For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,924)

अब तो बस नयन बरसते हैं

सावन की घटा घहराती हैं,

मन में हलचल कर जाती हैं ..

विरही मन छोड़ रूठना अब,

प्रियतम की याद सताती है...

काले पीले बादल आते,

वर्षा की आशा ले आते,

मन हरा भरा हो जाता तब,

प्रियतम फिर से घर को आते,

प्रियतम की यादों को सावन,

फिर घेर घेर ले आता है,

दर्शन की अमित चाह में अब,

जीवन उत्साह बढ़ाता है ...

मन व्याकुल है तन आकुल है,

है कंठ रुद्ध आशा अपूर्ण..

प्रिय आँखों में बस जाओ तो,

जीवन हो… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 24, 2010 at 3:30pm — 4 Comments

दस्तक....

आज सुबह

जब घड़ी की सुइयाँ

हो तैयार

निकल पड़ीं विपरीत दिशाओं को

तभी

हुई दरवाज़े पर दस्तक

बंद आँखों से ही

नींद ने हिलाया मुझे

और ना चाहते हुए भी

आधी सोई आधी जागी आँखों से

दरवाज़ा खोला मैने

फटे होंठों से मुस्कुराते हुए

खड़ी थी ठिठुरती ठंडI



चाय की प्याली की गरमाहट

महसूस करते हुए

दोनों हथेलियों पर

खिड़की से बाहर झाँका मैने

तो आज सूरज ने भी

नहीं लगाई थी

दफ़्तर में हाज़िरी

बादलों की रज़ाई… Continue

Added by Veerendra Jain on October 24, 2010 at 1:09am — 6 Comments

मेरी भारत माँ....

आभार तुम्हारा कैसे माँ, मै व्यक्त करूँ....?

जीवन के बदले बोलो माँ मै क्या दे दूँ....?



तेरी मिट्टी की खुशबू माँ ...

मेरे तन मन मे छाई है.....

तेरी आशीषें ले कर ही...

पुरवाई फिर से आई है....

सुख यश की इन सौगातों का उपकार मै कैसे व्यक्त करूँ...?

जीवन के बदले बोलो माँ मै क्या दे दूँ...?



तेरी मिट्टी से जो उपजा ,

वह अन्न बड़ा बलदायी है...

तुझको छू कर ही पवन आज

शीतल है...व सुखदाई है...

इन सुंदर सुखद बहारों का मै मोल तुम्हे कैसे…
Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 23, 2010 at 8:30am — 3 Comments

नवगीत: नफरत पाते रहे प्यार कर ----- संजीव 'सलिल'

नवगीत:



नफरत पाते रहे प्यार कर



संजीव 'सलिल'

*

हर मर्यादा तार-तार कर

जीती बाजी हार-हार कर.

सबक न कुछ भी सीखे हमने-

नफरत पाते रहे प्यार कर.....

*

मूल्य सनातन सच कहते

पर कोई न माने.

जान रहे सच लेकिन

बनते हैं अनजाने.

अपने ही अपनापन तज

क्यों हैं बेगाने?

मनमानी करने की जिद

क्यों मन में ठाने?

छुरा पीठ में मार-मार कर

रोता निज खुशियाँ उधार कर......

*

सेनायें लड़वा-मरवा

क्या चाहे… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 22, 2010 at 1:30am — 4 Comments

वो छूटीं प्यार की बातें....



जो बातें प्यार की छूटीं हैं अब तक,

आज करनी हैं …

सुनो जी काम छोड़ो , पास बैठो…

शाम की गाड़ी पकड़नी है ….



वो पैंतीस साल पहले रात,

जो आई सुहानी थी…

वो गुजरी रात मे अभिसार की,

प्यारी कहानी थी ….



वो जो छूटीं रहीं इनकार मे थीं …

प्यार की बातें….

वो जो मूंदीं ढकीं इनकार मे थीं ,

प्यार की बातें….



वो जिनके बीच

मुन्नू और चुन्नू का बहाना था…

वो जो…
Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 21, 2010 at 9:30pm — 6 Comments

मौत...

