For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Sarna's Blog (876)

मर्यादा ....

मर्यादा ....

चक्षु को चक्षु से देखा

करते हमने द्वंद

उलझे करों को

देख इक दूजे में

हम तो रह गये दंग

आँख बचा कर

कब बाला ने

बदला कपोल का रंग

वर्तमान में बेहयाई का

हुआ ये आम प्रसंग

संस्कारों को त्याग जोड़े ने

अधर मिलाये संग

समझ न आये

क्यूँ इस युग में

कपडे हो गये तंग

मृग नयनी का

नशा देख के

फीकी पड़ गयी भंग

बैठ बाईक पर

दौड़ चले फिर

इक दूजे के संग

शर्मो-हया की चिंता किसे अब

सतरंगी है मन…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 8, 2015 at 7:15pm — 2 Comments

अधूरे हर्फ़ :..........

अधूरे हर्फ़ :..........

हंसी आती है

अपने ख्यालों पर

मेरे तसव्वुर में

तुम जब भी आती हो

इक अधूरी ग़ज़ल की तरह आती हो

नज़र से नज़र मिलती ही

एक अजीब सी सिहरन होती है

तुम किताब के रूठे हर्फों की तरह

किसी कोने में सिमटी रहती हो

मैं अपने अधूरे हर्फों को

इक मुकम्मल शक्ल देने की कोशिश में

तमाम शब चरागों में झिलमिलाते

तुम्हारे अक्स के साथ

गुज़ार देता हूँ

सहर होने के साथ

हम अधूरे लफ़्ज़ों के तरह

मुकम्मल होने के लिए…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 7, 2015 at 8:04pm — 2 Comments

साये....

साये....

रहने दो

तुम सायों की खामोशी क्या जानो

तुम सिर्फ खोखले अहसासों के

सूखे शज़र हो

साये का दर्द तो सिर्फ

ज़मीन सहती है

हर जिस्मानी खरोंच को

खामोशी से पी जाती है

उफ़ नहीं करती

रेज़ा रेज़ा बिखरती

तारीक में सिमट जाती है

जब कोई तन्हा शब

किसी परिंदे की तरह

पेड़ पर फड़फड़ाती है

बेतरतीब से सलवटों में

तब वफा भी कराहती है

गुजरे लम्हों के साये

तमाम उम्र

जीने की सजा दे जाते हैं

ज़िस्म की कश्कोल में…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 2, 2015 at 8:02pm — 12 Comments

टीस......

टीस.....

चलो न

कुछ और बात करते हैं

अपनी अपनी टीस से

मुलाक़ात करते हैं

नेह से देह की थकान

तो अधरों से तृप्ति हारी है

सच कहूँ तो

बीती हुई रात की

चुपके से हुई बात

कुछ तेरी पलक पर

तो कुछ मेरी पलक पर

अभी तक भारी है

जूही के फूलों में लिपटे

वो स्वप्निल लम्हे

अस्त व्यस्त से सलवटों में

अपनी गंध से

अलौकिक अनुभूति की

व्याख्या करते प्रतीत होते हैं

निर्वसन शरीर के उजास की चांदनी

एकान्तता से लिपट…

Continue

Added by Sushil Sarna on December 1, 2015 at 7:45pm — 10 Comments

न जग तेरा है .....

न  जग  तेरा  है .....

न  जग  तेरा  है  न  मेरा है

बस  दो  साँसों  का  डेरा  है 

है पल भर की बस भोर यहां 

पल  अगला  घोर  अँधेरा है 

न जग तेरा है ....

मैं पथ  का  कोई  शूल कहूँ 

या  जीवन  कोई  भूल कहूँ  

इक पल यहाँ पर है उत्सव  

पल  दूजा  दुख का  डेरा  है 

न जग तेरा है ....

स्वर  प्रेम नीड को ढूंढ रहे 

दृग पीर  नीर  में  मूँद रहे 

है नीरवता  हर  ओर यहां 

विष सेज पे सुप्त उजेरा है 

न जग तेरा है ....

