औरों को जब

वो जोड़ लिए........

मैंने सारे..................



वाकई मै गलत था,

इसका क्या मतलब था?

कुछ कहे ही बगैर

उनको छोड़ दिए............

मैंने सारे......................



नाव फिर कभी न बहती,

भार भी न वो सहती|

साथ दोनों को तन्हा ही

छोड़ दिए..................

मैंने… Continue

Added by आशीष यादव on November 15, 2010 at 10:00am — 6 Comments

दस का सिक्का...

`बहुत दिन हुए नहिं देखा दस का सिक्का...



स्कूल के दरवाज़े पर खड़े होकर शांताराम के चने नहीं खाए



बहुत दिन हुए आंगन के चूल्हे पर हाथ तापे..



याद नहीं आखरी बार कब डरे थे अँधेरे से...



कब झूले थे आखरी बार, पेड़ की डाली पर...



कब छोडा था चाँद का पीछा करना..



याद नहीं, कब कह दिया सुनहरी पन्नी वाली चॉकलेट को अलविदा..!!



कहाँ छुट गए कांच की चूडियों के टुकड़े..,



माचिस की डिबिया, चिकने पत्थरों की जागीर..



कब सुना… Continue

Added by Sudhir Sharma on November 14, 2010 at 2:57pm — 5 Comments

अगर सजनी हो दिलदार

जैसे .......
पर्व -त्यौहार,
बना देते हैं,
हमारी जिन्दगी को,
मजेदार,

गरम - मसाले,
बना देते हैं,
सब्जियों को,
लज़्ज़तदार,

खिड़कियाँ,
बना देती हैं,
कमरे को,
हवादार,

ठीक वैसे ही,
अगर बच्चे हों समझदार,
और सजनी हो दिलदार,
तो,
सजन क्यों न बने,
ईमानदार ॥

Added by baban pandey on November 14, 2010 at 10:30am — 2 Comments

रिश्ते बनते हैं बदलते हैं ,

रिश्ते बनते हैं बदलते हैं ,
मगर जीवन चलता रहता हैं ,
कभी बेटा पैदा होने की ख़ुशी ,
तो कभी बाप का मरने का गम ,
कभी ख़ुशी के छलकते आँसू ,
तो कभी गम से होती आँखे नम ,
समय चक्र चलते रहते हैं ,
रिश्ते बनते हैं बदलते हैं ,

रिश्तों की मिठास ,
वो अपने बुआ के आते ही ,
उनकी गोद में चढ़ने के लिए ,
अक्सर मचलता था ,
लेकिन जब से बुआ करने लगी
पुश्तैनी जायदाद में
हिस्से की मांग ,
तब से ख़त्म होने लगी ,
रिश्तों की मिठास ,

Added by Rash Bihari Ravi on November 13, 2010 at 4:30pm — 2 Comments

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