मौत !

तिमिर की गहराईयों सी
भयानक
जीवन को निगलने को
तत्पर
जीवन पर्यंत
लक्षित यह अंत

मौत !!
शारीरिक शक्ति का ह्रास
पोषक तत्वों का विनाश
या
काया का परिवर्तन
पुरातन से नूतन

मौत !!!
आती है चुपके-चुपके
प्राण को निगलने के लिए
मिट्टी को मिट्टी में
मिलाने के लिए

मौत !!!!
नहीं... नहीं... !
मौत नहीं मोक्ष
कष्टों से मुक्ति का
जीवन का अंतिम लक्ष्य

~शशि

Added by Shashi Ranjan Mishra on October 21, 2010 at 8:28pm — 11 Comments

जिंदगी-मौत के बाद .

मैंने न जाना प्यार क्या है,

रिश्ता ऐ दर्द का अहसाह सा क्यूं है ?

साया-ऐ-दरख्तों पे पहुँच न सकी जो रौशनी,

उस रौशनी का इक अहसास सा क्यों है ?



ता उम्र ना खुल के मिल सकी जो सासें

उस प्राणवायु की कमी पे भी ये सांस क्यूं है ?

सूख चुके है जो धारे नदी से

फिर भी आज ये नयन नम से क्यूं है ?



ता उम्र ढूंढती रही जिस रौशनी को

उस सूरज का अहसास सा क्यों है.

जिंदगी तो जी के भी जी ना पाई ,

फिर भी, मौत के बाद इक -

जिंदगी का इन्तजार सा क्यूं है… Continue

Added by Dr Nutan on October 21, 2010 at 5:30pm — 5 Comments

अर्घ्य

सांझ की पंचायत में..

शफ़क की चादर में लिपटा

और जमुहाई लेता सूरज,

गुस्से से लाल-पीला होता हुआ

दे रहा था उलाहना...



'मुई शब..!

बिन बताये ही भाग जाती है..'

'सहर भी, एकदम दबे पांव

सिरहाने आकर बैठ जाती है..'



'और ये लोग-बाग़, इतनी सुबह-सुबह

चुल्लुओं में आब-ए-खुशामद भर-भर कर

उसके चेहरे पे छोंपे क्यूँ मारते हैं?"



उफक ने डांट लगाई-

'ज्यादा चिल्ला मत..

तेरे डूबने का वक़्त आ गया..'



माँ समझाती थी-

"उगते…

Added by विवेक मिश्र on October 21, 2010 at 1:00pm — 10 Comments

"माँ"



(ये मेरी पहली कोशिश है ग़ज़ल लिखनें की... जहाँ गलती हो कृपया करके बे'झिझक बताएं... शुक्रिया...!!)





सख्त रास्तों पर भी आसान सफ़र लगता है...

ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है...!!



हो जाती है, बोझिल आँखें जब रोते-रोते...

माँ से फ़िर मुश्किल चुराना ये नज़र लगता है...!!



नहीं आती नींद इन मखमली बिस्तरों पर...

माँ की थपकियों का यादों में जब मंज़र लगता… Continue

Added by Julie on October 20, 2010 at 10:30pm — 12 Comments

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को

कहाँ कहाँ से बचा कर निकालते खुद को
हरेक मोड़ पै कैसे संभालते खुद को

हमारी आँख से दरया कई रवाँ होते
जो आँसुओं की फ़िज़ाओं मैं ढालते खुद को

किसी पै तंज़ की हिम्मत कभी नहीं होती
ज़रा सी देर कभी जो खंगालते खुद को

बड़े ही ज़ोर से आकर ज़मीन पर गिरते
जो आसमान की जानिब उछालते खुद को

बहुत गुरूर है तुमको चिराग होने पर
कभी मचलती हवाओं मैं पालते खुद को

Added by SYED BASEERUL HASAN WAFA NAQVI on October 20, 2010 at 9:30pm — 2 Comments

"कवि"