अभिलाष हृदय की…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 24, 2015 at 9:35pm — 4 Comments

कुछ एक बातें …

कुछ एक बातें …

कुछ  एक  बातें  ऐसी  हैं

कुछ   एक   बातें वैसी है

होठों पर  लज्जा   वाली

भीगी   रातों   जैसी   हैं

कुछ एक बातें …

हृदय के सागर पर लिखी

अमर प्रीत की बात  कोई

शब्द नीड़ में जागी  सोई

अलसायी  बातों जैसी  हैं

कुछ एक बातें …

मन के अम्बर  पर कोई

दीप प्रीत के जला  गया

मधुपलों की सिमटी सी

कुछ यादें मेघों जैसी  हैं

कुछ एक बातें …

इक शीत बूँद  अंगारों  पर

तृप्ति पूर्व  ही  झुलस गयी

हार जीत की नैनझील पर…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 17, 2015 at 7:21pm — 4 Comments

तुम निष्ठुर हो …

तुम निष्ठुर हो …

तुम निष्ठुर हो तुम निर्मम हो

तुम बे-देह हो तुम बे-मन हो

तुम पुष्प नहीं तुम शूल नहीं

तुम मधुबन हो या निर्जन हो

तुम निष्ठुर हो …

तुम विरह पंथ का क्रंदन हो

तुम सृष्टि भाल का चंदन हो

तुम आदि-अंत के साक्षी हो

तुम वक्र दृष्टि की कंपन्न हो

तुम निष्ठुर हो …

तुम  नीर  नहीं समीर नहीं

तुम हर्ष नहीं तुम पीर नहीं

तुम हर दृष्टि  से ओझल हो

तुम रखते कोई शरीर नहीं

तुम निष्ठुर हो …

तुम चलो तो सांसें चलती…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 14, 2015 at 8:13pm — 13 Comments

अमर गंध …

अमर गंध …

पी के संग सो गयी

पी के  रंग हो गयी

प्रीत  की  डोर  की

मैं  पतंग  हो गयी

दीप   जलता  रहा

सांस  चलती  रही

पी की  बाहों में  मैं

इक उमंग हो गयी

हर  स्पर्श  देह  में

गीत  भरता   रहा

नैनों की झील की

मैं  तरंग  हो गयी

निशा  ढलती  रही

आँखें  मलती  रही

होठों  की  होठों से

एक  जंग  हो गयी

कुछ  खबर  न हुई

कब सहर हो गयी

साँसों में पी की मैं

अमर गंध हो गयी

सुशील सरना

मौलिक एवं…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 5, 2015 at 4:18pm — 6 Comments

कैसे अपने मधु पलों को .... (१००वी रचना )

कैसे अपने मधु पलों को शूल शैय्या पे छोड़   आऊँ

स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊं

विगत पलों के अवगुंठन में

इक दीप अधूरा जलता रहा

अधरों पर   लज्जा शेष रही

नैनों में स्वप्न मचलता रहा

एकांत पलों में तृप्ति भाव को किस आँगन मैं छोड़ आऊँ

प्रिय स्मृति घटों पर विरहपाश के कैसे बंधन तोड़ आऊँ

अधरों से मिलना अधरों का

तिमिर का मौन शृंगार हुआ

तृषित देह का देह मिलन से

अंगार पलों  का संचार हुआ

किस पल को मैं बना के जुगनू तिमिर…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 4, 2015 at 7:30pm — 27 Comments

प्रणय को आकार दिया ....

दृग

शृंगार करते रहे

आंसुओं से

तृषित मन

आस की मरीचिका में

भटकता रहा

व्यथा

दूर तक फ़ैली नदी में

वायु वेग को सहती

बिन पाल की नाव सी

किसी किनारे की तलाश में

व्यथित रही

दृष्टि स्पर्श

प्रणय अस्तित्व को

नागपाश सा

स्वयंम में लपेटे रहा

अंतर्कथा के मौन पृष्ठों में

जीवन के इक मोड़ की त्रासदी

स्मृति सीप में

कराहती रही

कदम

धूप की तपन को

मन के अंतर्नाद में डूबे 

एक क्षितिज की तलाश में…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 21, 2015 at 5:43pm — 12 Comments

अंजामे मुहब्बत .....

अंजामे मुहब्बत .......