((( यूँ तो हूँ साधारण-सी इंसान बस... पर आजकल भावनाओं को शब्द देने आ गया है और लोग मुझे 'कवि' (कवयित्री) के नाम से पुकारने लगे हैं... पर अभी इस उपाधि से हमें नवाज़ा जाए ये हम सही नहीं समझते... अभी ऐसे किसी विषय पर लिखा नहीं... मैं अभी "कवि" नहीं...!! ये रचना बस यही सोचते सोचते बन पड़ी के मैं कवि क्यूँ नहीं और कब होउंगी...!! -जूली )))



मैं "कवि" 'नहीं' हूँ... ...… Continue

Added by Julie on October 20, 2010 at 8:30pm — 5 Comments

रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है

रुख पे उदासी , आँख क्यूँ नम है
यार बता , तुझे कौन सा गम है

ज़ख्म जिगर के मुझको दिखा दे ,
मेरी नज़र भी इक मरहम है .

तेरी पलक का अश्क मैं अपने
लब पे उठा लूं , ये शबनम है.

लगता है मुझको तुझमे खुदा है ,
हंस कर बोले लोग वहम है

जिस्म तेरा या रूह हो तेरी
मेरे लिए यह दैरो- हरम है

कहना ग़ज़ल यूं मैं क्या जानू
यह तो खुदा का रहमो- करम है

आनंद तनहा

Added by anand pandey tanha on October 20, 2010 at 7:03pm — 5 Comments

पीठ मे छुरा घोपना किसे कहते हैं?

इस घटना ने मुझे जबरदस्त सबक सिखा दिया ! हुआ यह कि पिछले दिनों मेरे एक जो की किसी ज़माने में मेरे रूममेट हुआ करते थे मेरे घर पधारे ! उनको मेरे शहर में ही नौकरी मिली थी, लेकिन नया होने की वजह से उनको रहने का कोई ठिकाना अभी तक नहीं मिल पाया था ! क्योंकि उनसे पुरानी जान पहचान थी तो मैं उन्हे अपना समझकर अपने कमरे की चाबी सौंप कर अपने काम पर निकल गया ! लेकिन उस मित्र ने इस पल का भरपूर इस्तेमाल करते हुए मेरे कंप्यूटर की हार्ड डिस्क ही बदल डाली| इस बात का आभास मुझे कल ही हुआ जब मैंने कंप्यूटर ठीक करवाने… Continue

Added by ABHISHEK TIWARI on October 20, 2010 at 1:30pm — 4 Comments

काश हर आह सर्द हो जाये,

काश हर आह सर्द हो जाये,
काश हमदर्द दर्द हो जाये .
अब दवा से मुझे क्या लेना ,
ला- दवा मेरा मर्ज़ हो जाये .
मौत री! ले ले मुझ को दामन में ,
दूर जीवन का कर्ज़ हो जाये .
आंसुओ सूख जाना भीतर ही ,
कहीं जग में न नशर हो जाये .
दीप जीर्वी
09815524600

Added by DEEP ZIRVI on October 20, 2010 at 6:48am — 4 Comments

सफ़र....

ढलती हुई शाम ने

अपना सिंदूरी रंग

सारे आकाश में फैला दिया है,

और सूरज आहिस्ता -आहिस्ता

एक-एक सीढ़ी उतरता हुआ

झील के दर्पण में

खुद को निहारता

हो रहा हो जैसे तैयार

जाने को किसी दूर देश

एक लंबे सफ़र पर I



काली नागिन सी,

बल खाती सड़कों पर

अधलेते पेड़ों के सायों के बीच

मैं,

अकेला,

तन्हा,

चला जा रहा हूँ

करता एक सफ़र,

इस उम्मीद पर

कि अगले किसी मोड़ पर

राहों पर अपनी धड़कनें बिछाए

तुम करती होगी… Continue

Added by Veerendra Jain on October 20, 2010 at 1:08am — 9 Comments

जानलेवा प्यार है, इस प्यार से तौबा करो

सभी को मेरा प्रणाम ... एक नयी कोशिश की है आपके सामने पेश है ...



बहर है 2122 212 2 212 2 212

मंज़िले अपनी जगह, रास्ते अपनी जगह ... आप इस गाने की धुन पे इसे गुनगुना सकते हैं ...