कितनी अज़ीब हैं ज़िंदगी की राहें

हर मोड़

एक उलझी पहेली

हर राह पर फिसलन

हर नफ़स एक चुभन

गर्द में दफ़्न

वफ़ा और ज़फ़ा के अनसुने अनकहे

वो अफ़साने

जिन्हें सुनना चाहे

ये दिल बार बार

हर बार

कोई लफ्ज़ लबे दहलीज़ पे

इज़हार से शरम खाता है

और अश्के रवां रुखसार पे रुक जाता है

कह देती है सांस

साँसों में तपते अहसासों को

दे देती है खामोश धड़कनों को

अपनी धड़कनों की आवाज़

वो बात मुहब्बत की…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 14, 2015 at 2:16pm — 10 Comments

तुम न समझ पाओगे .....

तुम न समझ पाओगे .....

तुम न समझ पाओगे

मुहब्बत की ज़मीन पर

कतरा कतरा बिखरते

रूमानी अहसासों के सायों का दर्द

तुम तो बुत हो

सिर्फ बुत

जिसपर कोई रुत असर नहीं करती

तुम से टकराकर

हर अहसास संग -रेज़ों में तक़सीम जाता है

और साथ चलते साये का वज़ूद

सिफर में तब्दील हो जाता है

रह जाते हैं बस शानों पर

स्याह शब में गुजरे चंद लम्हे

जो आज मुझे किसी माहताब में

लगे दाग़ की तरह लगते हैं

तुम्हारी याद का हर अब्र

मेरी चश्म…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 6, 2015 at 9:42pm — 10 Comments

ख़ौफ़ खाता हूँ …

ख़ौफ़ खाता हूँ …

ख़ौफ़ खाता हूँ 

तन्हाईयों के फर्श पर रक्स करती हुई

यादों की बेआवाज़ पायल से

ख़ौफ़ खाता हूँ

मेरे जज़्बों को अपाहिज़ कर

अश्कों की बैसाखी पर

ज़िंदा रहने को मज़बूर करती

बेवफा साँसों से

ख़ौफ़ खाता हूँ

हयात को अज़ल के पैराहन से ढकने वाली

उस अज़ीम मुहब्बत से

जो आज भी इक साया बन

मेरे जिस्म से लिपट

मेरे बेजान जिस्म में जान ढूंढती है

और ढूंढती है

ज़मीं से अर्श तक

साथ निभाने की कसमों के…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 3, 2015 at 8:30pm — 12 Comments

तुम इसे तवज्जो न देना........

तुम इसे तवज्जो न देना ....



ये बादे सबा अगर

तुम्हें मेरे दर्द का पैगाम दे जाये

तो अपने ज़हन में

करवटें लेते खुशनुमा अहसासों पर

तुम तवज्जो न देना

किसी तारीक शब को

अब्र से झांकता माहताब

पीला नज़र आये

तो तन्हाई से गुफ़्तगू करती

मेरी खामोशियों पर

तुम तवज्जो न देना

सड़क पर चलते

तुम्हारे पाँव के नीचे

कोई ज़र्द पत्ता चीखे

तो गर्द में डूबे

मेरी मुहब्बत के

बदलते मौसम पर

तुम तवज्जो न…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 29, 2015 at 7:30pm — 10 Comments

आत्मिक प्रेमतत्व

आत्मिक प्रेमतत्व …

जलतरंग से

मन के गहन भावों को

अभिव्यक्त करना

कितना कठिन है

हम किसको प्रेम करते हैं ?

उसको !

जिसके संग हमने

पवन अग्नि कुण्ड के चोरों ओर

सात फेरे लिए

या उसको

जिसके प्रेम में

स्वयं को आत्मसात कर हम

जीवन के समस्त क्षण

उसके नाम कर दिए

एक प्रेम

जीवन के अंत को जीवन देता है

और दूसरा अंतहीन जीवन को अंत देता है

जिस प्रेम को बार बार

शाब्दिक अभिव्यक्ति की आसक्ति हो …

Continue

Added by Sushil Sarna on September 25, 2015 at 8:30pm — 10 Comments

कीचड़ .....

कीचड़ .....

सड़क पर फैले हुए कीचड से

एक कार के गुजरने से

एक भिखारन के बदन पर

सारा कीचड फ़ैल गया

अपनी फटी हुई साड़ी से कीचड़ पौंछते हुए

उसने अपने मन की भंडास निकालते हुए कहा

अमीरजादे गाड़ी से कीचड उछालते हैं

और पलट के भी नहीं देखते

इन्हें भूख से बिलबिलाते हुए

पेट को भरने के लिए रक्खा

भीख का कटोरा नजर नही आता

बस फ़टे कपड़ों से झांकता

बदन नज़र आता है

मेहरबानी पेट पर नहीं

बस बदन पर होती है

वो खुद पर गिरे कीचड़ को

साफ़…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 21, 2015 at 8:00pm — 6 Comments

तृषा जन्मों की .....

तृषा जन्मों की .....

मर्म धर्म का समझो पहले

फिर करना प्रभु का ध्यान

क्या पाओगे काशी में

है हृदय में प्रभु का धाम

पावन गंगा का दोष नहीं

सब है कर्मों का फल

अच्छे कर्म नहीं है तो फिर

गंगा सिर्फ है जल

मानव भ्रम में जीने का

क्यों करता अभिमान

सच्चा सुख नहीं तीरथ में

व्यर्थ भटके नादान

कर्म प्रभु है, कर्म है गंगा

कर्म है सर्वशक्तिमान

राशि रत्न और ग्रह शान्ति से

कैसे मुशिकल हो आसान

अपने मन की कंदरा में…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 16, 2015 at 3:56pm — 10 Comments

ओस के शबनमी कतरों में …

ओस के शबनमी कतरों में …

सर्द सुबह

कोहरे का कहर

सिकुड़ते जज़्बातों की तरह ठिठुरती

सहमी सी सहर

ओस की शबनम में भीगी

चिनार के पेड़ों हिलाती

आफ़ताब की किरणों को छू कर गुजरती

हसीन वादियों की बादे-सबा

रूह को यादों के लिबास में लपेट

जिस्म को बैचैन कर जाती है

तुम आज भी मुझे

धुंध में गुम होती पगडंडी पर

खड़ी नज़र आती हो



मैं बेबस सा

अपने तसव्वुर में

हर शब-ओ-सहर बिताये

हसीन लम्हों…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 13, 2015 at 2:31pm — 4 Comments

टूटे सपने … (लघुकथा)...

टूटे सपने … (लघुकथा)

"राधिका ! आओ बेटी , अविनाश जाने की जल्दी कर रहा है। " माँ ने राधिका को आवाज़ लगाते हुई कहा।

''अभी आयी माँ, बस दो मिनट में आती हूँ। '' राधिका ने आईने के सामने बैठे बैठे ही जवाब दिया। आज अविनाश कितने समय के बाद विदेश से आया है। आज मैं उसे अपने मन की बात कह ही डालूंगी ,राधिका मन ही मन बुदबुदाई। जल्दी से आँखों में काजल की धार बना वो ड्राईंग रूम में आई।

''हाय अविनाश कैसे हो ? विदेश में कभी हमारी याद भी आती थी या गोरी मेमों में ग़ुम रहते थे। ''

''अरे नहीं…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 8, 2015 at 2:30pm — 6 Comments

मेरे शानों पे .....

मेरे शानों पे .....

साँझ होते ही मेरे तसव्वुर में

तेरी बेपनाह यादें

अपने हाथों में तूलिका लिए

मेरी ख़ल्वत के कैनवास पर

तैरती शून्यता में

अपना रंग भरने आ जाती हैं

रक्स करती

तेरी यादों के पाँव में

घुंघरू बाँध

अपने अस्तित्व का

अहसास करा जाती हैं

मेरी रूह की तिश्नगी को 

अपनी दूरी से

और बढ़ा जाती हैं

मेरे अश्क

मेरी पलकों की दहलीज़ पे

चहलकदमी करने लगते हैं

न जाने कब

सियाह…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 7, 2015 at 10:22pm — 16 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
39 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"प्रिय गिरिराज  हार्दिक बधाई  इस प्रस्तुति के लिए|| सुलह तो जंग से भी पुर ख़तर है सड़ा है…"
57 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"हार्दिक बधाई लक्ष्मण भाई इस प्रस्तुति के लिए|| सदा प्रगति शान्ति का       …"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , विषय के अनुरूप बढ़िया दोहे रचे हैं , बधाई आपको मात्रिकता सही होने के बाद…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"ग़ज़ल  *****  इशारा भी  किसी को कारगर है  किसी से गुफ्तगू भी  बे असर…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
10 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है.…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
Friday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service