_____________________________________________________________________



जानलेवा प्यार है, इस प्यार से तौबा करो

नासमझ ये दिल सही तुम तो इसे टोका करो



किस तरफ हो जा रहे, इस राह की मंज़िल है क्या

देर थोड़ी बैठ कर, तुम दूर तक सोचा करो



तुम बचाओ मुझसे दामन, पास… Continue

Added by vikas rana janumanu 'fikr' on October 19, 2010 at 3:00pm — 10 Comments

ग़ज़ल:काम बेशक न कीजिये

काम बेशक न कीजिए ज्यादा,

मीडिया में मगर दिखिए ज्यादा.



ये सियासत के खेल है साहब ,

बोइये कम छीटिए ज्यादा.



मिल गया है रिमांड पर अभियुक्त

पूछिए कम पीटिए ज्यादा.



सैलरी झाग दूध रिश्वत है,

फूंकिए कम पीजिए ज्यादा.



शेख जी हैं नए नए शायर ,

दाद कुछ और दीजिए ज्यादा.



लिफ्ट छाते में देकर देख लिया ,

बचिए कम भीगिए ज्यादा.



सभ्यता की पतंग और पछुआ बयार,

ढीलिए कम लपेटिए ज्यादा.



अपसंस्कृति की पपड़ियाँ… Continue

Added by Abhinav Arun on October 19, 2010 at 1:30pm — 13 Comments

दोहा सलिला: जिज्ञासा ही धर्म है -------संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:



जिज्ञासा ही धर्म है



संजीव 'सलिल'

*

धर्म बताता है यही, निराकार है ईश.

सुनते अनहद नाद हैं, ऋषि, मुनि, संत, महीश..



मोहक अनहद नाद यह, कहा गया ओंकार.

सघन हुए ध्वनि कण, हुआ रव में भव संचार..



चित्र गुप्त था नाद का. कण बन हो साकार.

परम पिता ने किया निज, लीला का विस्तार..



अजर अमर अक्षर यही, 'ॐ' करें जो जाप.

ध्वनि से ही इस सृष्टि में, जाता पल में व्याप..



'ॐ' बना कण फिर हुए, ऊर्जा के… Continue

Added by sanjiv verma 'salil' on October 18, 2010 at 11:30pm — 1 Comment

तन्हाई का कैसा यारो फंडा

तन्हाई का कैसा यारो फंडा

कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?

फूल कही

हो खुशबु उसके साथ रहे ,

खुशबू हो जो वो भी हवा के साथ बहे

खुशबु से

हम सब का दामन भरता है ,

तन्हाई का कैसा यारो फंडा है ,

कोई कैसे

तन्हा भी हो सकता है ?

दिल के साथ है धड़कन ,

आँख के साथ स्वप्न ,

सुखदुख

साथ में मिलके बनता है जीवन ।

जीवन धार में मिलके जीवन चलता है ,

तन्हाई

का कैसा यारो फंडा है ।

कोई कैसे तन्हा भी हो सकता है ?

दीप के साथ

है… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 18, 2010 at 9:00pm — 4 Comments

क्या हमारे सितारे झूठ बोलते हैं ,

क्या हमारे सितारे झूठ बोलते हैं ,

ये सोच कर मेरा दिल जलता हैं ,

एक जन सेमसंग गुरु का रट लगाया ,

मेरे पॉकेट से अच्छा चूना लगवाया ,

एक बादशाह हैं अच्छा उल्लू बनाया ,

हप्ता क्या सालो मला ना चमक पाया ,

एक महानायक हमें जो बताया ,

हकीकत के पास उन्हें भी ना पाया ,

सर जी ने बोला आइडिया बदल देगी ,

नही पता था तीस रुपया वो काट लेगी ,

गलती से बेटा ने दबा दिया जो फोन आया ,

मेरे बैलेंस से तीस रुपया का चूना लगाया ,

बाद में पता चला १० और खा गया वो… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 18, 2010 at 7:30pm — 5 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service